तुमने बदले हमसे गिन - गिन के लिए , क्या तुम्हे चाहा था इस दिन के लिए

तुमने बदले हमसे गिन - गिन के लिए , क्या तुम्हे चाहा था इस दिन के लिए

लाल बंगले का सच
तुमने बदले हमसे गिन - गिन के लिए , क्या तुम्हे चाहा था इस दिन के लिए
जरूरत क्या थी बंगला खाली करवाने से लेकर भवन बनवाने के लिए
बैतूल से हमारे संवाददाता की खास सचित्र रिर्पोट
बैतूल जिला मुख्यालय पर इस वर्ष शुक्रवार 7 फरवरी 2020 को मध्यप्रदेश के जिला मुख्यालय पर आनन - फानन स्वीकृति प्राप्त कर समयावधि के पूर्व ही बन चुके जन संपर्क भवन के निमार्ण के पीछे की सच्चाई परत दर परत सामने आने लगी है.

लगभग एक साल से अपने शुभारंभ का इंतजार कर रहे भाजपा शासनकाल में दमोह एवं बैतूल जिले में राज्य शासन के जन संपर्क विभाग द्वारा जिला स्तर पर प्रथक - प्रथक रूप से जन संपर्क कार्यालय के लिए भवन निमार्ण के टेण्डर जारी किए गए. बैतूल जिला मुख्यालय में बहुउददेशीय संयुक्त जिला कलैक्टर कार्यालय का भवन निमार्ण किया गया जिसमें जिले के सभी विभाग प्रमुखो को एक - एक सुविधानुसार कक्ष आवंटित किए गए.

पड़ौसी छिन्दवाड़ा जिले में तक में जन संपर्क कार्यालय कलैक्टर कैम्पस में है लेकिन बैतूल जिले में जिला कलैक्टर कार्यालय से 500 मीटर दूर बना जन संपर्क कार्यालय का भवन बीते एक साल से शुभारंभ की बाट देख रहा है. बैतूल जिला मुख्यालय पर यूं तो जन संपर्क भवन पहले कालापाठा - हमलपुर रोड़ पर मौजूद था लेकिन सुनील कमल मिश्र सूचना सहायक के कार्याकाल में उक्त भवन जिला पुलिस अधीक्षक निवास से लगे बहुचर्चित चिटनीस भवन जिसे लाल बंगला भी कहा जाता है उसमें वर्तमान में इस $खबर के लिखे जाने तक उक्त भवन का ९ हजार ८६० रूपये मासिक भुगतान किराया पर चल रहा है.
करोड़ो की भूमि पर बना है चिटनीस बंगला
मराठा शासको के समय नागपुर से बैतूल आए चिटनीस परिवार ने बैतूल शहर में बीचो - बीच लगभग दो एकड़ की भूमि पर अपने सपनो का महल बनाया जिसे नाम दिया गया चिटनीस बंगला जिसे लाल बंगला भी कहा जाता है. गुड़ चूना की जुड़ाई से लाल ईटो से बने उक्त तीन मंजीला भवन परिसर यूं तो लगभग दो एकड़ भूमि में फैला हुआ है. यहां पर इस बंगले के तथाकथित केयर टेकर श्री कुशवाह के द्वारा एक संघीय विचार धारा से जुड़ा शीशु मंदिर का संचानालय किया जा रहा है. बैतूल जिले के नामचीन भूमाफियाओं ने इस लाल बंगले की कीमत जब लगानी शुरू की तो उसी एवज में बंगला को बीते एक दशक से सरकारी कब्जे से बाहर लाने की कवायद भी शुरू हो गई. इस बंगले में बीते तीन दशक से भवन का न्यूतम मासिक किराया पर नागपुर एवं मुम्बई के चिटनीस परिवार के बैंक खाते में चेक के माध्यम से किया जाता रहा. इस बीच फरवरी 2019 से उक्त भवन का किराया अचानक बढ़ा कर 9 हजार 860 रूपये कर दिया गया.

किराया बढ़ाने के पीछे सोची - समझी साजिश यह थी कि किराया बढ़ाने के जन संपर्क विभाग पर दबाव बनाया जा सकता था कि वह बंगला को खाली करके स्वंय का भवन बना ले...! इसी मंशा से भाजपा शासनकाल में बंगला को खाली करवाने का आफर दिया गया जो पूर्व में 5 लाख रूपये था जो बाद में 85 लाख रूपये हो गया. बकायदा जब जन संपर्क के नए भवन के निमार्ण की फाइले रेंगना शुरू की गई भूमाफियाओ द्वारा भवन के तथाकथित केयर टेकर के माध्यम से पहली किश्त दस लाख रूपये पहुंचाई गई तथा इस बात की ग्यांटी ली गई कि जिला जन संपर्क कार्यायल में पदस्थ सूचना अधिकारी सुरेन्द्र तिवारी को नए भवन के बनने तक नहीं हटाया जाए. इस बीच कांग्रेस का सत्ता परिर्वतन हो गया लेकिन भाजपा शासनकाल में दो लोकसभा चुनाव पुरे करवा चुके संघ का मान - सम्मान पत्र पा चुके जनसपंर्क अधिकार को बैतूल से तबादला होने के बाद भी नही हटाया गया.
