Recession के दौर से गुजर रही Economy को अब Institute For Industrial Development से सहारा

Recession के दौर से गुजर रही Economy को अब Institute For Industrial Development से सहारा

Economic Development Survey Slowdown और Recession के कारण
Bussiness Desk-अर्थव्यवस्था (Economic Survey Report )की सुस्ती के दौर में जब उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कम हो रही है, यह समस्या इंडिया में ही केवल न होकर global भी है और अमेरिका भी इसी दौर से गुजर रहा है (Recession in US) बेहद चिंता की बात है। एक ओर बेरोजगारी बढ़ रही है, उत्पादन घट रहा है, सरकारी मौद्रिक उपाय बेअसर साबित हो रहे हैं, तो सरकार के नीति-नियंताओं से संवेदनशील व्यवहार की उम्मीद होती है।

महंगाई के दौर में गैस सिलेंडरों की कीमतों में बड़ा इजाफा जले पर नमक छिड़कने जैसा ही है। यह वृद्धि भी खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाली ही साबित हो सकती है। बुधवार को एनएसओ के आंकड़ों में चिंता बढ़ाने वाली खबरें सामने आईं। एक ओर खाद्य पदार्थों की खुदरा महंगाई दर 7.59 फीसदी India में (Recession In India )पहुंच गई है और दूसरी ओर औद्योगिक उत्पादन(Industrial Development) में गिरावट आई है। जनवरी में खाद्य पदार्थों की महंगाई पिछले छह साल में सबसे ऊंचे स्तर पर जा पहुंची है।

वहीं दिसंबर में औद्योगिक उत्पादन में 0.3 फीसदी की गिरावट आई है। चिंता की बात यह है कि 23 में से 16 उद्योगों की विकास दर नकारात्मक हो गई है। लोगों की आय नहीं बढ़ी है तो क्रय शक्ति कम हुई है। महंगाई बढऩे से खर्च बढ़ा। महंगाई बढऩे से खपत कम हुई है। खपत कम होने से उत्पादन में गिरावट आ रही है। लेकिन इसके बावजूद महंगाई का बढऩा चिंता की बात है। कहीं न कहीं यह संकट उत्पादन घटने से कंपनियों पर भी असर डालेगा, उनका मुनाफा कम होगा। उत्पादन कम होने से रोजगारों पर संकट आएगा। कालांतर सरकार के राजस्व में भी कमी आएगी, जिसके चलते लोककल्याणकारी योजनाओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। नई फसल आने से बाजार में सुधार आएगा। लेकिन सरकार को फौरी तौर पर महंगाई पर नियंत्रण के मौद्रिक उपायों को अमल में लाना चाहिए।
इंडिया में कई शोध के इंस्टिट्यूट में भी बताया जा रहा है कि (Institute For Industrial Development) में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट इसका प्रमाण है। बिजली क्षेत्र में गिरावट भी चिंता का विषय है। विनिर्माण क्षेत्र में जहां नवंबर में सुधार हुआ था, वहीं दिसंबर में गिरावट दर्ज की गई है। दिसंबर में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में नरमी देखी गई। ऐसा लगता है कि अर्थव्यवस्था को गति देने के सरकार के उपायों का असर देर से दिखेगा। दरअसल, मौद्रिक उपायों से भी महंगाई के नियंत्रण के प्रयास सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं। इसी वजह से देश के केंद्रीय बैंक ने इस साल की पहली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया।

नि:संदेह अंतर्राष्ट्रीय बाजार (International Financial Market) में कच्चे तेल (Crude Oil Price) के दामों में उतार-चढ़ाव तथा दूध व दालों के दामों में तेजी से खाद्य पदार्थों की खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ी है, मगर उम्मीद जगायी जा रही है कि रबी की फसलों के बाजार में आने से महंगाई की दर में गिरावट आएगी। बहरहाल, खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेत नहीं है।

चिंताजनक है कि अर्थव्यवस्था (Economic SurveyReport )में सुस्ती और बढ़ती महंगाई अर्थव्यवस्था में जटिल हालात पैदा कर सकते हैं, जिसे स्टैग्फ्लेशन कहा जाता है। दरअसल, मांग में कमी के कारण जहां कीमतों में कमी आनी चाहिए थी, वहां खाद्यान्न वस्तुओं की महंगाई इस तर्क को खारिज कर रही है। यह चिंता की बात है कि तमाम मौद्रिक उपायों तथा वित्त बाजार में सरकार की ओर से बड़े पूंजी के प्रवाह के बावजूद अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ती नजर नहीं आ रही है। कहीं न कहीं कर्ज के दबाव से बैंकों की खस्ता हालत भी इसके मूल में है। जिसके चलते अर्थव्यवस्था एक कुचक्र में फंसती नजर आ रही है।

ग्लोबल आर्थिक कमी के साथ ही अमेरिका भी इस दौर से गुजर रहा है (Recession in US) सवाल उठता है कि क्या सरकार ने महंगाई पर नियंत्रण के सभी उपायों का प्रयोग कर लिया है क्या बाजार पर उसका नियंत्रण है क्या सरकार आम आदमी की चिंताओं के प्रति संवेदनशील है|

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