राहुल गांधी को पिछले कुछ वक्त से बाहरी देशों से बड़ा ही विशेष लगाव जानिए क्यों 

Rahul Gandhi has a special liking for foreign countries for some time now, know why
 

Rahul Gandhi US Visit : जब भी दुनिया में लोकतंत्र की नज़ीर दी जाती है, तो वहां हमारे भारत देश का नाम सबसे पहले लिया जाता है. क्योंकि यहां सियासत तो बहुत जमकर होती है, लेकिन सियासतदान इस बात का ख़्याल रखते हैं कि राजनीतिक और वैचारिक मतभेद अपनी जगह होने चाहिए, लेकिन देश सबसे पहले होना चाहिए..यही इस देश के लोकतंत्र की खूबसूरती है. और इसका अगर हम सबसे बड़ा उदाहरण आपको दें तो ज़िक्र अटल बिहारी वाजपेई जी का सबसे पहले आएगा... अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा से ही एक ऐसे नेता रहे जिन्हें न सिर्फ अपनी पार्टी में बल्कि विपक्षी पार्टियों में भी खूब मान-सम्मान मिला.साल 1994 की बात है.

विपक्ष में होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजे गए प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया था... उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी... यही वो समय था जब देश के बचाव में सभी पार्टियों और धर्म के नेता एकसाथ खड़े हो गए थे. दुश्मन देश के लोग भी हैरान थे कि आखिर ये कैसे मुमकिन हो सकता है कि किसी देश के विपक्षी नेता सत्ता पक्ष का इस बहादुरी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकते हैं. सचमुच ऐसा सिर्फ भारत में ही मुमकिन है.

राहुल गांधी का अमेरिका दौरा हंगामे का कारण बनेगा

लेकिन अब हमारे यहां ये 'देश सबसे पहले' वाला कल्चर खत्म होता जा रहा है. इस पर बट्टा लगाने का काम कर रहे हैं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी. जी हां, राहुल गांधी को पिछले कुछ वक्त से बाहरी देशों से बड़ा ही विशेष लगाव हो गया है... वो बीच-बीच में वहां जाकर ज्ञान देते रहते हैं. और उनका ये ज्ञान देश विरोधी ज़्यादा रहता है. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं, इसका पता आपको ये पूरा वीडियो देखने के बाद पता चल जाएगा.

देखिए, इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बेधड़क आलोचना करके राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक ज़मीन पुख्ता कर ली है. हालांकि उनकी ये आलोचना हमेशा तार्किक हो, logical हो, ये ज़रूरी नहीं है. लेकिन वो कहते हैं न कि समर्थ को गरियाने की हिम्मत दिखाना भी साहस का प्रतीक माना जाता है. तो राहुल गांधी भी ऐसा ही साहस दिखा रहे हैं.

दरअसल, राहुल गांधी हाल ही में अमेरिका गए. नेता प्रतिपक्ष के नाते उन्हें पीएम और सरकार की आलोचना का पूरा अधिकार है. ये हम अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन मुद्दे की बात करते करते उनकी गाड़ी कब पटरी से उतर जाए, ये कहना ज़रा मुश्किल है.राहुल गांधी का अमेरिका दौरा हंगामे का कारण बनेगा, इसका अंदाजा तो पहले ही से था. इसका एक वजह ये भी है कि वो पीएम मोदी, हिंदुत्व, भाजपा और आरएसएस की आलोचना को लेकर जितने कंफर्टेबल परदेस में नज़र आते हैं, उतना वो स्वदेश में नहीं आते.

एक सिख होने के नाते क्या उन्हें भारत में अपनी पगड़ी पहनने की अनुमति मिलेगी

जब देश में दो राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उसी वक्त राहुल विदेश क्यों गए, इसका कोई ठीक ठीक जवाब नहीं है सिवाय इसके कि ये भी एक Sponsored एजेंडे का हिस्सा था.उनकी यात्रा कोई ऑफिशियल नहीं थी. अमेरिका में बसे टैक्नोक्रेट और इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने पहले ही कहा था कि राहुल की ये यात्रा निजी है. लेकिन इस निजी यात्रा को भी इस ढंग से डिजाइन किया गया था  ताकि उसका अलग राजनीतिक संदेश जाए और राहुल जो भी कहें, उस पर दुनिया खासकर भारत में जमकर बवाल मचे. जैसा सोचा गया था, वैसा हुआ भी.

