इस तरह से उतर जाएगा कर्ज ,एकादशी को पूजा करने का यह है महत्त्व

इस तरह से उतर जाएगा कर्ज ,एकादशी को पूजा करने का यह है महत्त्व

जानिए ढोल ग्यारस (जल झुलनी एकादशी या परिवर्तनी एकादशी या वामन जयंती ) के महत्व, कथा एवम पूजन विधि को--
हिन्दू उपवास में ग्यारस या एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व होता हैं। कहते हैं जीवन का अंत ही सबसे कठिन होता हैं। उसे सुधारने हेतु एकदशी का व्रत किया जाता हैं. उन्ही में से एक हैं डोल ग्यारस। पापो से मुक्ति एवम सुखद अंत के लिए मनुष्य एकदशी व्रत का पालन करते हैं। एकदशी के दिन ग्रहों की दशायें बदली हैं जिस कारण मनुष्य में अव्यवहारिक परिवर्तन होते हैं इस तरह के परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए ही हिन्दू धर्म में एकादशी का महत्व निकलता हैं।
डोल ग्यारस मुख्य रूप से राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र, मध्यप्रदेश एवं उत्तरी भारत में मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों से भगवान् कृष्ण की मूर्ती को डोले (बेवाण) में सजाकर नगर भ्रमण एवं नौका बिहार के लिए ले जाया जाता है।हाड़ौती क्षेत्र (राजस्थान) में इस अवसर पर
भगवान गणेश ओर माता गौरी की पूजा एवं स्थापना की जाती है। देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है। संध्या समय में इन मूर्तियों को वापस ले आया जाता है।मान्यता है कि वर्षा ऋतु में पानी खराब हो जाता है, लेकिन एकादशी पर भगवान के जलाशयों में जल बिहार के बाद उसका पानी निर्मल होने लगता है। शोभायात्रा में सभी समाजों के मंदिरों के विमान निकलते है। कंधों पर विमान लेकर चलने से मूर्तियां झूलती हैं। ऐसे में एकादशी को जल झूलनी कहा जाता है।
पुराणोक्त मान्यताओं के अनुसार इस दिन (श्रीकृष्ण के जन्म के 18 दिन बाद) यशोदाजी का जलवा पूजन किया था। उनके संपूर्ण कपड़ों का प्रक्षालन किया था। उसी परंपरा के अनुसरण में डोल ग्यारस का त्योहार मनाया जाता है।
कहा जाता हैं बाल रूप में कृष्ण जी पहली बार इस दिन माता यशोदा और पिता नन्द के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे।
इन बेवाण (डोला ) को बहुत सुंदर भव्य रूप में झांकी की तरह सजाया जाता है। फिर एक बड़े जुलुस के साथ पुरे नगर में अखाड़ों, बेंड बजे, ढोल नगाड़ों, नाच-गानों के साथ इनकी यात्रा निकलती है. पुरे नगर में प्रसाद बांटा जाता है।डोल ग्यारस पर भगवान राधा-कृष्ण के एक से बढ़कर एक नयनाभिराम विद्युत सज्जित डोल (रथ) निकाले जाते हैं। इसमें साथ चल रहे अखाड़ों के उस्ताद तथा कलाकार अपने प्रदर्शन से सभी का मन रोमांचित करते हैं।
जिस स्थान में पवित्र नदियाँ जैसे नर्मदा, गंगा, यमुना आदि रहती है, वहां कृष्ण जी को नाव में बैठाकर घुमाया जाता है।
नाव को एक झांकी के रूप में सजाते है और फिर ये झांकी उस जगह के हर घाट में जा जाकर कृष्ण के दर्शन देती है और प्रसाद बांटती है. कृष्ण की इस मनोरम दृश्य को देखने के लिए घाट घाट में लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। मध्यप्रदेश के गाँव में इस त्यौहार की बहुत धूम रहती है, घाटों के पास मेले लगाये जाते है, जिसे देखने दूर दूर से लोग जाते है. पूरी नदी में नाव की भीड़ रहती है, सभी लोग नौका बिहार का आनंद लेते है।
3-4 घंटे की झांकी के बाद, कृष्ण जी को वापस मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया जाता है।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवे दिन यह ग्यारस मनाई जाती हैं। इस वर्ष 2019 में डोल ग्यारस (परिवर्तनी एकादशी एवम वामन जयंती) 9 सितम्बर 2019(सोमवार) को मनाई जायेगी। इस दिन बड़े बड़े जश्न मनाये जाते हैं। झाकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। रात्रि के समय सभी पुरे परिवार के साथ रतजगा कर डोल देखने शहरो में जाते हैं।
परिवर्तिनी (जलझूलनी/पद्मा एकादशी )तिथि और शुभ मुहूर्त --
एकादशी तिथि प्रारंभ : 08 सितंबर, 2019 को रात 10:41 बजे
एकादशी तिथि समाप्त : 10 सितंबर, 2019 को 12:31 बजे
पारण (व्रत तोड़ने का) समय : 10 सितंबर प्रात : 07:04 से 08:13
पारण तिथि के दिन एकादशी समाप्त होने का समय : प्रात: 07:04
श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था। एकादशी व्रत सबसे महान व्रत में आता हैं, उसमे भी इस ग्यारस को बड़ी ग्यारस में गिना जाता हैं।
इस एकादशी में चन्द्रमा अपनी 11 कलाओं में उदित होता है जिससे मन अतिचंचल होता है इसलिए इसे वश में करने के लिए इस दिन पद्मा एकादशी का व्रत रखा जाता है।
इसके प्रभाव से सभी दुखो का नाश होता है, समस्त पापो का नाश करने वाली इस ग्यारस को परिवर्तनी ग्यारस, वामन ग्यारस एवं जयंती एकादशी भी कहा जाता हैं।इस एकादशी के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र धोए थे। इस दिन कान्हा की पालना रस्म भी संपन्न हुई थी। अत: इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। इसकी कथा सुनने से ही सभी का उद्धार हो जाता हैं।
