8 नवंबर 2019 से 12 नवंबर 2019 तक भीष्म पंचक रहेंगे

8 नवंबर 2019 से 12 नवंबर 2019 तक भीष्म पंचक रहेंगे

आज से होंगें "भीष्म पंचक" (आरम्--

जाने और समझें "भीष्म पंचक व्रत" के महत्व एवम विधि को---

वैसे तो ज्योतिष में "पंचक" को शुभ नहीं माना जाता है। अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों के योग में पंचक के पांच दिन शुभ कार्य वर्जित हैं पर भीष्म पंचक में सभी कार्य शुभ माने जाते हैं। भीष्म पंचक और सामान्य पंचक में बहुत फर्क है। भीष्म पंचक जहां बेहद शुभ हैं, वहीं सामान्य पंचक में सावधान रहना चाहिए। पहले भीष्म पंचक। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि भीष्म पितामह ने सर्वप्रथम इस व्रत को किया था, इसलिए यह भीष्म पंचक नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाभारत युद्ध के पश्चात जब भीष्म ने कृष्ण के अनुरोध पर कृष्ण सहित पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया। भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानी पांच दिनों तक चलता रहा। भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में ‘भीष्म पंचक’ के नाम से जाना जाएगा।

इस वर्ष आज 8 नवंबर 2019 से 12 नवंबर 2019 तक भीष्म पंचक रहेंगे।

पुराणों तथा हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में कार्तिक स्नान को बहुत महत्त्व दिया गया है। अतः कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था इसलिए यह ‘भीष्म पंचक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक के अंतिम पाँच दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम पांच दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है। जैसे कहीं अनजाने में जूठा खा लिया है तो उस दोष को निवृत्त करने के लिए बाद में आँवला, बेर या गन्ना चबाया जाता है। इससे उस दोष से आदमी मुक्त होता है, बुद्धि स्वस्थ हो जाती है। जूठा खाने से बुद्धि मारी जाती है। जूठे हाथ सिर पर रखने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, कमजोर होती है।

इसी प्रकार दोषों के शमन और भगवदभक्ति की प्राप्ति के लिए कार्तिक के अंतिम पाँच दिन प्रातःस्नान, श्रीविष्णुसहस्रनाम’ और ‘गीता’ पाठ विशेष लाभकारी है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि निःसंतान व्यक्ति पत्नी सहित इस प्रकार का व्रत करें तो उसे संतान कि प्राप्ति होती है l जो अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं, वैकुण्ठ चाहते हैं या इस लोक में सुख चाहते हैं उन्हें यह व्रत करने कि सलाह दी गयी है l

भीष्म पंचक की अवधि में इनको नहीं खाना चाहिए---

इन पांच दिनों में अन्न का त्याग करें। कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है ) लें।

इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व् गोबर-रस का मिश्रण ) का सेवन लाभदायी है l पानी में थोडा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है। इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

जानिए भीष्म पंचक की पौराणिक कथा---

महाभारत युद्ध के बाद जब पांण्डवों की जीत हो गयी तब श्री कृष्ण भगवान पांण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि आप पांण्डवों को अमृत स्वरूप ज्ञान प्रदान करें. भीष्म भी उन दिनों शर सैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे. कृष्ण के अनुरोध पर परम वीर और परम ज्ञानी भीष्म ने कृष्ण सहित पाण्डवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया. भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पांच दिनों तक चलता रहा. भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया तब श्री कृष्ण ने कहा कि आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गया है. इन पांच दिनों को भविष्य में भीष्म पंचक व्रत के नाम से जाना जाएगा. यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी होगा।

आपने कार्तिक महीने की एकादशी के दिन जल की याचना की है और अर्जुन ने पृथ्वी को बाण से वेधकर आपकी तृप्ति के लिए गंगाजल प्रस्तुत किया है। जिससे आपके तन, मन तथा प्राण सन्तुष्ट हो गये। अत: आज से लेकर पूर्णिमा तक सब लोग आपको अर्घ्यदान से तृप्त करें तथा मुझको प्रसन्न करने वाले प्रतिवर्ष इस भीष्म पंचक व्रत का पालन करें। अत: प्रतिवर्ष भीष्म तर्पण करना चाहिए. यह सभी वर्णों के लिए श्रेयस्कर है।

