एक गलती से, बेगुनाह होने के बाद भी क्यों कई साल तक चलते रहते हैं मुकदमे

एक गलती से, बेगुनाह होने के बाद भी क्यों कई साल तक चलते रहते हैं मुकदमे

227 Cr. p.C के तहत एप्लिकेशन डिस्चार्ज की डालें अगर खारिज होता है तो चैलेंज करें

Legal News Desk-Jystice Delaid is Justice Denied कोर्ट कचहरी के मामले में पड़ कर लोगों का समय कितना बर्बाद होता है यह तो वही जानता है जो झेलता है ।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो शातिर होतेहैं वह कानून का गलत तरीके से पालन करते हैं और लोगों को फर्जी मुकदमे में फंसा करें वहीं दूसरी तरफ जो शरीर व्यक्ति है उसको कानून के बारे में भी जानकारी नहीं पता होती है और वह सालों साल बेगुनाह होने के बावजूद मुकदमे चलता रहता है अब इसमें सबसे बड़ी बात यह होती है कि जांच होने के बाद में विवेचना होने के बाद में पुलिस जब अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर देता है तो उसी समय अगर एक्यूज्ड(Accused ) अपनी बेगुनाही का सबूत दे सकता है तो कानून में यह व्यवस्था है कि धारा 227 और 239 के तहत सीआरपीसी के तहत वह अपनी बेगुनाही को साबित कर सकता है और कोर्ट द्वारा उसे बरी कर दिया जाता है जबकि व्यवहारिक रूप में ऐसा बहुत ही कब होता है और लोग द्वारा गलती यह की जाती है कि धारा 227 सीआरपीसी के तहत डालने के बाद अगर वह खारिज होता है तो उसकी अपील नहीं की जाती और यही सबसे बड़ी गलती होती है ।
और वही से शोषण शुरू हो जाता है अगर उस डिस्चार्ज एप्लीकेशन को चैलेंज किया गया होता और उसमें राहत मिलती तो सालों साल चलने वाले मुकदमे तत्काल खत्म हो सकते हैं।

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