संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है यह व्रत,गाय-बछड़ों की जाती है पूजा

संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है यह व्रत,गाय-बछड़ों की जाती है पूजा

जानिए ओर समझें गोवत्स द्वादशी(Govatsa Dvadashi) के महत्व को।

गोवत्स एकादशी को मनाये जाने के कारण एवम कथा को--
कार्तिक कृष्ण द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है. इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं. गुजरात में इसे वाघ बरस भी कहते हैं. यह एकादशी (Ekadashi 2019)के बाद आता है. गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता और बछड़े की पूजा की जाती है. यह पूजा गोधुली बेला में की जाती है, जब सूर्य देवता पूरी तरह ना निकले हों.
इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं. खासतौर से पुत्र को संतान के रूप में प्राप्त करने वाली महिलाओं के लिए ये व्रत करना शुभकारी होता है।इस दिन गाय तथा बछड़ों की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।
घर के आस-पास यदि गाय और बछडा़ न मिले, तो गीली मिट्टी से उनकी आकृति बनाकर पूजा करने का विधान है। इस व्रत में गाय के दूध से बनी चीजें नहीं खाई जातीं।
गोवत्स द्वादशी का महत्व---
गोवत्स द्वादशी से संबंधित कई पौराणिक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार राजा उत्तानपाद और उनकी पत्नी सुनीति ने सबसे पहले ये व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से ही उन्हें भक्त ध्रुव जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई। इसलिए निसंतान पति-पत्नी को उत्तम संतान के लिए ये व्रत करना चाहिए। इस दिन गाय की पूजा करने से भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं।
वैदिक पंचांगनुसार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी (12वें दिन) को गोवत्स द्वादशी का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार गाय माता को समर्पित है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार यह पर्व इस बार शुक्रवार (25 अक्टूबर) को मनेगी।
वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार गोवत्स द्वादशी गुरुवार (24 अक्टूबर) रात 10 बजकर 19 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 25 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 8 मिनट तक रहेगी।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि यह त्योहार धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद गाय-बछड़ों को खाने के लिए गेंहू और उड़द से बनी चीजें दी जाती हैं।
गोवत्स द्वादशी को विधि पूर्वक मनाने वाले व्रतधारी इस दिन गेंहू और दूध से बनी चीजों के सेवन से परहेज करते हैं।
गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत भी कहते हैं। हिंदुओं में नदिनी एक पवित्र गाय का नाम है। महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी को वासु बरस के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स द्वादशी को दिवाली शुरू होने का पहले दिन माना जाता है।
यह रहेगा गोवत्स द्वादशी शुभ मुहूर्त--
गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त शुक्रवार (25 अक्टूबर) को शाम 05:42 बजे से 08:15 बजे तक है। प्रदोष काल का समय दो घंटे तैतीस मिनट है।
इस विधि से करें व्रत---
सबसे पहले व्रती (व्रत करने वाला) को सुबह स्नान आदि करने के बाद दूध देने वाली गाय को उसके बछडे़ सहित स्नान कराना चाहिए। फूलों की माला पहनाएं। माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। तांबे के बर्तन में पानी, चावल, तिल और फूल मिलाकर नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए गाए के पैरों पर डालें।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
इस मंत्र का अर्थ है- समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा नमस्कार की गई देवस्वरूपिणी माता, आपको बार-बार नमस्कार है। मेरे द्वारा दिए गए इस अर्घ्य को आप स्वीकार करें। इसके बाद गाय को विभिन्न पकवान खिलाएं और नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलें-
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता। सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥ तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते। मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी॥
इस तरह गाय और बछड़ों की पूजा करने के बाद गोवत्स व्रत की कथा सुनें। पूरा दिन व्रत रखकर रात में अपने इष्टदेव और गौमाता की आरती करें। इसके बाद भी भोजन करें।

Share this story