डोल ग्यारस की पूजा एवम व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्व मेघ यज्ञ के तुल्य माना जाता हैं।
इस दिन भगवान विष्णु एवं बाल कृष्ण की पूजा की जाती हैं, जिनके प्रभाव से सभी व्रतो का पुण्य मनुष्य को मिलता हैं।
इस दिन विष्णु के अवतार वामन देव की पूजा की जाती हैं उनकी पूजा से त्रिदेव पूजा का फल मिलता हैं।
यह हैं कथा जलझूलनी एकादशी की --
सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं। राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करते हैं।
इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं। राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पदमा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए यह ‘परिवर्तनी एकादशी’ भी कही जाती है। इसके अतिरिक्त यह एकादशी ‘पद्मा एकादशी’ और ‘जलझूलनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है। यह व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
डोल ग्यारस की कथा --इसी दिन वामन जयंती मनाई जाती हैं । इस दिन भगवान विष्णु अपनी शैया पर सोते हुए अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तनी ग्यारस कहा जाता हैं। इसी दिन दानव बलि जो कि एक धर्म परायण दैत्य राजा था, जिसने तीनो लोको में अपना स्वामित्व स्थापित किया था। उससे भगवान विष्णु ने वामन रूप में उसका सर्वस्व दान में ले लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दिया था. इस प्रकार इसे वामन जयंती कहा जाता हैं।
डोल ग्यारस के उपलक्ष मे एक और कथा कही जाती हैं --
इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात सूरज पूजा. इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवाकर उन्हें नये कपड़े पहनायें एवं उन्हें शुद्ध कर धार्मिक कार्यो में सम्मिलित किया. इस प्रकार इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता हैं।
इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था. उसी प्रकार आज तक इस दिन मेले एवम झांकियों का आयोजन किया जाता हैं. माता यशोदा की गोद भरी जाती हैं। कृष्ण भगवान को डोले में बैठाकर झाँकियाँ सजाई जाती हैं. कई स्थानो पर मेले एवम नाट्य नाटिका का आयोजन भी किया जाता हैं।
ऐसे करें डोल ग्यारस की पूजन एवम व्रत --
मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु, श्री कृष्ण को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है। उनको स्नान कराया जाता है। इस एकादशी के दिन व्रत कर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। इस व्रत में धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प आदि से पूजा करने की विधि-विधान है। सात कुंभ स्थापित किए जाते हैं। सातों कुंभों में सात प्रकार के अलग-अलग धान्य भरे जाते हैं। इन सात अनाजों में गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है। एकादशी तिथि से पूर्व की तिथि अर्थात दशमी तिथि के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए।
कुंभ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रख पूजा की जाती है। इस व्रत को करने के बाद रात्रि में श्री विष्णु जी के पाठ का जागरण करना चाहिए यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर, द्वादशी तिथि तक जाता है। इसलिए इस व्रत की अवधि सामान्य व्रतों की तुलना में कुछ लंबी होती है। एकादशी तिथि के दिन पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान में दिया जाता है।
डोल ग्यारस/वामन एकादशी पर करें इन उपायों को, अवश्य होगा लाभ --
जिन युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा है वे इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पीले पुष्पों से श्रृंगार करें। उन्हें सुगंधित चंदन लगाएं और इसके बाद बेसन की मिठाई का नैवेद्य लगाएं। शीघ्र ही विवाह की सम्भावना बनेगी।
जीवन में आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंदिर में एक साबुत श्रीफल और सवा सौ ग्राम साबुत बादाम चढ़ाएं।
इस एकादशी की रात्रि में अपने घर में या किसी विष्णु मंदिर में भगवान श्रीहरि विष्णु के सामने नौ बत्तियों वाला रात भर जलने वाला दीपक लगाएं। इससे आर्थिक प्रगति तेजी से होने लगती है। सारा कर्ज उतर जाता है और व्यक्ति जीवन सुख-सौभाग्य से भर जाता है।
इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन करते समय कुछ सिक्के उनके सामने रखें। पूजन के बाद ये सिक्के लाल रेशमी कपड़े में बांधकर अपने पर्स या तिजोरी में हमेशा रखें। इससे आपके धन के भंडार भरने लगेंगे। यह उपाय विशेषकर व्यापारियों को अवश्य करना चाहिए।
यदि आपको बार-बार कर्ज लेने की नौबत आती है। लाख कोशिशों के बाद भी कर्ज नहीं उतर पा रहा है तो इस एकादशी के दिन पीपल के पेड़ की जड़ में शक्कर डालकर जल अर्पित करें और शाम के समय पीपल के नीचे दीपक लगाएं।
पंडित दयानंद शास्त्री

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