एमएमसी कमेटी से बिदाई पर
बैतूल से नहीं हो सकी बिदाई ....
भाजपा के शासनकाल में निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग द्वारा पेड़ न्यूज पर नियंत्रण रखने के लिए जिला स्तरीय मीडिया मानेटरींग कमेटी का गठन किया गया जिसके सचिव जन संपर्क अधिकारी सुरेन्द्र तिवारी को बनाया गया लेकिन तिवारी द्वारा खुल कर भाजपा की खबरो को पेड़ न्यूज से बचाया गया लेकिन बीते चुनाव में पेड़ न्यूज के एक मामले में बैतूल के विधायक हेमंत खण्डेलवाल की शिकायत के बाद भारत निर्वाचन आयोग एवं राज्य निर्वाचन आयोग ने एमएमसी कमेटी से श्री तिवारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. पूर्व में लोकसभा चुनाव में उन्हे एक सप्ताह के अवकाश पर भेज दिया गया था लेकिन लिया गया उन्हे बैतूल जिले से नहीं हटाया गया. बार - बार सुरेन्द्र तिवारी के तबादले की मांग उठी भाजपा के पूर्व विधायक हेमंत खण्डेलवाल उनके संरक्षक बन कर सामने आ गए. ऐसा आरोप बैतूल के पूर्व विधायक पर भी लगा कि उनका परिवार की भी चिटनीस बंगले को खरीदने वालो की दौड़ में शामिल है. संघ के तथाकथित प्रचारक एवं स्वंय को करीबी बताने वाले कुशवाह ने सुरेन्द्र तिवारी को अभयदान दिलवाने के लिए भारत - भारती में एक मंत्रणा करवाई थी जिसके तहत भोपाल में जन संपर्क विभाग को यह बताने का प्रयास किया गया कि श्री तिवारी संघ प्रचारक रहे है उनका परिवार श्री लक्ष्मीकांत शर्मा के करीबी लोगो में से है. श्री तिवारी को जानबुझ कर परेशान करने की नीयत से विभाग का एक चतुर्थ कर्मचारी संघ का एक नेता राजेन्द्र बहादुर सिंह परेशान कर रहा है. राजेन्द्र बहादुर सिंह कांग्रेस के नेताओ का करीबी है अत: जन संपर्क विभाग में बीते दो दशक से मौजूद चपरासी राजेन्द्र बहादुर का ही तबादला बैतूल से बाहर गुना कर दिया जाए...!
आधा दर्जन कलैक्टर बदले लेकिन
एक जन संपर्क अधिकारी नहीं बदला
बैतूल जिले में हरदा से जैसे ही विजय आनंद कुरील का पूर्व जन संपर्क अधिकारी गुलाब सिंह मर्सकोले के बीच हाथापाई हुई उसके बाद श्री गुलाब सिंह मर्सकोले को पदोन्नत कर बैतूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इस बीच सुरेन्द्र तिवारी बैतूल सूचना सहायक बन कर आए. यहां आने के बाद बैतूल कलैक्टर विजय आनंद कुरील का तकलीफो का बढऩा कम नहीं हुआ. उनके पत्रकारो से मधुर सबंध बन नही पाए और पत्रकारो के बीच उनकी दूरियां बढ़ाने में सुरेन्द्र तिवारी की भूमिका अहम रही. विजय आनंद कुरील के जाने के बाद जैसे ही बी. चन्द्रशेखर आए पता नही क्यों और कैसे सुरेन्द्र तिवारी की मध्यस्थता की कमी कह लीजिए या फिर दूरियां बढ़ाने की सोची - समझी साजिश कलैक्टर बी. चन्द्रशेखर के खिलाफ पत्रकार लगभग एक पखवाड़ा जिला मुख्यालय पर धरना - प्रदर्शन करते रहे. यह वह दौर था तब श्री तिवारी कलैक्टर