उद्धव ठाकरे की कमजोर कुंडली और केतु महादशा में राहु अंतर में शनि प्रत्यंतर दशा में शपथ ,कब तक चलेगी सरकार

उद्धव ठाकरे की कमजोर कुंडली और केतु महादशा में राहु अंतर में शनि प्रत्यंतर दशा में शपथ ,कब तक चलेगी सरकार

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का सवा प्रहर वाला पीहरवासा!
क्या कहता हैं ज्योतिष...

कल मुंबई में 28 नवम्बर 219, (गुरुवार) को सायंकाल 18 बजकर 44 मिनट पर एक ऐतिहासिक घटना घटी।

भाजपा के साथ स्पष्ट बहुमत का जनमत लेकर जीती शिवसेना ने धुर विरोधी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस दलों के साथ सरकार बना ली। सपने लेना और उन्हें धरातल पर उतारने में कोई बुराई नहीं। घोर कलियुग में सिद्धांत ताक पर रख मुख्यमंत्री बनना भी अब किसे अखरता है?

एक ज्योतिषीय विश्लेषण के आधार पर अखरने वाली बातें कुछ अन्य हैं। सबसे बड़ी अखरने वाली बात है समय। यद्यपि अमृत के चौघड़िये में पूरी शपथ प्रक्रिया अपनायी गयी है जो अच्छा है, किन्तु लग्न?

मिथुन! वह भी आरम्भिक अंशों (२:५५:४०)में। अस्थिर मानसिकता वाला लग्न जिसमें राहु उच्च का बैठ उसे और अधिक अस्थिर करता है। लग्नेश बुध त्रिकोण में बैठ कर भी षष्ठेश मंगल से युति कर दुर्बल हो गया है। सूर्य वृश्चिक राशि का छठे भाव में तथा कुण्डली के सातवें भाव में पाँच विपरीत प्रकृति के ग्रह यथा शनि, बृहस्पति, शुक्र केतु और चन्द्रमा बैठे हैं।

यहाँ केतु उच्च का है किन्तु उसकी विस्फोटक दृष्टि लग्न, पराक्रम एवं एकादश भाव को निर्बल करती है। एकादशेश मंगल अपने भाव को देखता है अत: जब तक मंगल तुला राशि का, त्रिकोण में रहेगा सरकार को आर्थिक दृष्टि से कोई संकट नहीं रहेगा।

राहु केतु राजनीति में उच्च के प्रभावी होते हैं किन्तु विस्फोटक भी। कब आकाश से गिरा कर धूल चटा दें, कह नहीं सकते। कुछ दिन पूर्व देवेन्द्र फडणवीस ने भी केतु वाले धनु लग्न में ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। तब अष्टमेश चन्द्रमा दसवें भाव में बैठा था। तीसरे दिन चन्द्रमा ने राशि बदली और परिणाम सबके सामने था।

उद्धव ठाकरे की शपथ के समयानुसार केतु महादशा में राहु अंतर में शनि प्रत्यंतर दशा चल रही है।

यह 03 जनवरी 2020 तक, बुध प्रत्यंतर 29 फरवरी 2020 तक तथा इसके पश्चात् केतु में राहु अन्तर मध्ये केतु प्रत्यंतर 19 मार्च 2020 तक रहेगी।

मुझे इस सरकार का खेल इससे आगे दृष्टिगत नहीं होता। इसके कुछ कारण और हैं। अभी पराक्रमेश सूर्य छठे भाव में बैठा है जो शत्रुओं को ताप देता प्रतीत होता है। यह जब अगले दो माह में सातवें और आठवें भाव में रहेगा तब बृहस्पति, शुक्र और शनि को निर्बल करता हुआ आगे बढे़गा किन्तु स्वयं राहु केतु से ग्रसित भी होगा।

26 दिसम्बर को ही एक सूर्य ग्रहण का भी इस कुण्डली पर बुरा प्रभाव पड़ने वाला है।

भाग्येश शनि जो अष्टमेश भी है, जनवरी के आरम्भ में आठवें भाव में कष्टेश होकर स्वगृही हो जायेगा। इसी प्रकार मंगल जब पांचवें भाव से बढ़ कर छठे शत्रु भाव में स्वगृही होता हुआ सातवें भाव में आयेगा तब स्थितियां विकट होना आरंभ हो जायेंगी। जो मार्च तक आते कठिनाई से ही संभलेंगी। मेरे इस मत के पीछे सबसे बड़ा कारण स्वयं उद्धव ठाकरे की कमजोर कुण्डली है।
अगर सरकार के मुखिया की कुण्डली प्रबल हो तो सारे पाप धुल जाते हैं, किन्तु यहाँ इस मुख्यमंत्री का यह राजयोग 'राणा दे जी के सवा पौर वाले पीरवासे'(राजस्थानी लोक कथानुसार अत्यन्त सूक्ष्म) जैसा है।

उद्धव ठाकरे की कन्या लग्न वाली कुण्डली में निर्बल बुध दसवें, राज्य भाव में स्वगृही बैठा है। वह चतुर्थ भाव में बैठे शनि एवं बृहस्पति से दृष्ट है।

शनि तीसरी दृष्टि से अपने शत्रु स्थान को सुदृढ़ कर रहा है वहीं सातवीं एवं दसवीं दृष्टि से क्रमशः दसम भाव एवं लग्न को दुर्बल बना रहा है। बृहस्पति भी यहाँ बुध को भटकाव देने का कार्य ही कर रहा है।

कुण्डली का पराक्रमेश मंगल भाग्य भाव में बैठ कर अपना पराक्रम तो बढ़ा रहा है किन्तु वह यहां बैठ कर भाग्य को पलीता भी लगा रहा है। निर्बल भाग्येश शुक्र एकादश स्थान में सूर्य के साथ अस्त होकर बैठा है। एक और रोचक तथ्य। एकादशेश चंद्रमा राहु के साथ बारहवें भाव में है। यह युति इच्छाओं को जागृत तो करती है, किन्तु उनकी सम्पूर्ण पूर्ति नहीं होने देती।

बृहस्पति में केतु मध्ये प्रत्यंतर दशा ठाकरे कुल में एक सुन्दर सपने सरीखी है जिसकी आयु बहुत अधिक नहीं है। अत्यधिक महत्वाकांक्षाओं से परिपूर्ण किन्तु दुर्बल ग्रहगोचर के कारण यह शेर सचमुच शिकारियों के जाल में फंस गया लगता है। सब कुछ लुटा कर ही मानेगा। वैसे भी कांग्रेस ने कब ऐसी सरकारों को लम्बा चलने दिया है।


उद्धव जी, सावधानी पूर्वक राज्य संचलन कर पाएं,यही भगवान महाकाल से प्रार्थना
पंडित दयानंद शास्त्री

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