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कुछ बातें जो राहुल ने कही, वो पहले भी कहते आए हैं... जैसे कि भारत में लोकतंत्र कमजोर हुआ है, लोकसभा के चुनाव निष्पक्ष नहीं थे, भारत एक विचार नहीं है, कई विचारों से बना है, नरेन्द्र मोदी से अब कोई नहीं डरता वगैरह. लेकिन राहुल ने सबसे खतरनाक बयान भारत में सिखों की धार्मिक आजादी को लेकर दिया और इस बयान के समर्थन में अमेरिका में बैठे आंतकी सिख नेता गुरुपतवंतसिंह पन्नू ने जिस ढंग से Positive feedback दी, वो वाकई चिंता करने वाली है.राहुल ने जो बात कही थी, वो भी बहुत चलताऊ तरीके से थी. वॉशिंगटन डीसी में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के कार्यक्रम में राहुल ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा-


हमें सबसे पहले समझना होगा कि लड़ाई राजनीति को लेकर नहीं है... लड़ाई इस बात की है कि एक सिख होने के नाते क्या उन्हें भारत में अपनी पगड़ी पहनने की अनुमति मिलेगी? सिख होने के नाते इन्हें भारत में कड़ा पहनने की अनुमति मिलेगी? सिर्फ़ इनके लिए ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लिए ये लड़ाई है।”

भारत में सिखों के साथ 1947 से ही भेदभाव होता आया है

बहुत गैर-जिम्मेदाराना तरीके से दिए गए इस कोमेंट में राहुल ने ये नहीं बताया कि ऐसा कौन सा सिख उन्हें मिला, जिससे कहा गया हो कि भारत में वो पगड़ी नहीं बांध सकता या फिर कड़ा पहन कर गुरुद्वारे में नहीं जा सकता... वैसे भी मर्यादा का पालन करते हुए कोई भी व्यक्ति गुरुद्वारे में मत्था टेक सकता है... राहुल ने जो कहा सो कहा, लेकिन उस बयान पर आंतकी पन्नू का जो बयान आया, वो कहीं ज्यादा खतरनाक है..वॉशिंगटन डीसी के जिस कार्यक्रम में राहुल गांधी ने ये बात कही, वहां कई खालिस्तान समर्थक सिख बैठे हुए थे... राहुल ने भारत में सिखों के साथ भेदभाव की बात कहकर ‘सिख फाॅर जस्टिस’ की खालिस्तान पर global referendum की मांग को justify करने का काम किया है. यही नहीं पन्नू ने ये भी कहा कि राहुल के बयान ने इस बात को प्रूव किया है कि भारत में सिखों के साथ 1947 से ही भेदभाव होता आया है.. इससे पंजाब को भारत से अलग करने के लिए जनमतसंग्रह की हमारी मांग का औचित्य ही सिद्ध होता है.

हालांकि राहुल के अमेरिका में दिए इस बयान की केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कटु आलोचना की और भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल की बात को ‘बचकाना टिप्पणी’ बताया.अब सवाल ये आता है कि राहुल इस बयान के जरिए क्या उसी आग से फिर खेलना चाहते हैं, जिसकी आग में खुद उनकी दादी इंदिरा गांधी झुलसीं और उन्हें अपनी जान सिख आतंकियों के हाथों गंवानी पड़ी. आपको बता दें कि इंदिरा गांधी ने भी पंजाब में कांग्रेस के क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के चलते खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले को शह दी थी... उसी भिंडरावाले ने अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया था. इस अलगाववाद का नतीजा न केवल इंदिरा गांधी ने भुगता, बल्कि पूरे देश ने भुगता.

तो क्या अब ये समझा जाए की भारत में सिखों के साथ भेदभाव की काल्पनिक बात उठाकर क्या राहुल उसी अलगाववाद के जहर को सींचने की गलती जानबूझकर कर रहे हैं? क्या वो उसी स्वतंत्र खालिस्तान की मांग को हवा दे रहे हैं, जिसके खिलाफ उनकी दादी और पार्टी अब तक लड़ती आई है? क्या वो देश के एक और विभाजन का परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं? ये सारे सवाल बड़े हैं और ये इस बात की गवाही दे रहे हैं कि राहुल गांधी कैसे भारत में गृह युद्ध की नींव तैयार कर रहे हैं.