के सबसे अधिक करीब आ गए. बी चन्द्रशेखर (6 जून 11 से 12 मार्च 2013 ) के बाद राजेश मिश्र (18 मार्च २०13 से 3 नवम्बर 2014 ) राजेश मिश्र के बाद ज्ञानेश्वर पाटील (3 नवम्बर 2014 सितम्बर 2016 ), शशांक मिश्रा ( 5 सितम्बर 2016 से 21 नवम्बर 2018 ), तरूण पिथोड़े (22 दिसम्बर 2018 से 16 जून 2019 ) तक बदल गए लेकिन सुरेन्द्र तिवारी जन संपर्क अधिकारी बैतूल को जिला जन संपर्क कार्यालय की 2010 से जमी कुर्सी पर अंगद के पांव की तरह चिपके हुए है. इस अधिकारी की जड़े को आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि या पत्रकार हिला नही सका है. अपनी जड़ो को मजबूत करने के बाद ही जन संपर्क कार्यालय को चिटनीस के लाल बंगले को तथाकथित सरकारी कब्जे से मुक्ति दिलाने का खेल जो लगातार उसके खाली करवाने की बोली में बढ़ता ही चला गया.प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद से ही इस बंगले को खाली करवाने की कवायद शुरू हुई लेकिन पूर्ण रूप से बंगला खाली करवाने की अटकलो को बल मिला बैतूल में सूचना सहायक के रूप में सुरेन्द्र तिवारी हरदा से बैतूल आ गए. सुरेन्द्र तिवारी ने आते से ही बैतूल जिले में उस समय के जन संपर्क मंत्री लक्ष्मींकांत शर्मा के गृह जिले का होने का जबरदस्त फायदा उठाया
लीला चीटनीस के बचपन का साक्षी लाल बंगला
एक बंगला जो खाली करवाना बना सबसे बड़ा सपना
9 सितम्बर 1909 को जन्मी श्वेत श्याम हिन्दी सिनेमा जगत की नामचीन अदाकारा लीला चीटनीस के बचपन का साक्षी नागपुर के चीटनीस परिवार के सपनो का लाल बंगला वर्ष यूं तो १८२३ के बाद बना जब बैतूल बाजार जिला मुख्यालय बदनूर में शिफ्ट हुआ. इस दौरान अग्रेंजी हुकुमत ने अपने रहने एवं निवास के लिए लाल बंगले जैसे भवन बनवाए जिसमें दादा धर्माधिकारी का बंगला और उस दौर में अग्रेंजो के मालगुजारो में शामिल अवस्थी परिवार के बंगलो का निमार्ण हुआ. बेतूल टाऊन, कमानी गेट, गोठी जी का निवास आजादी के आन्दोलन के जोर पकडऩे के पहले बन चुके थे. लाल बंगला 1947 की आजादी के बाद सीपीएण्ड बरार स्टेट के मध्यप्रदेश में शामिल होने के बाद चीटनीस परिवार ने उक्त बंगला को खाली करके नागपुर में अपना डेरा बसा लिया. बैतूल - बुरहानपुर - नागपुर का चिटनीस परिवार के पास यूं तो करोड़ो - अरबो की जमीने है. बैतूल जिला मुख्यालय पर इस समय इस भूमि का बाजारू मुल्य पचास करोड़ तक पहुंच चुका है. शहर के बीचो - बीच में स्थित चिटनीस बंगला परिसर वर्तमान में ढाई से तीन एकड़ में बसा हुआ है. इस बंगले के अभी तक खाली होने की कोई उम्मीद नही थी लेकिन सुरेन्द्र तिवारी ने उम्मीद का दिया जलाए रखा पहले भाजपा के नेताजी बंगला खाली करवाने की बोली में शामिल थे अब कांग्रेस के नेताजी आ गए.
ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी
बंगला खाली करवाने की......
