Guggal Dhoop से negative Energy इस तरह होती है दूर

Guggal Dhoop से negative Energy इस तरह होती है दूर

Guggal Dhoop Benefits

गुग्गल के पेड़ की छाल से जो गोंद निकलता है उसे गुग्गुल कहा जाता है ।

इस गोंद के इस्तेमाल से आप कई तरह के रोगों से बचाव कर सकते हो । यह आयुर्वेद का अमृत होने के कारण इसे अमृतम गुग्गल (guggal dhoop benefit) भी कह सकते हैं ।

यह एक तरह का छोटा पेड है इसकी कुल उंचाई 3 से 4 मीटर तक होती है। और इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है ।गुग्गुल गोंद की तरह होता है जो गर्म तासिर का और कड़वा होता है।

नया गुग्गलु चिकना, सोने के समान, निर्मल, सुगन्धित, पीले रंग का तथा पके जामुन के समान दिखने वाला होता है। इसके अलावा नवीन गुग्गुलु फिसलने वाला, वात, पित्त और कफ को दूर करने वाला, धातु और शुक्राणु या स्पर्म काउन्ट बढ़ाने वाला और शक्तिवर्द्धक होता है।

पुराना गुग्गुलु कड़वा, तीखा, सूखा, दुर्गन्धित, रंगहीन होता है। यह अल्सर, बदहजमी, अश्मरी या पथरी, कुष्ठ, पिडिका या मुँहासे, लिम्फ नॉड, अर्श या बवासीर, गण्डमाला या गॉयटर, कृमि, खाँसी, वातोदर, प्लीहारोग या स्प्लीन संबंधी समस्या, मुख तथा आँख संबंधी रोग दूर करने में सहायता करता है।

आयुर्वेदीय ग्रंथों में महिषाक्ष, महानील, कुमुद, पद्म और हिरण्य गुग्गुलु इन पाँच भेदों का वर्णन मिलता है। महिषाक्ष गुग्गुलु भौंरे के समान काले रंग का होता है। महानील गुग्गुलु नीले रंग का, कुमुद गुग्गुलु कुमुद फल के समान रंगवाला, पद्म गुग्गुल माणिक्य के समान लाल रंग वाला तथा हिरण्याक्ष गुग्गुलु स्वर्ण यानि सोने के समान आभा वाला होता है। यह 1.2-1.8 मी ऊँचा, शाखित, छोटे कांटा वाला वृक्षक होता है।

यह गाढ़ा सुगन्धित, अनेक रंग वाला, आग में जलने वाला तथा धूप में पिघलने वाला, गर्म जल में डालने से दूध के समान हो जाता है। व्यवहारिक प्रयोग में आने वाला गुग्गुलु हल्का पीले वर्ण का निर्यास होता है, जो कि छाल से प्राप्त होता है, यह अपारदर्शी, रक्ताभ-भूरे रंग का एवं धूसर यानि भूरा-काले रंग का होता है।

गुग्गुल (guggal dhoop benefit)तीसरे दर्जे का गर्म प्रकृति वाला एवं सूखा फल होता है। यह वायु को नष्ट करने वाला, सूजन को दूर करने वाला, दर्द को नष्ट करने वाला, पथरी, बवासीर , पुरानी खांसी , फेफड़ों की सूजन, विष को दूर करने वाला, काम की शक्ति बढ़ाने वाला, टिटनेस, दमा , जोड़ों का दर्द तथा जिगर के रोग आदि प्रकार के रोगों को ठीक करने वाला होता है।

गुग्गुल का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि गुग्गुल में सुगंधित तेल 1.45 प्रतिशत, गोंद 32 प्रतिशत और ग्लियोरेजिन, सिलिका, कैल्शियम , मैग्नीशियम तथा लोहा आदि भी इसमें कुछ मात्रा में पाये जाते हैं। यह रक्तशोधन करके सारे शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करता है। गुग्गुल में रक्त (खून) के श्वेत कणों को बढ़ाने का विशेष गुण होतो है जिसके कारण से यह गंडमाला रोग में बहुत लाभकारी है। श्वेत रक्तकण हमारी शरीर में रोग खत्म करने की शक्ति को बढ़ाती है जिसके फलस्वरूप कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं। इसकी 2 से 4 ग्राम की मात्रा में गुग्गुल का सेवन कर सकते हैं।