राहुल गांधी ने अपने अमेरिका दौरे पर मुस्लिम सांसद इलहान ओमर से भी मुलाकात की

वैसे राहुल गांधी की नियत पर शक करने की एक और बड़ी वजह भी है. दरअसल, राहुल गांधी ने अपने अमेरिका दौरे पर मुस्लिम सांसद इलहान ओमर से भी मुलाकात की जो अपने भारत विरोधी बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहती हैं... पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की कट्टर समर्थक इलहान ओमर अपने भारत विरोधी रुख के लिए खूब फेमस हैं. इलहान भारत विरोधी नारे लगाती हैं... यही नहीं उन्होंने Pakistan Occupied Kashmir का भी दौरा किया था और पीओके में भारत के खिलाफ खूब बयानबाजी भी की थी. हिंदूफोबिया को लेकर भी इलहान अक्सर विवादित बयानों से घिरी रहती हैं.

एक वक्त पर इलहान ओमर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी संसद को संबोधित किए जाने वाले सत्र का भी बहिष्कार किया था. दरअसल, पीएम मोदी ऑफिशियल टूर पर अमेरिका पहुंचे थे. उस समय इलहान ने कहा था कि वो पीएम मोदी के भाषण का इस वजह से विरोध कर रही हैं क्योंकि भारत सरकार का अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है.इन सब बातों से पता चलता है कि इलहान ओमर एक कट्टर भारत विरोधी हैं और भारत के ऐसे दुश्मन के साथ मुलाकात करना राहुल गांधी की नियत को भी साफ दर्शाता है.

राहुल गांधी चीन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर हमेशा हमलावर रहे हैं

चलिए अब जब इतनी बात हो ही गई है तो आपको, राहुल गांधी का चाईनीज़ कनेक्शन भी बयां कर देते हैं. तो पहले तो हम आपको ये बता दें कि चीन के साथ कांग्रेस पार्टी का नाता आज का नहीं बल्कि तब का है जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत को मिलने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी सदस्यता प्लेट में सजाकर चीन को गिफ्ट कर दी थी. आज उसी का खामियाजा देश भुगत रहा है जब पाकिस्तान की नापाक आतंकी हरकतों के पक्ष में भारत के खिलाफ यूएन में चीन वीटो लगाता रहा है... ये तो रही नेहरू की बात, अब आपको राहुल गांधी की बात बताते हैं. राहुल गांधी चीन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर हमेशा हमलावर रहे हैं. अभी जब वो अमेरिका गए, वहां भी उन्होंने चीन की जमकर तारीफें की... उन्होंने इनडायरेक्टली चीनी सरकार की नीतियों को भारत सरकार की नीतियों से बेहतर बताया और देश में बेरोज़गारी के लिए सीधे नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया.

वैसे आपको ये बात जानकर भी हैरानी होगी कि चीन के प्रोपेगेंडा को हवा देने के साथ ही राहुल गांधी, भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने से भी पीछे नहीं रहे हैं. कांग्रेस और चीन के इस कनेक्शन का पता तब चला जब डोकलाम विवाद के दौरान राहुल गांधी ने चुपचाप तरीके से चीनी अधिकारियों से मुलाकात की थी कांग्रेस जिस व्यक्ति को देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करती है, उसकी ये चीन से मुलाकात देशहित में संदेह पैदा करती है. 

पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना के दूतावास ने राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग की थी

एक खबर के मुताबिक चीन की सरकार ने साल 2005 से लेकर 2008 तक राजीव गांधी फाउंडेशन को डोनेशन दी थी. राजीव गांधी फाउंडेशन 2005-06 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई कि पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना के दूतावास ने राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग की थी. चीनी दूतावास के रिकॉड्स के मुताबिक, उस समय चीन के राजदूत सुन युक्सी ने 10 लाख रूपये राजीव गांधी फाउंडेशन को दान में दिए थे जिसकी तस्वीरें भी इंटरनेट पर मौजूद हैं... चीन हमेशा से भारत का दुश्मन रहा है, और अपने देश के दुश्मनों के साथ दोस्ती निभाकर राहुल गांधी क्या साबित करना चाहते हैं, इसका जवाब तो उन्हीं का मालूम होगा.

बहरहाल, 2024 लोकसभा चुनाव में मिले भारी जनादेश से राहुल गांधी के हौसले बुलंद हैं, उन्हें पता नहीं कहां से ये विश्वास है कि वो केंद्र सरकार की मौजूदा सरकार को गिराने में कामयाब होंगे... शायद इसीलिए वो भारत की फिज़ाओं में नफरत की हवा घोलने का काम कर रहे हैं... इस बात को हमारे देशवासी जितनी जल्दी समझ जाएं, उनके लिए उतना ही बेहतर होगा...