जबसे सरकार के पास उक्त बंगला है उसकी देख - रेख अच्छे से हो रही थी. शुरूआत मंो उक्त बंगले का किराया सबसे कम था तब भी किराया बढ़ाने की कोई कवायद नहीं हुई. जब भी मुम्बई से चिटनीस परिवार के लोग बैतूल आते वे अपना एक मुश्त किराया लेकर जाते रहे. इस बीच कुशवाह नामक व्यक्ति उक्त बंगले का तथाकथित केयर टेकर के रूप में सामने आया और उसने संघ के कुछ लोगो एंव जन संपर्क विभाग के अफसरो को बंगला खाली करवाने के लिए आफर देना शुरू किया जो 5 - 50 से पूरे 85 लाख पर जा पहुंचा. इधर इस बात का दावा किया जा रहा है कि मुम्बई का चिटनीस परिवार ने आज तक कोई कानूनी नोटिस या किराया बढ़ाने या फिर बंगला खाली करवाने को लेकर कोई सीधे तौर पर पत्राचार नहीं किया तब अचानक बंगला खाली करवाने की चूल किसको सबसे पहले हुई. जिला मुख्यालय पर बने करोड़ो - अरबो रूपयो की बेश्कीमती जमीन के लाल बंगले में न तो पानी टपकता है और न किसी प्रकार की परेशानी है. यहां पर एक कमरा कार्यालय प्रमुख का दुसरा कर्मचारियों का तथा तीसरा कमरा कार्यालय के बाबू लोगो का और चौथा कमरा गोदाम के रूप में अखबारो की रदद्ी रखने के काम का है. वर्तमान समय में 9 हजार 860 रूपैया किराया याने साल भर में बिना किसी रंगाई - पुताई और पुर्ननिमार्ण के वार्षिक किराया 82 हजार 320 रूपये का भवन के मालिक को मिल रहा था. विभाग अभी तक उक्त बंगले का किराया जो उसने एक साल में चुकाया है वह सुनील कमल मिश्र के समय से लेकर फरवरी 2019 तक चुकाये गए कुल भुगतान का आधा हिस्सा है. जानकार सूत्र बताते है कि सरकारी नियंत्रण में बंगले पर कब्जे का कोई डर भी नही रहता. ऐसे में अग्रेंजो के जमाने के लाल बंगले के मालिक को आखिर किसका डर सता रहा था जो वह बंगला खाली नहीं करेगा या सरकार उसे अधिग्रहित कर लेगी....! लाल बंगला को लेकर कोई न कोई तो ऐसा था जो उसके मालिक को डराने - धमकाने का काम कर रहा था. लाल बंगला खाली करना जरूरी था कि नया भवन बनाना क्योकि जन संपर्क कार्यालय चाहे तो पुराना कलैक्टर कार्यालय, जिला खाद्य अधिकारी कार्यालय, जिला नजूल अधिकारी कार्यालय में भी लग सकता था. जन संपर्क विभाग चाहता तो उक्त कार्यालय को मीडिया सेंटर में भी परिवर्तित कर सकता था लेकिन एक तीर से दो निशाने लगा कर जन संपर्क अधिकारी सुरेन्द्र तिवारी ने जन संपर्क विभाग के अफसरो तक बंगला खाली करवाने से लेकर नया बंगला बनवाने वाले ठेकेदार से एक मुश्त मोटी रकम दिलवा कर अपनी कुर्सी सुरक्षित कर ली.
पहले हेमंत के यहां हाजरी अब
पांसे के बन गए राग दरबारी
पाला बदलना कोई सुरेन्द्र तिवारी से सीखे क्योकि वे पाला बदलने में वे एक्सपर्ट हो चुके है. पहले लक्ष्मकांत शर्मा के समय आरएसएस की नेकर और अब पीसी शर्मा के समय कांग्रेस सेवादल की सफेद टोपी से पहचाने जाते है. पंडित सुरेन्द्रतिवारी का पूरा कार्यकाल जिले के पत्रकारो के बीच में फूट डालो और राज करो में बीत गया. जन सपंर्क अधिकारी के रूप में कभी पत्नि के कैंसर होने का तो कभी स्वंंय के भाजपाई होने का पत्ता फेक कर सहानुभूति पाने वाले अधिकारी का जब - जब बैतूल से तबदला हुआ तब - तब तथाकथित ब्रह्मवाद से ग्रसित पत्रकारो ने भाजपा शासनकाल में विधायक रहे हेमंत खण्डेलवाल को विश्वास दिलाया कि कुछ कांग्रेसी पत्रकार और विभाग का एक चपरासी जन संपर्क विभाग के एक गरीब ब्राह्मण को आपके राज में परेशान कर रहे है. ऐसा कहना था कि भाजपा के पंाचो विधायको ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा दिया कि भैया की शरण में आए किसी भी निरीह प्राणी का वध न किया जाए... ऐसा एक नहीं कई बार हुआ. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद हेमंत खण्डेलवाल के दरबार में हाजरी लगाने वाले सुरेन्द्र तिवारी ने हेमंत खण्डेलवाल को सलाम करना तो दूर उनकी ओर मुँह तक देखना उचित नहीं समझा और सीधे सुखदेव पांसे जी की भाट- चारणगिरी करने लगे. मुख्यमंत्री के करीबी मंत्री मे शामिल सुखदेव पांसे की बैतूल हो या बाहर कही की भी कोई भी $खबर को बैतूल से जारी करके श्री सुरेन्द्र तिवारी ने कांग्रेस मंत्री के पीआरओ का काम शुरू कर दिया. वर्तमान मे सुखदेव पांसे का वरदहस्त प्राप्त जिला जन संपर्क अधिकारी का पत्रकारो एवं प्रशासन के बाद मंत्री तक के बीच दूरियां बढ़ाने का क्रम जारी रहेगा या उस पर रोक लगेगी यह तो आने वाला कल ही बताएगा.
चित्र में

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