कैसी होगी सास यह भी बताती है कुंडली ,देखिए इस तरीके से

कैसी होगी सास यह भी बताती है कुंडली ,देखिए इस तरीके से

राहु और शनि ग्रह का है सास के साथ सीधा संबंध

jyotish desk -वैदिक ज्योतिष में जन्म कुंडली का सप्तम भाव जीवन साथी का भाव होता है और कुंडली का चौथा भाव मां का भाव होता है। अब इससे सास के बारे में कैसे जाना जाए?

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि किसी भी जातक की जन्म कुंडली का दशम भाव जो सप्तम से चतुर्थ भाव होता है उससे हम सास के बारे में जान सकते हैं। उस भाव में स्थित राशि, उसके स्वामी की स्थिति तथा उस भाव में बैठे ग्रह और दृष्टि आदि माध्यम से उस भाग को प्रभावित करने वाले ग्रहों के अनुसार हम जातक या जातिका की सास के स्वभाव के बारे में जान सकते हैं।

सास शब्द हो हमारे समाज में एक होवा बना दिया गया है और जिसमे समाज से ज्यादा आजकल चल रहे सीरियल का ज्यादा योगदान होता है | अब हम यदि सर्वेक्षण करे तो हम पायेंगे की 90 प्रतिशत से ज्यादा बहुवें अपनी सास से संतुष्ट नही होती है ।

अब हम समाज में इतने बड़े स्तर पर बदलाव तो किसी तरह से कर नही सकते क्योंकि समय परिवर्तन लाता रहता है कुछ समय पहले सास ही घर में सब कुछ होती थी तो आजकल बहु ही सबकुछ होती है और जो सास अपनी बहु की न माने उन घरो में लड़ाई झगड़े होना सामान्य बात होती है ।

सास अपना शासन बहु पर चालना चाहती है और बहु अपनी निजी जिन्दगी में किसी प्रकार का हस्तछेप स्वीकार नही करती और पति पत्नी दोनों के सम्बन्ध अच्छे होते हुवे भी उन्हें तलाक तक की नोबत आ जाती है और ऐसी बहुत सी कुंडलियाँ भी आती रहती है की लडकी कहती है पति तो बहुत अच्छे है लेकिन सास के कारण तलाक हो गया या होने की कगार पर है । अब इसके क्या ज्योतिषीय कारण है उस पर चर्चा करते है।

यदि कुंडली में के दशम भाव में एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव हो और जातिका हाउसवाइफ हो यानी कि कामकाजी न हो तो विवाद की संभावना अधिक रहती है। क्योंकि कामकाजी व्यक्ति को विवाद करने का समय नहीं मिलता, वह अपने काम में ही उलझा रहता है और जब थोड़ा बहुत समय मिलता है तो वह सुकून ढूंढता है, जिसे वह परिजनों के माध्यम से प्राप्त करना चाहता है। आपने देखा होगा कि कामकाजी महिलाएं दिनभर ऑफिस से काम करके जब घर लौटती हैं तो वह इतनी थक चुकी होती है कि अगर अपने घर वालों से थोड़ी सी बात करती हैं, घर के काम निपटाती हैं और आराम करना चाहती हैं। साथ ही दिन भर अलग अलग रहने से भी विवाद की संभावनाएं कम रहती हैं। अतः जिनकी कुंडली का दशम भाव एक से अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव से युक्त हो ऐसी महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने की सलाह हम दिया करते हैं।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि यदि दशम भाव में एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो सास के साथ असमंजस से देखा जा सकता है। हालांकि ऐसा मेरे अनुभव में देखने को मिला है कि दशम भाव में स्थित पाप ग्रह जातक या जातिका के कार्यक्षेत्र को आगे बढ़ाते हैं लेकिन वही ग्रह सास के साथ संबंधों को कमजोर करते हैं। यदि किसी स्त्री जातिका की कुंडली में दशम भाव पर एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातिका कामकाजी होती है लेकिन उसकी सास उसके काम का विरोध करती हुई देखी जाती है।
 

यदि दशम में एक से अधिक पाप ग्रह बैठे हो तो वह चतुर्थ भाव को देखते हैं अथवा चतुर्थ में एक से अधिक भाव पाप ग्रह बैठे हो तो वह दशम भाव को देखते हैं यानी दशम यह चतुर्थ दोनो में से किसी भाव में अगर पाप ग्रह बैठे हैं तो वह घरेलू सुख शांति को बाधा पहुंचाते हैं, मानसिक अशांति देते हैं और चिड़चिड़ापन भी देते हैं। ऐसी स्थिति में घरेलू विवाद बढ़ जाता है।

यदि हम अपनी कुन्डली के चौथे भाव को देखते है तो चौथा भाव हमारी माता के बारे में पूरी स्थिति देता है,माता की पूरी जिन्दगी के बारे में चौथा भाव ही महत्ता रखता है,चौथे से दूसरा भाव, पांचवां माता के धन को प्रदर्शित करता है संचित धन और जो जातक की सन्तान होगी वो माता का पोता होगी और माता उसके उपर अपना अधिकार ज्यादा दर्शाती है जैसा की आपने देखा होगा की दादी को अपने पोते या पोती से ज्यादा लगाव होता है ।

