US Presidential election 2020 Climate Change का होगा बड़ा Roll

US Presidential election 2020 Climate Change का होगा बड़ा Roll

अमेरिकी चुनाव(US Presidential Election 2020) क्या जलवायु परिवर्तन(Climate Change) कराएगा सत्ता परिवर्तन?

Deskअमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव महज़ तीन महीने बाद हैं और कोविड महामारी के शोर के बीच अगर वहां कोई चुनावी मुद्दा सुनाई देता है तो वो है जलवायु परिवर्तन।

बर्नी सैंडर्स से लेकर कमला हैरिस तक सभी की ज़ुबान पर एक ही बात है, और वो है 'ग्रीन न्यू डील'। इसके अंतर्गत 2030 तक अमेरिका को कार्बन मुक्त किया जाना है। अमेरिका जैसी विश्वशक्ति के राष्ट्रपति चुनाव में अगर पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, और कार्बन उत्सर्जन जैसे शब्द मुद्दा बन के उभरने लगें तो थोड़ा हौसला मिलता है।

चलिये एक नज़र डालते हैं अमेरिकी चुनाव के कुछ मुख्य नामों पर और उनकी चुनावी प्राथमिकताओं को भी समझते हैं।

वाइस प्रेसीडेंट जो बिडेन

बिडेन ने खुद को युवा पीढ़ी के नेतृत्व के लिए “परिवर्तनकारी" उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी 2035 तक अमेरिका को डीकार्बनाइज करने की योजना है। कुछ हफ्ते पहले बिडेन ने 2035 तक अमेरिका के पावर सेक्टर को कार्बनविहीन करने के लिए नई जलवायु योजना शुरू की जो पूरे क्षेत्र में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने पर केंद्रित थी।

कमला हैरिसकमला कैलिफोर्निया की एक सीनेटर हैं। इस प्रतिस्पर्धा में हैरिस ने 2045 तक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था बनाने के लिए 10 ट्रिलियन $ का प्लान जारी किया; जिसमें पर्यावरण न्याय पर ध्यान केंद्रित करना, जीवाश्म ईंधन उद्योगों के लिए सब्सिडी समाप्त करना और कार्बन प्रदूषण पर शुल्क लगाने जैसी योजनाएं शामिल थीं उन्होंने अपने द्वारा कैलिफोर्निया के पर्यावरण मानकों का बचाव करने और राज्य में शेवरौन और बीपी जैसे तेल कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखाने की बात सामने रखी।

एलिजाबेथ वारेन

वारेन मैसाचुसेट्स की सीनेटर हैं। अपने लेजिसलेटिव कार्यों के दौरान उनका ध्यान उद्योगों की उनके कार्यों के प्रति जवाबदेही तय करने और उपभोक्ताओं की वकालत करने पर ज्यादा केंद्रित रहा। अपने नॉमिनी के कैंपेन के दौरान वॉरेन ने जलवायु संकट में वॉल स्ट्रीट और वित्त की भूमिका को रोकने के उद्देश्य से एक क्लाइमेट प्लान पेश किया।

सुसैन राइस

सुसैन ओबामा की पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अमेरिका की भूतपूर्व राजदूत भी रह चुकी है। जबकि उनका उनका अनुभव विदेशी राजनीति में रहा है पर उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा पर मौसमी परिवर्तन के प्रभाव का उल्लेख किया है और अपनी किताब में उसे अस्तित्व संबंधी महत्वपूर्ण संकट बताया है।

वैल डेमिंग्स

डेमिंग्स फ्लोरिडा की प्रतिनिधि और ऑरलैंडो पुलिस विभाग की पूर्व प्रमुख रह चुकी हैं। उन्होंने कांग्रेस में, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को संरक्षण और दक्षता कार्यक्रमों में वित्तीय निवेश के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही ट्रम्प के फ्लोरिडा और कैलिफोर्निया के तट से नए तेल की ड्रिलिंग की अनुमति देने के प्रस्ताव और पेरिस समझौते से पीछे हटने की निंदा की है।

केरन बॉस

बॉस कैलिफोर्निया से एक प्रतिनिधि हैं और कांग्रेसनल ब्लॉक ब्लैक कॉकस की अध्यक्षा हैं। बास ने ग्रीन न्यू डील का समर्थन किया है। उन्होंने श्रमिकों के समर्थन में अर्थव्यवस्थाओं की ग्रीन हाउस गैस पर निर्भरता खत्म करने और पर्यावरण न्याय समुदायों में स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को कम करने के लिए एक पर्यावरण न्याय बिल को सह-प्रायोजित किया है।

बात अगर डेमोक्रेट्स और ट्रम्प की अगुवाई वाले रिपब्लिकन्स की करें तो जहाँ डेमोक्रेट्स जलवायु परिवर्तन पर संवेदनशीलता दिखाते हैं वहीँ रिपब्लिकन ट्रंप ने तेल और गैस के मुद्दे को बरकरार रखते हुए पेरिस समझौते की आलोचना कर रहे हैं। ट्रंप ने टेक्सास में एक तेल रिग में अभियान भाषण देते हुए पेरिस जलवायु समझौते को एक तरफा और ऊर्जा को नष्ट करने वाला बताते हुए अपने द्वारा उसे वापस लेने का कारण स्पष्ट किया।

ह्यूस्टन क्रौनिक्ल के जेरेमी वालेस के अनुसार ट्रम्प ने लोगों को चेताया कि डेमोक्रेट्स तेल और गैस को खत्म करना चाहते हैं और डेमोक्रेट्स के सत्ता में आने पर राज्य ऊर्जा के मामले में कंगाल हो जाएगा। ट्रम्प अमेरिका की तेल और गैस के क्षेत्र में नंबर 1 निर्माता की छवि बनाए रखना चाहते हैं इसके लिए ट्रंप ने अपनी तरलीकृत प्राकृतिक गैस निर्यात प्राधिकरणों के 2050 तक विस्तार करने की घोषणा भी की है।अब बात स्विंग स्टेट्स की। हालिया रुझान बताते हैं कि फ्लोरिडा, एरीज़ोना, उत्तरी कैरोलिना, और जॉर्जिया में लगभग तीन चौथाई मतदाताओं ने ट्रंप को जीत दिलाई थी लेकिन 2020 में इन राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन देने वाले विडेन को शायद अपनी पसंद बनाया है।

अब देखना यह है कि क्या दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों में से एक, अमेरिका अपनी काली हक़ीक़त को हरी चुनावी स्याही से मिटा पायेगा। और नज़र इस पर भी बनानी है कि क्या भारत में इस हरी बयार का असर आने वाले चुनावों पर होगा?

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