New Release Hindi Movie Most Common Budbak जल्द हो रही है लांच
कठनाइयों को पार कर 6 मार्च को सिनेमा घरों तक पहुँच रही-मोस्ट कॉमन बुड़बक(New Release Hindi Movie) हिंदी फीचर फिल्म
Bollywood Desk -मोस्ट कॉमन बुड़बक की यात्रा की अगर बात करें तो यह अपने आप में एक फिल्म की कहानी हो सकती है।
फिल्म की शुरुआत चाय की टापरी से हुई और कई कठिन पड़ावों को पार कर के आज सिनेमा घरों तक पहुँच रही है।
मरमेड स्टूडियो की टीम काफी समय से अपने लिए फिल्मी दुनिया में अच्छा काम और वित्तीय सहायता तलाश रही थी पर सफलता नहीं मिल रही थी। तब उन्होंने निर्णय लिया की हम खुद ही फिल्म को अपनी आपसी सहायता से और अपनी वित्तीय स्थिति अनुसार फिल्म निर्माण करें। उसके लिए शशांक कुमार ने अपने भाई मनोज नारायण से संपर्क किया और शुरुआत करने के लिए वित्तीय सहायता मांगी जिसको की मरमेड टीम की लगन को देख कर वो इसके लिए तैयार हो गए।
इस फिल्म(Hindi Movie) की कहानी एक चाय की दूकान पर मरमेड टीम द्वारा गाढ़ी गयी जिसको कहानी का रूप दिया मनोज भाई ने खुद और शशांक और क्षितिज ने कहानी को सिल्वर स्क्रीन पर उतरने के लिए पटकथा और संवाद पर अगले तीन महीने काम किया। इसी दौरान रिज़वान पांडेय फिल्म के सहनिर्माता इस से जुडे और उन्होंने भी वित्तीय मदद का और ज़मीनी तौर पर निर्माण कार्य का भार अपने कन्धों पर लिया।
शशांक ने अपने संबंधों द्वारा काशीजी को इस फिल्म से संगीत ले माध्यम से जोड़ते हुए उन्हें भी फिल्म में सहनिर्माता का योगदान देने के लिए उत्साहित किया और फिर फिल्म दुनिया में काफी समय से कार्यरत फिल्म एडिटर संतोष के आर्या को साथ में मिल कर फिल्म में सहनिर्माता की तरह जोड़ा और पोस्ट प्रोडक्शन संतोष ने अपने कंधों पर ले लिया। यहाँ बताने योग्य बात यह है कि शशांक, संतोष, काशी रिचर्ड और रजनी पहले भी एक वीडियो एल्बम साथ में कर चुके थे। अतः यह कह जा सकता है कि मरमेड स्टूडियो ने वित्तीय स्थिति को मज़बूत किया और फिल्म बनाने निकल पड़े।
फाइनेंस कम होने की वजह से कलाकारों पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर सकते थे अतः फ़िल्मी दुनिया में संघर्षरत साथियों को साथ में लेकर आगे बढ़ने का सोचा और कई अनुमान लगाने के बाद मरमेड स्टूडियो रजनी कटियार, रोबर्ट डी'सा, अमितेश श्रीराम और राजनंदिनी पर विश्वास दिखाया और फिल्म का प्रीप्रोडूक्शन का काम शुरू कर दिया और अपने कलाकारों के संग फिल्म के किरदारों को रिहर्सल करवा कर जीवंत बनाने की कोशिश शुरू हुई जिसमें बहुत हद तक मरमेड स्टूडियो कामयाब हुआ और इसी अभ्यास और म्हणत का नतीजा फिल्म के गानों और सामायिक हास्य के रूप में। सामने आया।
कलाकारों में जहाँ शाहजहां जो की लड़की के पिता के रोल में आये उन्होंने अपनी एक्टिंग से अपने किरदार को जिवंत किया वहीँ दूसरी तरफ लड़के के पिता के रूप में नीलमणि ने अपने गरीब और एक पुत्र के साथ खड़े होने वाले पिता को जिया और दोनों ही कलाकारों ने टीम से और फ़िल्मी दिग्गजों से वहवाही पायी।