माता के ये कुटुंब का भाव हुआ ,छठा भाव माता के छोटे भाई बहिनो के बारे में और माता के द्वारा बोल चाल के शब्द, माता के द्वारा खुद को प्रदर्शित करने के बारे में ज्ञान देता है,यह भाव तब और महत्व पूर्ण हो जाता है,जब किसी वर की कुन्डली देखी जाती है,कारण वधू के साथ उसकी सास किस प्रकार से अपने को प्रदर्शित करेगी,सातवां भाव माता की जायदाद से समझा जाता है,और इसी कारण से सास बहू को अपनी परसनल जायदाद समझती है,क्योंकि माता का चौथा भाव कुन्डली का सातवां भाव होता है,साथ ही माता का पत्नी पर हावी रहने वाला प्रभाव भी इसी बात पर निर्भर रहता है,कि जिस प्रकार से कोई अपनी गाडी को संभाल कर सजा कर समाज के सामने प्रदर्शित करना चाहता है,और अपने प्रकार से उस पर सवारी करने की इच्छा रखता है,उसी प्रकार से माता अपनी बहू को सजा संवार कर और अपने प्रकार से उसे चलाने की कोशिश करती है,बहू अगर गाडी की तरह से भार उठाने के काबिल है तो जीवन की गाडी सही चलती है,वरना रास्ते में ही खडी रह जाती है|

अब कोई भी इन्सान हो वो अपनी सम्पति को अपने हिसाब से प्रयोग करना चाहती है बहु सास की सम्पति हुई और अब ये बहु रूपी सम्पति अपना जीवन अपने हिसाब से बिताना चाहती है और यंही आकर गडबड हो जाती है क्योंकि ये बहु के लिय उसका लग्न है जबकि माता के लिए उसकी सम्पति । अब कोई भी इंसान खुद को दुसरे की सम्पति होना सहन नही कर सकता जिसके कारण सास बहु के आपस में विचार नही मिल पाते है ।

अब हम ग्रहों में देखें तो चन्द्र देव जो की माता के कारक होते है शुक्र देव जो की पत्नी के कारण होते है ।अब यदि हम थोडा गहराई से देखें तो पाते है की चन्द्र देव शुक्र की राशि में उंच होते है यानी की एक माँ को यदि कोई सबसे ज्यादा सुख दे सकती है तो वो उसकी बहु होती है और उसके घर में जाकर वो अपने को बलि मानती है | लेकिन जब कुंडली में शुक्र चन्द्र की युति हो जाती है तो सास बहु के आपस में विचार न मिलने के योग प्रबल रूप से हो जाते है क्योंकि कोई भी दो ग्रह जब ही भाव में हो तो वो तात्कालिक शत्रु हो जाते है |

इसके अलावा जन्मपत्री में उपस्थित कमजोर, नीच राशि या पाप ग्रह के साथ बैठा चंद्रमा भी सास बहू के बीच झगड़ा करवाता है। यह भी देखने को मिला है कि सास बहू दोनों की अथवा कम से कम 2 में से 1 की कुंडली में चंद्रमा केतु या चंद्रमा शनि का संबंध देखने को मिलता है।

सारांश की कुंडली का दशम भाव एक से अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव में हो अथवा चतुर्थ भाव एक से अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब सास बहू के बीच झगड़ा होता है। दूसरी स्थिति जो अक्सर देखने को मिलती है वो है चंद्रमा पर राहु, केतु और शनि जैसे पाप ग्रहों का प्रभाव। यह प्रभाव में मानसिक तनाव व घरेलू कलक के योग बनाता है। ऐसे में हमने सास बहू के बीच झगड़े होते हुए देखे गए हैं।


शुक्र स्त्री का कारक है | पुरुष की कुंडली हो तो शुक्र पत्नी का कारक है | इसलिए पुरुष की कुंडली में शुक्र का अच्छा होना जरूरी है।

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा माता और सूर्य पिता का कारक हैं |

बुध से छोटी या बड़ी बहन का विचार किया जाता है | मंगल भाई का कारक है |

गुरु स्त्री की कुंडली में पति का परिचायक है । और किसी भी स्त्री की कुंडली में गुरु का अच्छा होना अच्छे विवाह के लिया जरूरी है।

राहू से ससुराल और ससुराल से जुड़े सभी लोगों का पता लगाया जाता है |

यदि हम नक्षत्रों को साथ लेकर चलते हैं तो हम गहराई से किसी भी रिश्ते के बारे में जान सकते हैं।

जैसे कि मेरी ससुराल कैसी होगी | मेरी सास के साथ मेरी बनेगी या नहीं | साले और सालियाँ या जीजा और बड़ी बहन के विषय में राहू और राहू के नक्षत्रों से काफी कुछ जाना जा सकता है |

इसी तरह हम जन्मकुंडली में भी देख सकते हैं | पहला घर यानी आप | आपसे सातवाँ घर आपकी पत्नी का है |

यदि पत्नी के भाई का विचार करना हो तो पत्नी का स्थान यानी सातवाँ और सातवें से तीसरा पत्नी के भाई का होता है | इस तरह नौवें घर से आप अपने साले और सालियों के बारे में जान सकते हैं |

विवाह से पहले अधिकतर लड़कियां अपनी ससुराल के बारे में जानना चाहती हैं यानी उनके ससुर कैसे होंगे ??

