वो जरूरी चीजें जो सोमनाथ मंदिर के बारे में आपको जानना चाहिए

वो जरूरी चीजें जो सोमनाथ मंदिर के बारे में आपको जानना चाहिए

भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ Somnath Temple पहला ज्योतिर्लिंग है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है। बहोत सी प्राचीन कथाओ के आधार पर इस स्थान को बहोत पवित्र माना जाता है।

सोमनाथ का अर्थ “सोम के भगवान” से है।
साल 1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था. कहा जाता है कि अरब यात्री अल-बरुनी के अपने यात्रा वृतान्त में मंदिर का उल्लेख देख गजनवी ने करीब 5 हजार साथियों के साथ इस मंदिर पर हमला कर दिया था ।कहा जाता है कि सबसे पहले एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्व में था जिस जगह पर दूसरी बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया।

आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी. प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया. मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा।महमूद गजनवी यमीनी वंश के तुर्क सरदार और गजनी के शासक सबुक्तगीन का बेटा था। सुल्तान महमूद का जन्म 971 में हुआ था. उसने 27 साल की उम्र में ही गद्दी संभाली थी. वह बचपन से भारती की दौलत के बारे में सुनता आया था. उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया. वह भारत की संपत्ति लूटकर गलती ले जाना चाहता था. आक्रमणों का यह सिलसिला 1001 से शुरु हुआ था।

गजनवी के हमले के बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका र्निर्माण कराया. साल 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे फिर गिराया गया. मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया. बता दें कि इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया।

इस हमले में गजनवी ने मंदिर की संपत्ति लूटी और हमले में हजारों लोग भी मारे गए थे. इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया. हालांकि गजनवी से पहले भी सोमनाथ मंदिर पर कई हमले हो चुके थे और उसके बाद भी मंदिर पर हमले किए गए. अत्यंत वैभवशाली होने के कारण कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया।


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सोमनाथ मंदिर का इतिहास | Somnath Temple History In Hindi
By Editorial Team - June 5, 2016


सोमनाथ मंदिर – Somnath Temple भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है। बहोत सी प्राचीन कथाओ के आधार पर इस स्थान को बहोत पवित्र माना जाता है। सोमनाथ का अर्थ “सोम के भगवान” से है।

सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple History in Hindi
Somnath Temple
सोमनाथ मंदिर शाश्वत तीर्थस्थान के नाम से जाना जाता है। पिछली बार नवंबर 1947 में इसकी मरम्मत करवाई गयी थी, उस समय वल्लभभाई पटेल जूनागढ़ दौरे पर आये थे तभी इसकी मरम्मत का निर्णय लिया गया था। पटेल की मृत्यु के बाद कनैयालाल मानकलाल मुंशी के हाथो इसकी मरम्मत का कार्य पूरा किया गया था, जो उस समय भारत सरकार के ही मंत्री थे।



यह मंदिर रोज़ सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहाँ रोज़ तीन आरतियाँ होती है, सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और श्याम 7 बजे। कहा जाता है की इसी मंदिर के पास भालका नाम की जगह है जहा भगवान क्रिष्ण ने धरती पर अपनी लीला समाप्त की थी।


सोमनाथ मंदिर ज्योतिर्लिंग / Somnath Temple Jyotirlinga –

सोमनाथ में पाये जाने वाले शिवलिंग को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, यह शिवजी का मुख्य स्थान भी है। इस शिवलिंग के यहाँ स्थापित होने की बहोत सी पौराणिक कथाएँ है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वही की गयी है जहाँ भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए थे। वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंग को माना जाता है लेकिन इनमे से 12 ज्योतिर्लिंग को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।

शिवजी के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ में है और बाकि वाराणसी, रामेश्वरम, द्वारका इत्यादि जगहों पर है।

प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आये है।

कहा जाता है की चंद्र भगवान सोम ने यहाँ अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यही सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था। परिणामस्वरूप चन्द्रमा का वर्धन होता गया और वो घटता गया। इसके शहर प्रभास का अर्थ रौनक से है और साथ ही प्राचीन परम्पराओ के अनुसार इसे सोमेश्वर और सोमनाथ नाम से भी जाना जाता है।

सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple History
जे.गॉर्डोन मेल्टन के पारंपरिक दस्तावेजो के अनुसार सोमनाथ में बने पहले शिव मंदिर को बहोत ही पुराने समय में बनाया गया था। और दूसरे मंदिर को वल्लभी के राजा ने 649 CE में बनाया था।

कहा जाता है की सिंध के अरब गवर्नर अल-जुनैद ने 725 CE में इसका विनाश किया था। इसके बाद 815 CE में गुर्जर-प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया था, इसे लाल पत्थरो से बनवाया गया था।

लेकिन अल-जुनैद द्वारा सोमनाथ पर किये गए आक्रमण का कोई इतिहासिक गवाह नही है। जबकि नागभट्ट द्वितीय जरूर इस तीर्थस्थान के दर्शन करने सौराष्ट्र आये थे। कहा जाता है की सोलंकी राजा मूलराज ने 997 CE में पहले मंदिर का निर्माण करवाया होंगा। जबकि कुछ इतिहासकारो का कहना है की सोलंकी राज मूलराज ने कुछ पुराने मंदिरो का पुनर्निर्माण करवाया था।

कहा जाता है की कई बार शासको ने इसे क्षति भी पहोचाई थी लेकिन फिर कुछ राजाओ ने मिलकर इस इतिहासिक पवित्र स्थान की मरम्मत भी करवाई थी।

सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्माने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

1948 में प्रभासतीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी।

यह जूनागढ रियासत का मुख्य नगर था| लेकिन 1948 के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा।

मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है।

सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व।

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