इस फिल्म को रांची झारखण्ड में फिल्माया गया और रांची के लोगों का मरमेड स्टूडियो ह्रदय से अभिवादन करता है कि उन्होंने शूटिंग के दौरान हर तरह से साथ दिया और वहां के लोकल कलाकारों ने कई किरदार फिल्म में निभाए। झारखण्ड सरकार और रांची जिला प्रशाशन ने भी काफी मदद की और शूटिंग को पूर्ण होने में काफी योगदान दिया। इस फिल्म को 18 दिनों में पूरा कर गया और जिसमे हमारे कैमरामैन भरानी कन्नन और आर्ट डायरेक्टर दीपक अम्बावाड़ेकर की सूझबूझ और वित्तीय दिक्कतों की समझ को जाता है।दीपक ने आर्ट के सामान के काम होने के बावजूद लोकल संसाधनों का प्रयोग कर जरूरत अनुसार सेट तैयार किया और उसको भी संभल कर रखते हुए आगे कई जगहों पर उसे काम में लिया। धन संरक्षण में दीपक अम्बावाड़ेकर ने एक बहुमूल्य योगदान दिया और समय से पहले शूट को खत्म करने में मदद करी।
कुछ छुटपुट बाधाओं के अलावा फिल्म की शूटिंग में कोई बड़ी बाधा कभी नहीं आयी। फिल्म के आखरी दिन के गाने के शूट में कुछ उपद्रवी किस्म के लड़कों ने बाधा डाल कर शूट को रुकवा दिया जिसके खामियाजा फिल्म को भी भुगतना पड़ा।
फिल्म एक्सटर्नल हार्ड डिस्क में बंद होकर मुम्बई पहुंची और हमाऋ फिल्म के चौथे और सबसे मज़बूत स्तम्भ संतोष के आर्या और युवराज शुक्ला हाथों में पोस्ट के लिए पहुंची और ऑडिओ लैब में फिल्म की एडिटिंग का काम शुरू हुआ और संतोष के साथ समीर शेख फिल्म से जुडे और इन दोनों ने फिल्म की रूपरेखा को तैयार किया और युवराज शुक्ल ने पोस्ट का काम अपने हाथ में लिया परंतु पैसों की कमी की वजह से काम को बीच में ही बंद करना पड़ा और एक समय ऐसा लगने लगा की फिल्म पूरी नहीं हो पायेगी। परंतु किसी तरह से पैसों का इंतज़ाम किया गया और फिल्म को आगे बढ़ाया गया।
फिल्म की शूटिंग के दौरान, पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान आपस में कई मतभेद भी हुए परंतु अंत भला तो सब भला की कहावत चरितार्थ करती हुई ये फिल्म 6 मार्च को परदे पर आ रही है।
इस फिल्म को हास्यास्पद बनाने में बैकग्राउंड म्यूजिक का बहुत बड़ा भाग है जिसको असलम सुर्ती ने दिया है और फिल्म में जुड़ने के बाद से उन्होंने हर तरह से फिल्म को पूरा करने में आयी दिक्कतों का भी समाधान किया।
ऑडिओलैब के मालिक और फिल्म के साउंड डिज़ाइनर सतीश पुजारी का फिल्म में बहुत योगदान रहा और शशांक की लगन को देखते हुए उन्होंने हर तरह से मदद करने की कोशिश की और फिल्म के संगीत को हर प्लेटफार्म पर पहुँचाया तथा म्यूजिक कंपनी का नाम के साथ साथ सपोर्ट दिया।
फिल्म के निर्देशक शशांक कुमार बिहार पटना के रहने वाले हैं। वह फिल्म के डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर जब हर जगह जा रहे थे तभी उनकी मुलकात UFO के दिग्गज लोगों से हुई और किस्मत से शशांक और उनकी बातचीत फिल्म को लेकर हुई।
उन्होंने शशांक को अपनी फिल्म लेकर मिलने को बुलाया और वहीँ सहाशंक और टीम की लगन को देख कर उन्होंने मदद करने का मन बना लिया। फिल्म UFO की टेक्निकल टीम ने देखा और सराह जिसने कुछ उम्मीदें मरमेड स्टूडियो की टीम में जगायी और एक दो मीटिंग के बाद अन्ततः UFO ने अपना वादा निभाते हुए फिल्म के ट्रेलर को बेहतरीन तरीके से चलाया और 6 मार्च को फिल्म रिलीज़ कर रहे हैं।UFO ने वित्तीय दिक्कतों को और मरमेड के पास पैसा न होने को कभी ख़राब नहीं माना और हमेशा हौसला दिया।
अंत में शशांक से बात होने पर उन्होंने केवल अपनी फिल्म को दर्शकों के हाथों में छोड़ दिया है और कहते हैं अगर दर्शकों ने साथ दिया तो दोबारा इतनी ही लगन और मेहनत से दूसरी फिल्म पर काम करेंगे। अंततः कहते हैं क़ि दर्शकों के मिले प्यार के आगे सारे कष्ट और वित्तिय संघर्ष छोटे लगते हैं।
हमारी मेहनत और लगन का पैमाना तो दर्शकों का प्यार है और उनका प्यार ही हर मुश्किल वक़्त में जूझने का दम देता है।
वित्तीय