समाज का दर्पण बने मुंशी प्रेमचंद उनके जन्मदिन पर श्रद्धा सुमन

समाज का दर्पण बने मुंशी प्रेमचंद उनके जन्मदिन पर श्रद्धा सुमन

(चंद्र भूषण पांडेय) मुंशी प्रेमचंद का नाम आते ही एक ऐसे शब्द चित्रकार की छवि उभरती है जो आम आदमी के मन के अंदर घुस कर उसकी पीड़ा, उसकी व्यथा, उसके विचार, उसकी सोच, उसकी दृष्टि, उसके सरोकार को सटीक समझ कर अपनी लेखनी से शब्दांकित करने में अत्यंत कुशल थे।
मुंशी प्रेमचंद कि आज पावन जयंती है।

कई बार जब कोई महान व्यक्ति अपनी देह को छोड़कर स्वर्गारोहण करता है तो उस समय व्यक्त संवेदनाओं में एक शब्द कई बार सुनने को मिलता है अपूरणीय क्षति...

आज भी यह देश मुंशी प्रेमचंद को ढूंढ रहा है न भूतो न भविष्यति ऐसे रचनाकार जो अपनी सरल लेखनी से समाज के निर्माण में भूमिका निभाने वाले सेठ साहूकारों, थाने के थानेदारों सत्ता में बैठे बड़े-बड़े ओहदेदारों से लेकर अंग्रेजों तक को अपने शब्दों से ऐसे झकझोरा था कि उनकी तंद्रा टूट गई थी, उन्हें एक मजबूत भारत बनाने की दृष्टि से तैयार करने में उनके महान योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, सच तो यह है उस आजादी की लड़ाई में मुंशी प्रेमचंद के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से न केवल समाज का दर्पण बने बल्कि समस्याओं के समाधान की दृष्टि से भी उन्होंने अनेक अभिनव समाधान परोसने का भी कार्य किया उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी लेकिन एक अच्छी बात है उनका साहित्य आज भी समीचीन लगता है, प्रासंगिक लगता है, समाधान कारी लगता है और प्रेरणादाई लगता है।

हम उनके योगदान को विनम्रता से याद करते हुए कृतज्ञ भाव से उनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

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