क्रांति का वह सच जो वामपंथी इतिहासकारों द्वारा छुपाया गया,11 महीने पहले ही यहां अंग्रेजों के खिलाफ बज गया था क्रांति का बिगुल

क्रांति का वह सच जो वामपंथी इतिहासकारों द्वारा छुपाया गया,11 महीने पहले ही यहां अंग्रेजों के खिलाफ बज गया था क्रांति का बिगुल

मेरठ से पहली ही अवध में जल चुकी थी क्रांति की ज्वाला

मेरठ से 11 महीने पहले ही कर दिया था विद्रोह

State News UP गोण्डा। अभिषेक स्वरुप अवध का सबसे मजबूत ताल्लुका रहा है गोण्डा। नवाब वाजिद अली शाह के वजीर नकी अली की मिलीभगत पर और जाली दस्तावेजों को आधार बनाते हुए अंग्रेजों ने 7 फरवरी 1856 को अवध के अधिग्रहण की सूचना प्रसारित कर दी और हेनरी लेविन्स को यहां शासक नियुक्त कर दिया। यहां पर लोगों ने टैक्स देने से इनकार कर दिया। कर्नल वोयलू को गोण्डा का डिप्टी कमिश्नर नियुक्त किया गया। यहां के ही राजा देवीबख्श सिंह के बहादुर सिपाही फजत अली ने कर्नल वोयलू का सिर कलम कर दिया और अंग्रेजों को संदेश दे दिया कि यहां उनकी नही चलेगी। इसका उल्लेख गोण्डा गजेटियर में भी है। माना जाता है कि अंग्रेजों के विरुद्ध हिन्दुस्तान का यह पहला हिंसक प्रत्युत्तर था।
अंग्रेज अधिकारी का सर कलम करने वाले आजादी के इस मतवाले को इतिहास में उतनी प्रसिद्धि नही मिल सकी थी जितनी मिलनी चाहिए। इसकी वजह संभवतः सरकारी अभिलेखों में उनकी गलत भूमिका का अंकन रही। उनपर लूट व हत्या के मुकदमे दर्ज थे। साथी फैजू के साथ उमराव जान की आशनाई थी। उमराव जान अवध के नवाब की पसंद थीं। साथी फैजू की मोहब्बत के लिए फजत अली ने उमराव जान का अपहरण भी किया था। इस वजह से भी वो सरकार की आंख की किरकिरी थे।
गोण्डा की धरती पर उपजे आजादी के लड़ाकों की बात की जाती है तो पहला नाम महाराजा देवी बख्श सिंह का लिया जाता है। इतिहासकार माधव राज सिंह बताते हैं कि आजादी के बाद प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शताब्दी वर्ष पर आठ क्रांतिकारियों के चित्र जारी किए थे जिनमें इनका भी नाम था। दूसरा नाम टेढ़ी नदी के बगल स्थित गांव सररैया निवासी कैप्टन गजोधर पांडे का लिया जाता है। नेपाल से बेगम हजरतमहल का पत्र लेकर राजा देवी बख्श सिंह के पास ये ही आए थे। इनके वफादार सिपाहियों रामदयाल मिश्रा, मुन्नू मिश्रा और जगन्नाथ मिश्रा ने जान देकर भी अंग्रेजों को उनका पता नही बताया। अंग्रेजों ने इन्हें तोप के गोलों से उड़वा दिया था। राजा देवीबख्श के अभिन्न साथी और वीरपुर विसेन निवासी गुलाब सिंह जब लमती लोलपुर की लड़ाई हारे तो राजा के साथ ही नेपाल चले गए थे और फिर लौटकर कभी नही आए।
अनुभुला के शिवासिंह को उनकी बहादुरी के लिए जाना जाता है। इनके मारने के बाद पत्नी सती हो गई थीं जिनका स्मारक चौरा बुआ नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार खिरिया के भगवत सिंह, उमराव सिंह सरीखे कई नाम भी हैं जिनका आजादी की पहली लड़ाई में साहसिक योगदान रहा।
राजा देवीबख्श सिंह के वंशज अजय सिंह अपनी यादों में पूर्वजों राजा दत्त सिंह , राजा देवीबख्श सिंह, वीर सिंह, गुलाब सिंह के तमाम किस्से सुनाते हैं जिनके ऐतेहासिक साक्ष्य गोण्डा गजेटियर और 1957 में इतिहासकार अमृतलाल नागर के लिखे गए संकलन में इसका उल्लेख मिलता है।

साभार अभिषेक स्वरूप के फेसबुक वाल से

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