गुग्गल ब्रूसेरेसी कुल का एक बहुशाकीय झाड़ीनुमा पौधा है। अग्रेंजी में इसे इण्डियन बेदेलिया भी कहते हैं। रेजिन का रंग हल्का पीला होता है परन्तु शुद्ध रेजिन पारदर्शी होता है। यह पेड़ पूरे भारत के सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पौधा छोटा होता है ।

सर्दी और गर्मी में धीमी गति से बढ़ता है। इसके विकास के लिए वर्षा ऋतु उत्तम रहती है।

इस पेड़ के गोंद को गुग्गुलु, गम गुग्गुलु या गुग्गल के नाम से जाना जाता है। गोंद को पेड़ के तने से चीरा लगा के निकाला जाता है। गुग्गुलु सुगंधित पीले-सुनहरे रंग का जमा हुआ लेटेक्स होता है ।

भारतभूमि दिनोदिन वनहीन होती जा रही है इस कारण एवम अधिक कटाई होने से यह आसानी से प्राप्त नहीं हो पा रहा है। भविष्य में केवल एक ही गूगल बचेगा इस लगता है । कभी राम की पवित्र भूमि
चित्रकूट में गुग्गल के बेशुमार पेड़ थे ।
प्राचीन परंपरा–

पुराने समय में हर मरघट (आज का मुक्तिधाम) में गूगल के वृक्ष हुआ करते थे । मान्यता थी कि मुर्दे को जलाने के बाद हाथ-मुँह धोकर गुग्गल की पत्ती चबाने से हवा-बाधा नहीं लगती । पहले समय मे मरघट एकांत में होते थे, जहां भूत–प्रेतों, जिन्न, पिशाच और बाहरी हवाओं का वास होता था ।
गुग्गल देववृक्ष है । मरघट से लौटने पर इसकी पत्तियां चबाने से कोई हवा नहीं लगती । नकारात्मक दोष दूर होते हैं । मानते थे कि ये देववृक्ष हमारे शरीर व स्वास्थ्य की सदा रक्षा करते हैं । परम् शिव भक्त रावण रचित अद्भुत दुर्लभ तंत्रशास्त्र “मंत्रमहोदधि”

स्कन्ध पुराण के भाग खंड 4 अध्याय, 12 में तथा अनेको यूनानी मुस्लिम ग्रंथो के अनुसार यदि कोई श्मशान, मुक्तिधाम में गुग्गल के पेड़ों को लगाता है, तो सात पीढ़ी तक सन्तति दोष नहीं होता ।

पितरों की कृपा से उसके यहां कभी आर्थिक तंगी नहीं होती । परिवार में कभी असाध्य रोग नहीं होते । रोगों या व्याधियों के कारण मृत्यु नहीं होती ।

5000 से अधिक भारतीय ग्रंथों में गुग्गल की “स्तुति” की गई है ।(Mughal Dhoop puja)

अष्टांग से लेकर षोडशांग सारे धूप में ही आपको गुग्गुल के बारे में जानकारी मिलेगी| गुग्गल को आग या हवन में डालने पर वह स्थान सुंगध से भरकर पूरा वायुमण्डल शुद्ध व पवित्र हो जाता है।
इसलिये इसका धूप में उपयोग किया जाता है । यह कटुतिक्त तथा उष्ण है और कफ, वात, कास, कृमि, क्लेद, शोथ और बबासीरनाशक है ।
कहा जाता है धूना, गुग्गुल, कपूर एकसाथ जलाना धूप आरती के लिए सबसे उत्कृष्ट होता है| यह एक सुन्दर सी गंध आपके आसपास बना देती है और साथ ही बातावरण को शुद्ध कर देती है| आप जब भी धूप जलाय तब तब अपने घर के खिड़की और दरवाजे जरूर खुले हुए ही रखे इससे इसके धुआँ बाहर निकल जाएगी और साथ ही एक सुन्दर ही खुशबू आपके पूरी घर में रह जाती है|

हो सके तो आप सुबह और शाम दोनों समय गुग्गुल से धूप करें और विशेष पूजा के दिन भी आरती करते हुए इसे जरूर जलाय| धूना, कपूर और गुग्गुल एक साथ जलाने से आपके घर से और मन से नेगेटिव एनर्जी(Negative Energy) यानि ऊर्जा कम हो जाती है और एक सकारात्मकता बानी रहती है जिससे आपको नए काम करने में और सोचने में नई ऊर्जा मिलती है|

गुग्‍गुल दिखने में काले और लाल रंग का जिसका स्‍वाद कड़वा होता है। इसकी प्रवृत्‍ति गर्म होती है।

पंडित दयानंद शास्त्री

Share this story