क्या आपके कुंडली मे भी है मंत्री या उच्च पद पाने का योग

समझें, क्या होता हैं स्थान परिवर्तन का राजयोग

भारतीय वैदिकज्योतिष, ईश्वर द्वारा संसार को दी गई एक अनमोल धरोहर है | इस धरोहर के माध्यम से हम एक दर्पण की भांति अपना भविष्य देख सकते हैं | यदि आप ज्योतिष के जानकार है या थोडा बहुत भारतीय ज्योतिष को समझते हैं तो इस लेख में (ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री)आपको मैं आपको अपने एक नए विचार/अनुभव से परिचित करवाऊंगा |

राशी परिवर्तन योग योग में दो ग्रह एक दुसरे की राशी में विराजमान होकर कुंडली को विशेष बना देते हैं | दो ग्रहों का आपस में राशी परिवर्तन यानी आपकी कुंडली के कम से कम दो ग्रह आपके लिए शुभ अवस्था में होना | यह ऐसा ही है जैसे आप किसी और के घर का ख्याल रखेंगे और वह व्यक्ति आपके घर का ख्याल रखेगा | ग्रहों की ये अवस्था विशेष है क्योंकि दोनों ग्रह पूरी तरह से एक दुसरे पर निर्भर हैं |

निर्भरता की इस अवस्था में ग्रहों का प्रभाव पूरी तरह से सकारात्मक होता है | दोनों ग्रहों का बल बढ़ जाता है | अब सवाल उठता है कि इस योग का फल कब मिलता है | उत्तर यह है कि जब एक की महादशा और दुसरे की अन्तर्दशा आती है तब परिवर्तन योग का फल मिलता है | यह समय बेहद भाग्यवर्धक रहता है | पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं कि वैसे तो वैदिक ज्योतिष में जन्म कुण्डली देखने के बहुत नियम है और कुण्डली में कई गणित ऐसे है जिन्हें ग्रहो पर लगा कर कुण्डली में कोई न कोई योग निर्मित होता है।वो योग अच्छे भी हो सकते है और बुरे भी।आज ऐसे ही एक योग की हम चर्चा करेंगे।जिसे कहते है परिवर्तन योग। मेरे के 18 साल के ज्योतीष अनुभव मैन इससे अच्छा और और जबरदस्त कोई योग नही देखा और परिवर्तन अगर बुरे भावो का हो तो ये बुरा योग बनेगा।

परिवर्तन योग एक ऐसा योग है जो पूरी कुंडली के फल को बदल के रख देता है।

स्थान परिवर्तन योग --
स्थान परिवर्तन योग से जीवन सुखमय बन जाता है!
आप यह जान लें कि उच्चाधिकारी, मन्त्री, मुख्यमन्त्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल बनने के लिए अल्पतम एक स्थान परिवर्तन योग आवश्यक है। अधिकतम तीन स्थान परिवर्तन योग एक जातक की कुण्डली में हो सकते हैं। यदि ये हों तो जातक उच्चाधिकारी, मन्त्री या प्रधानमन्त्री बनता है।

इन्दिरा गांधी की कुण्डली में लग्नेश-सप्तमेश, षष्ठेश-लाभेश, धनेश-पंचमेश स्थान परिवर्तन योग थे। यहां स्थान परिवर्तन के तीस योग दे रहे हैं। इनमें से यदि दूसरे, चौथे, पांचवें, सप्तम, नौवें, दसवें योग बनें तो अधिक शुभता रहती है। जातक धनी, उच्चाधिकारी, मन्त्री, प्रधानमन्त्री एवं राजा सदृश जीवन जीता है।
यहां तीस स्थान परिवर्तन योग की चर्चा कर रहे हैं जो कि इस प्रकार है-

1. भाग्येश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
2. लाभेश एवं धनेश का स्थान परिवर्तन योग
3. भाग्येश एवं दशमेश का स्थान परिवर्तन योग
4. चतुर्थेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
5. भाग्येश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग
6. लग्नेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
7. पंचमेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
8. भाग्येश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग
9. भाग्येश एवं लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग
10. लग्नेश एवं धनेश का स्थान परिवर्तन योग
11. भाग्येश एवं धनेश का स्थान परिवर्तन योग
12. लग्नेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग
13. दशमेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
14. धनेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग
15. धनेश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग
16. चतुर्थेश एवं पेचमेश का स्थान परिवर्तन योग
17. दशमेश एवं द्वितीयेश का स्थान परिवर्तन योग
18. दशमेश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग
19. दशमेश एवं लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग
20. दशमेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग
21. लग्नेश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग
22. पंचमेश एवं सप्तमेश का स्थान परिवर्तन योग
23. सप्तमेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग
24. सप्तमेश एवं दशमेश का स्थान परिवर्तन योग
25. सप्तमेश एवं नवमेश का स्थान परिवर्तन योग
26. तृतीयेश एवं लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग
27. पराक्रमेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
28. पराक्रमेश एवं षष्ठेश का स्थान परिवर्तन योग
29. षष्ठेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग
30. द्वादशेश एवं अष्टमेश का स्थान परिवर्तन योग।।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने समझाते हुए कहा कि मान लीजिये कुंडली में कोई ग्रह एक राशि पे बैठा है।जैसे सूर्य कर्क राशि पे बैठा है।और कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा सिंह राशि पे बैठा है।जो कि सूर्य की राशि है।यानी सूर्य और चंद्रमा किसी कुंडली मे एक दूसरे की राशि पे बैठ जाये तो इसे परिवर्तन योग कहते है।इस योग का फल देने की क्षमता कमाल की है।मेरे विचार में ऐसा योग दोनों भावो का संतुलन बना देता है।जिससे दोनों भावो के फल को बल मिलता है।कूण्डली में सबसे बड़े धन योग के लिए दूसरे और ग्यारवें भाव के ग्रहो का परिवर्तन होता है।लॉजिक से समझे एक ग्रह कमा रहा है और जमा करने वाली जगह पे उसकी duty है।और एक ग्रह जमा कर रहा है और उसकी duty कमाने वाले भाव मे है।तो धन योग तो बनेगा ही।इसी तरह इस योग का एक सबसे बड़ा बदलाव नीच भंग में होता है।सूर्य अगर तुला में नीच का है और शुक्र जो तुला का मालिक है वो सूर्य की सिंह राशि मे आ जाये तो नीच भंग होता है।और इसका प्रभाव भी कमाल का होगा।