भीष्मजी को अर्ध्य देने से पुत्रहीन को पुत्र प्राप्त होता है। जिसको स्वप्नदोष या ब्रह्मचर्य सम्बन्धी गन्दी आदतें या तकलीफें हैं, वह इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्ध्य देने से ब्रह्मचर्य में सुदृढ़ बनता है। हम सभी साधकों को इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्ध्य जरुर देना चाहिए और ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

पंच भीखू कथा --
पंच भीखू व्रत में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है। इस कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार था। इस साहूकार की पुत्रवधु बहुत ही संस्कारी थी। वह कार्तिक माह में बहुत पूजा-पाठ किया करती थी। कार्तिक माह में वह ब्रह्म मुहुर्त में ही गंगा में स्नान के लिए जाती थी। जिस नगर में वह रहती थी, उस नगर के राजा का बेटा भी गंगा स्नान के लिए जाता था। उसके अंदर बहुत अहंकार भरा था। वह कहता कि कोई भी व्यक्ति उससे पहले गंगा स्नान नहीं कर सकता है। जब कार्तिक स्नान के पांच दिन रहते हैं, तब साहूकार की पुत्रवधु स्नान के लिए जाती है। वह जल्दबाजी में हार भूल जाती है और वह हार राजा के लड़के को मिलता है। हार देखकर वह उस स्त्री को पाना चाहता है। इसके विषय में यह कहा गया है कि वह एक तोता रख लेता है ताकि वह उसे बता सके कि साहूकार की पुत्रवधु आई है, लेकिन साहूकार की पुत्रवधु भगवान से अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा करने की प्रार्थना करती है। भगवान उसकी रक्षा करते हैं। उनकी माया से रोज रात में साहूकार के बेटे को नींद आ जाती। वह सुबह सो कर उठता और तोते से पूछता है, तब वह कहता है कि वह स्नान करने आई थी। पांच दिन स्नान करने के बाद साहूकार की पुत्रवधु तोते से कहती है कि मैं पांच दिन तक स्नान कर चुकी हूं, तुम अपने स्वामी से मेरा हार लौटाने को कह देना। राजा के पुत्र को समझ आ गया कि वह स्त्री कितनी श्रद्धालु है। कुछ समय बाद ही राजा के पुत्र को कोढ़ हो जाता है। राजा को जब कोढ़ होने का कारण पता चलता है, तब वह इसके निवारण का उपाय ब्राह्मणों से पूछता है। ब्राह्मण कहते हैं कि यह साहूकार की पुत्रवधु को अपनी बहन बनाए और उसके नहाए हुए पानी से स्नान करे, तब यह ठीक हो सकता है। राजा की प्रार्थना को साहूकार की पुत्रवधु स्वीकार कर लेती है और राजा का पुत्र ठीक हो जाता है। भीष्म पंचक व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु पश्चात उत्तम गति प्राप्त होती है। यह व्रत पूर्व संचित पाप कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। जो भी यह व्रत रखता है, उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यह व्रत पूर्व संचित पाप कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। भीष्म पंचक व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु पश्चात् उत्तम गति प्राप्त होती है। जो भी यह व्रत रखता है, वह सदैव स्वस्थ रहता है तथा उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत पूर्व संचित पाप कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। मान्यता है कि जो लोग इस व्रत को करते हैं वो जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

उत्तर भारत में कुंआरी और विवाहित स्त्रियां एक परंपरा के रूप में कार्तिक मास में स्नान करती हैं। ऐसा करने से भगवान विष्णु उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। जब कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी आती है, तब कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियां शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती हैं। पूरे विधि-विधानपूर्वक गाजे-बाजे के साथ एक सुंदर मंडप के नीचे यह कार्य संपन्न होता है। विवाह के समय स्त्रियां मंगल गीत तथा भजन गाती हैं।

कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।

कब और क्यों मनाई जाती है??
यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है।


समझें, क्या होते हैं पंचक??

पंचक अर्थात् पांच नक्षत्रों का समूह धनिष्ठा के स्वामी मंगल, शतभिषा के स्वामी राहू, पूर्वाभाद्रपद के बृहस्पति, उत्तराभाद्रपद के शनि और रेवती के स्वामी बुध आदि से बनता है। पंचक में शामिल सभी नक्षत्र मृत्यु आदि में अशुभ माने गए हैं। यह तो आप जानते ही हैं कि पंचक में ब्राह्मण आदि समस्त जातियों का दाह संस्कार-बलिकर्म पंचक की शांति होने तक नहीं किया जा सकता। कुंभ राशि में तो यात्रा, किसी भी प्रकार की खरीदारी आदि निषेध है। मीन राषि में आप यात्रा करें तो कम से कम पांच यात्राएं तो आपको करनी ही होंगी। यात्रा के शौकीन लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।


