हिंदी भी अपने ही घर में किसी माँ की तरह उपेक्षित रह जाती है

हिंदी भी अपने ही घर में किसी माँ की तरह उपेक्षित रह जाती है

हिंदी ही क्यों?

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जीवन में जब भी आपको विकल्प घेर लेते हैं तो आप उसी विकल्प का चुनाव करते हैं जहाँ आप सहज और अपनेपन का अनुभव करते हैं। संवाद, अभिव्यक्ति और रुचि के इन्हीं वैकल्पिक क्षेत्रों में मैंने चुना 'हिंदी' को।
बचपन से ही हिंदी के प्रति एक रुझान-सा रहा। नए सत्र के आरंभ होते ही अन्य सभी पाठ्यपुस्तकों को दरकिनार कर हिंदी की पुस्तक लेकर शिक्षिका के पढ़ाने के पहले स्वयं ही सारी कहानियाँ पढ़ लेना हिन्दीप्रेम को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं।
आध्यात्मिक, व्यवहारिक और नैतिक विकास में भी हिंदी का योगदान माँ की तरह है। सचमुच! कितना स्वभाविक है मातृभाषा से आत्मीयता का भाव रखना। वर्ण मात्राओं के ज्ञान से लेकर कहीं किसी सभा संबोधन तक हिंदी बड़ा सहारा देती है। कोई दुधमुहा बालक वही भाषा बोलना सीखता है जिससे वह आवरित होता है। मैं गर्व करती हूँ कि मुझे हिंदी का आवरण मिला।
हिंदी भी अपने ही घर में किसी माँ की तरह उपेक्षित रह जाती है। पुरुषप्रधान समाज में नारी की उपेक्षा कोई नयी बात नहीं। लेकिन भी इसके आसपास का अथाह सुकून कम नहीं होता, ना ही हमपर इसका नेह कम होता है। आज भारत विश्वभर में दूसरा सबसे बड़ा अंग्रेजी भाषी देश है। इस सूची में पहले नंबर पर आता है अमेरिका। भारत में लगभग 12 करोड़ लोग प्रवाहयुक्त अंग्रेजी बोल सकते हैं। इस प्रवाह का स्रोत हिंदी ही है, हिंदी ऐसी भाषा है जिसके वर्ण उच्चारण में जिह्वा, दन्त, ओष्ठ, तालु आदि अंगों सहित सम्पूर्ण मुख का व्यायाम होता है। अर्थात हिन्दीभाषी व्यक्ति हर भाषा बोलने में सक्षम है किंतु अंग्रेज़ी भाषी चाहे कितना प्रयास करे हिंदी शब्दोच्चारण में पूर्णतः सफल कभी नहीं होता।
साथ ही हिंदी पढ़ने और लिखने के क्रम में अक्षरों के साथ-साथ मात्राओं पर भी ध्यान देना पड़ता है, यह विशेषता मस्तिष्क के सर्वांगीण विकास में बड़ी भूमिका निभाती है। हिंदी ने अपने शब्दभंडार में संस्कृत को जीवित रखा है। देवभाषा संस्कृत भारत की सभी प्रमुख लिपियों की जननी है। जो भी भाषा संस्कृत की प्रतिनिधि है वह भारत का प्रतिनिधित्व करती है।
उस लड़खड़ाती पेंसिल से 'क' लिखने का घोर प्रयत्न और 'मछली जल की रानी' पढ़ने की खुशी में हिंदी ने हमें जितना बढ़ावा दिया है, उसके लिए हर हिन्दीभाषी आजीवन ऋणी ही रहेगा। साथ ही हिंदी ने हमें बचपन से ही एक और बड़ी शिक्षा दी... अन्य भाषियों का तिरस्कार ना करने की। हिंदी ने ही कबूतर वाली कहानी से एकता सिखायी, शेर और खरगोश वाली कहानी से बुद्धिमता सिखायी और खरगोश और कछुए वाली कहानी से अहंकार के दुष्प्रभाव बताए। हिंदी का उत्थान इसके इसी सभ्यता और विनम्रता को अनवरत रखने में है। यही सारी विशेषताएँ बताती हैं कि हिंदी का स्थान भाषा से कहीं अधिक ऊँचा है।
©जया मिश्रा 'अन्जानी'

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