समाज में प्रतिष्ठित पद पाना, उच्च शिक्षा, उच्च पद मिलना सफल राजनीतिज्ञ बनना आदि ये सब हर किसी को नहीं मिलता। यह जन्म के समय ग्रहों की अनुकूलता व बलवान होने पर ही निर्भर करता है।

पत्रिका क्या कहती है? अगर आपकी पत्रिका में लग्न, तृतीय (पराक्रम भाव), चतुर्थ (सुख भाव), पंचम (विद्या भाव), नवम (भाग्य) का बलवान होना व दशम (कर्म भाव) के साथ-साथ ग्रहों के अनुकूल होना भी आवश्यक हैइसके अलावा राजयोग भी सफलता की ओर ले जाते हैं।

अब आप इस योग की एक कुंडली देखे।

उक्त योगों को आप अपनी कुण्डली में ढूंढिए और देखिए कि कितने स्थान परिवर्तन योग आपकी कुण्डली में विद्यमान हैं। एक से अधिक हैं तो समझ लीजिए इन योगों के कारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में आप उच्चाधिकारी बन सकते हैं।
यदि इनके अतिरिक्त अन्य राजयोग भी विद्यमान हैं तो सोने में सुहागे वाली बात है। आप अवश्य उच्चाधिकारी, मन्त्री बनकर राजा सदृश जीवनयापन कर सकते हैं। ये योग अधिकारियों की कुण्डली में अवश्य होता है। योग बनाने वाले ग्रह योगकारक होते हैं, इनकी दशा आने पर ही इनका फल मिलता है। श्रीमती इन्दिरा गांधी जी की कुण्डली में तीन स्थान परिवर्तन योग थे।आप इनकी कुंडली internet पे एक बार जरूर देखे। इनकी कुण्डली में लगन और सपतम यानी शनि और चंद्र,छठे और ग्यारहवे यानी गुरु और शुक्र एवं दूसरे और पांचवे यानी सूर्य और मंगल का परिवर्तन है अर्थात 9 में से 6 महत्वपूर्ण ग्रहों के परिवर्तन योग से बहुत बड़े राजयोग बन रहे हैं। तो अब आप कभी किसी कुंडली की गणना में देखे तो ग्रहो का परिवर्तन भी जरूर देखे।

समझें कुछ परिवर्तन योग को :-

1 और 7 वे भाव वाले का परिवर्तन जातक को पत्नी के मामले में शुभ फल देता है।जिस दिन जातक की शादी होती है।जातक के जीवन मे एक अच्छा बदलाव आता है।

2रे और 11वे भाव का परिवर्तन जातक को अपार धन की प्रप्ति करवाता है।

10 वे और 11वे का परिवर्तन जातक के व्यपार में बहुत ज्यादा कामयाबी देगा।

9वे और 12वे भाव का परिवर्तन जातक को विदेश यात्रा या विदेश में व्यपार में सफलता देगा।

5वे और 9वे और लगन इसमे से किसी 2 का परिवर्तन जातक को भग्याशाली बनाता है।

2रे और 4थे का परिवर्तन जातक को पारिवारिक साथ और जातक हमेशा पारिवारिक संबंधों में शुभ फल देता है।ऐसा जातक परिवार में रहकर कामयाबी पाता है।

इसी तरह अगर 4थे या 2रे का 12 भाव से परिवर्तन हो तो जातक जन्म भूमि या परिवार से दूर रह कर ही कामयाब होता है।परिवार में रह कर उभरने में मेहनत ज्यादा लगती है।

इसके अतिरिक्त-
गुरु चन्द्र का लग्न व लग्नेश से संबंध हो,
पंचम भाव से संबंध हो,

नवम भाग्य भाव से संबंध हो,
दशम कर्म भाव से संबंध हो,
राशि परिवर्तन हो, जैसे लग्न का स्वामी नवम में हो व नवम भाव का स्वामी लग्न में हो,
लग्न व सप्तम भाव के स्वामी का राशि परिवर्तन हो,
पंचम व लग्न के साथ नवम भाव का स्वामी साथ हो,
पराक्रम यानी तृतीय भाव का स्वामी लग्न में हो व लग्न का स्वामी तृतीय भाव में हो,

इस प्रकार ग्रहों की युति सफलता के द्वार खोलती हैं।

पंडित दयानंद शास्त्री

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