देवर, देवरानी जेठ, जेठानी, ननद, जीजा और सास ससुर के साथ सम्बन्ध कैसे रहेंगे ??
क्या लम्बे समय तक आपके सम्बन्ध कायम रहेंगे ? क्या आपको सास या ससुर से प्यार मिलेगा?

इसी तरह के सवालों के जवाब के लिए आपको ये समझ होनी आवश्यक है कि जिस स्थान में पाप ग्रह या कुपित ग्रह या नीच का ग्रह बैठा है उस घर से सम्बंधित सभी रिश्तों से आपको निराशा ही मिलेगी |

जैसे कि दशम भाव में राहू होने से आपकी ससुराल आपके लिए न के बराबर रहेगी यानी संबंधों में न्यूनता ।

यदि आपका शनि नीच का है तो आपके घर में बुजुर्गों का हमेशा अभाव रहेगा |

यदि आपकी कुंडली में राहु अच्छा नहीं है तो ससुराल से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा और यदि आपका राहू अच्छा है तो ससुराल से न केवल आपके जीवन भर मधुर सम्बन्ध जुड़े रहेंगे अपितु समय समय पर ससुराल से मदद भी मिलेगी

इस विवाद को शांत करने के लिए क्या करना चाहिए तो आप जान लें कि सबसे पहले किसी अच्छे ज्योतिषी को कुंडली दिखाकर झगड़े कारक ग्रह को ढूंढ़े। जब आप यह जान लेंगे कि इस ग्रह के कारण आपके घर में यह परेशानी आ रही है तो संबंधित ग्रह का उपाय करवाएं।पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि संबंधित ग्रह के मंत्र का जप और हवन करवाएं। जब तक ग्रह शांति का अनुष्ठान हो पाए तब तक कुछ छोटे-छोटे उपाय जो हम आपको बताने जा रहे हैं उन्हें अपनाएं।

इस समस्या का समाधान कैसे हो ???

वैसे तो इसके लिय सर्वप्रथम दोनों को अपने विचाओं में बदलाव की आवश्यकता होती है लेकिन साथ ही ज्योतिषीय दृष्टी से देखें तो सबसे पहले हमे घर का वास्तु इस विषय में अवस्य देखना चाहिए |

पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार यदि घर में वायव्य कोण पर चन्द्र का तो आग्नेय कोण पर शुक्र का अधिकार होता है और जब घर में ये दोनों दूषित हो रहे हो इन स्थानों पर टॉयलेट हो या कबाड़ आदि रखा जाता हो तो फिर सास बहु के विचार आपस में कम ही मिल पाते है तो सबसे पहले तो इन दोषों को दूर करना आवश्यक होता है ।

इसके साथ घर में सभी सदस्यों की एक साथ मुस्कराते हुवे ऑटो या पिक्चर लगाना भी आपसी मतभेदों को दूर करने में सहायता करता है ।

इसके साथ ही घर में कच्चा आगन अवश्य होना चाहिय यानी की कुछ कच्ची जगह अवस्य होनी चाहिए ऐसे में न होने पर घर में स्त्रियों को कोई न कोई समस्या बनी ही रहती है ।


इन उपायों से होगा लाभ -

कभी भी किसी बाहर के व्यक्ति से उपहार में सफेद चीजें, चांदी, पानी और दूध जैसी चीजें नहीं लेनी चाहिए बल्कि खाने या लगाने के रूप में केसर का प्रयोग करना चाहिए ।

प्रत्येक चौथे महीने घर मे ही ‘रुद्राभिषेक‘ करवाना चाहिए।

यदि जातक की कुंडली में शुक्र या चन्द्र यदि पीड़ित हो रहे हो तो उनके दोष को दूर करने के उपाय करने भी आवश्यक होते है ।

रोज या कम से कम सोमवार के दिन शिवलिंग पर दूध मिला जल चढ़ाना चाहिए। इससे तुलनात्मक रूप से बेहतर अनुभव होगा।

मित्रों ये आंशिक रूप से इस विषय पर कुछ लिखने का प्रयास है | बाकी आप सभी मित्रों के विचार भी आमंत्रित है यदि कोई मित्र चाहे तो वो अपने विचार रख सकता है ।
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पंडित दयानंद शास्त्री

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