नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मकथा

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मकथा

एक नेता की अमरकथा

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बलिदानों की हर सूची में
भारत का ही भाग्य प्रखर है
इतिहास के उजले पन्नों में
एक नेता की कथा अमर है
जहाँ कहीं वो पांव रखे
वही एकता बड़ी भारी
खून के बदले आज़ादी
सच ही उसने दे डाली
ख़ाकी वर्दी चश्मा टोपी
अंग्रेज़ों का बड़ा विरोधी
बिखरा भारत जोड़ा था
हिन्दपुत्र वही बोला था-
"सुनो यह दस्तावेज़ भरो
योद्धा बनकर तेज धरो
रक्त का ऋण चुकाऊंगा
हाँ! मैं आज़ादी लाऊंगा"
संग्राम का आह्वान हुआ
फिर बेड़ी सारी टूटी थी
सोए भारत में उस दिन
चिंगारी कोई फूटी थी
हिन्द ने हुंकार किया
सेना संग टंकार किया
शोर फिरंगी डरता था
गूंगा भारत गरजा था
अंधकार अब शेष नहीं
चमक रहा ध्रुवतारा था
गली - गली में गूंज रहा
'जय हिंद' का नारा था
अंग्रेज़ी फंदों को काटा
'बोस' का अद्भुत ओज
वो तो लेकर चलता था
आज़ाद हिंद की फ़ौज
बंधक भारत ने था देखा
बोस में कोई सच्चा नेता
बेड़ी का बल चूर हुआ
ब्रिटिशराज निर्मूल हुआ
पर यह क्या हाय हुआ?
एक बड़ा अन्याय हुआ
हर्षोत्सव के बीच यहीं
नेताजी कहीं दिखे नहीं
बवाल उठा सवाल उठा
धीर भी कैसे बनी रहे?
अफ़वाहों की चिट्ठी थी
नेताजी अब नहीं रहे...
ना कोई खोज ख़बर पर
अबभी रस्ता तकती है
आएगा फिर नारे लेकर
भारत माता कहती है
भारत माता कहती है...
© जया पाण्डेय 'अन्जानी'

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