भीष्म पंचक व्रत नियमों को---
पद्म पुराण में श्री भीष्म पंचक व्रत की महिमा का वर्णन इस प्रकार से है।

भीष्म पंचक व्रत में चार द्वार वाला एक मंडप बनाया जाता है। मंडप को गाय के गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है। वेदी पर तिल रख कर कलश स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है। इस व्रत में कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं।

प्रतिदिन “ऊँ नमो वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें. प्रतिदिन संध्या के समय संध्या वन्दना कर उपरोक्त मंत्र का 108 बार जाप कर भूमि पर शयन करें. एकादशी से भगवान विष्णु का पूजन कर उपवास रखें. उसके बाद द्वादशी के दिन व्रतधारी मनुष्य भूमि पर बैठकर मन्त्रोचारण के साथ गोमूत्र का सेवन करें. त्रयोदशी को केवल दूध ग्रहण करें. चतुर्दशी को दही का सेवन करें. इस प्रकार चार दिनों तक व्रत करें, जिससे शरीर की शुद्धि होती है. पांचवें दिन स्नान कर भगवान केशव की पूजा करें तथा ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा दें.
शाकाहारी भोजन करें तथा हर पल श्री हरि का पूजन करें. उसके बाद पंचगव्य खाकर अन्न ग्रहण करें. विधिपूर्वक इस व्रत को पूरा करने से मनुष्य को शास्त्रों में लिखे फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. महापातकों का नाश होता है तथा मनुष्य परमपद को प्राप्त करता है, ऎसा पद्म पुराण में कहा गया है।
इस व्रत में गंगा पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण का विधान है।

भीष्म तर्पण के लिए निम्न मन्त्र शुद्धभाव से पढ़कर तर्पण करना चाहिए।

यह हैं तर्पण मंत्र---

सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।
भीष्मायेतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्म ब्रह्मचारिणे ।।

अर्थ आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले परम पवित्र सत्यव्रत पारायण गंगानन्दन महात्मा भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।

जो मनुष्य निम्नलिखित मंत्र द्वारा भीष्म जी के लिए अर्घ्यदान करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस मंत्र से देवें अर्घ्य ---

वैयाघ्रपद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च ।
अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च ।
अर्घ्यं ददानि भीष्माय आजन्म ब्रह्मचारिणे ।।

अर्थ--- जिनका गोत्र व्याघ्रपद और सांकृतप्रवर है, उन पुत्र रहित भीष्म जी को मैं जल देता हूँ. वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ. जो भी मनुष्य अपनी स्त्री सहित पुत्र की कामना करते हुए भीष्म पंचक व्रत का पालन करता हुआ तर्पण और अर्घ्य देता है. उसे एक वर्ष के अन्दर ही पुत्र की प्राप्ति होती है. इस व्रत के प्रभाव से महापातकों का नाश होता है.
अर्घ्य देने के बाद पंचगव्य, सुगन्धित चन्दन के जल, उत्तम गन्ध व कुंकुम द्वारा सभी पापों को हरने वाले श्री हरि की पूजा करें. भगवान के समीप पाँच दिनों तक अखण्ड दीप जलाएँ. भगवान श्री हरि को उत्तम नैवेद्य अर्पित करें. पूजा-अर्चना और ध्यान नमस्कार करें. उसके बाद “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का 108 बार जाप करें. प्रतिदिन सुबह तथा शाम दोनों समय सन्ध्यावन्दन करके ऊपर लिखे मन्त्र का 108 बार जाप कर भूमि पर सोएं. व्रत करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना अति उत्तम है. शाकाहारी भोजन अथवा मुनियों से प्राप्त भोजन द्वारा निर्वाह करें और ज्यादा से ज्यादा समय विष्णु पूजन में व्यतीत करें. विधवा स्त्रियों को मोक्ष की कामना से यह व्रत करना चाहिए।

पूर्णमासी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएँ तथा बछड़े सहित गौ दान करें. इस प्रकार पूर्ण विधि के साथ व्रत का समापन करें. पाँच दिनों का यह भीष्म पंचक व्रत-एकादशी से पूर्णिमा तक किया जाता है. इस व्रत में अन्न का निषेध है अर्थात इन पाँच दिनों में अन्न नहीं खाना चाहिए. इस व्रत को विधिपूर्वक पूर्ण करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं तथा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

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