उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में योगी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर 

Yogi government's prestige is at stake in Uttar Pradesh by-election
 

(मनोज कुमार अग्रवाल-विनायक फीचर्स) देश में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग होगी, 23 नवंबर को नतीजे आएंगे। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में झटका लगा और समाजवादी पार्टी उभरी, सभी की नजरें अब चुनाव पर टिकी हैं। राजनीतिक पंडित इस चुनाव को योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव पर लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है।

मायावती की बहुजन समाज पार्टी के चुनावी मैदान में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। प्रदेश की जिन 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे, उनमें सीसामऊ (कानपुर), कटेहरी (अंबेडकर नगर), कुंदरकी (मुरादाबाद) और करहल (मैनपुरी) इन चार सीटों पर 2022 के विधानसभा चुनावों में एसपी ने जीत दर्ज की थी तो खैर (अलीगढ़), फूलपुर (प्रयागराज) और गाजियाबाद  सीटें बीजेपी के पास थीं। मंझवा (मिर्जापुर) में निषाद पार्टी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर आरएलडी ने जीत दर्ज की थी। सीसामऊ को छोड़कर बाकी सभी सीटें विधायकों के सांसद बनने के  बाद खाली हुई हैं। सीसामऊ सीट विधायक इरफान सोलंकी को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद खाली हुई है।

 
वैसे उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के नतीजों से बहुत ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है। 403 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के पास 283 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत है। एसपी और उसके सहयोगियों के पास सिर्फ 107 सीटें सीटें हैं। जानकारों के मुताबिक, अगर इस चुनाव में एसपी अपनी सीटें बरकरार रखने में सफल होती है, तो यह बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ाने वाला  संकेत होगा। समाजवादी पार्टी अपने पीडीए फॉर्मूले यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के दम पर उपचुनाव में उतर रही है। लोकसभा चुनाव में एसपी ने इसी फॉर्मूले की बदौलत बीजेपी को पछाड़ा था, पार्टी ने प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 37 पर जीत दर्ज की थी। एसपी के जीते हुए उम्मीदवारों में 25 पिछड़ी जातियों से थे। उपचुनाव में एसपी ने चार सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं,

जिनमें दो महिलाएं हैं, तीन सीटों पर ओबीसी और दो पर दलित समुदाय से आने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है, जिनमें गाजियाबाद सीट भी शामिल हैं। एसपी ने कुल पांच महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले की कामयाबी को देखते हुए बीजेपी ने  भी  इस बार ओबीसी उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। पार्टी ने चार ओबीसी, दो ब्राह्मण, एक राजपूत और एक दलित उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी)  ने भी मीरापुर से ओबीसी प्रत्याशी को टिकट दिया है।

मीरापुर से दबंग पत्रकार अरशद राणा के चुनावी मैदान में उतरने से यहां मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर राणा ने आननफानन में असदुद्दीन औवेसी की पार्टी से टिकट लिया और अब वे पतंग चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में हैं। सीसामऊ विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है। इस सीट पर मुकाबला समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार नसीम सोलंकी और बीजेपी के सुरेश अवस्थी के बीच है। सोलंकी मुस्लिम समुदाय से आती हैं, जबकि अवस्थी ब्राह्मण हैं। बीएसपी ने भी ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए वीरेंद्र शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है, जिसके बाद कहा जा रहा है कि बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इस सीट पर मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित वोटर्स मुख्य भूमिका निभाते हैं। इतिहास भी बीजेपी के साथ नहीं है। 28 सालों से इस सीट पर कमल नहीं खिला है।

बीजेपी ने 1991 में इस सीट पर पहली बार जीत दर्ज की थी, लेकिन 2012 से इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। योगी के नारे बटेंगे तो कटेंगे के जवाब में अखिलेश यादव ने नारा दिया जुड़ेंगे तो जीतेंगे। उन्होंने कहा पीडीए की ताकत से घबराकर बीजेपी ने बटेंगे तो कटेंगे नारा दिया  है। इसके लिए सबसे उपयुक्त कौन हो सकता था। इसके लिए हमारे मुख्यमंत्री जी को आगे लाया गया है। इस बार पीडीए लोगों को जोड़ेगा। इन सब के बीच बीएसपी ने नारा दिया बीएसपी से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे, सुरक्षित रहेंगे। पार्टी की ओर से कहा गया है, उपचुनाव में बीएसपी के दमदारी से मैदान में उतरने से बीजेपी और एसपी की नींद उड़ी हुई है और अपनी कमियों पर से जनता का ध्यान बांटने के लिए बीजेपी द्वारा बटेंगे तो कटेंगे और एसपी एंड कंपनी के लोगों द्वारा जुड़ेंगे तो जीतेंगे आदि नारों को प्रचारित किया जा रहा है।

बीएसपी पहली बार उपचुनाव में ताल ठोक रही है। पार्टी ने सभी 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। पिछले कुछ चुनावों में पार्टी का ग्राफ गिरा है। ऐसे में बीएसपी के लिए उपचुनाव अहम माना जा रहा है। मायावती पिछले 20 सालों में चुनाव लड़ने और जीतने के सभी फॉर्मूले को आजमा चुकी हैं। अब नए प्रयोग के तौर पर उन्होंने उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। उनके लिए ये करो या मरो वाली स्थिति है। इस बार वो ये नहीं देखेंगी कि एसपी का नुकसान हो रहा या फिर बीजेपी का, वो चाहेंगी कि उनका वोट प्रतिशत एक निश्चित लेवल तक बना रहे, जिससे पार्टी की साख बनी रहे। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने 43 सीटों पर जीत हासिल की है। समाजवादी पार्टी ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीती हैं। वहीं बीजेपी ने 33, आरएलडी ने दो और अपना दल (एस) को एक सीट मिली है।

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों पर नजर डालें तो बीएसपी सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब रही थी, जबकि 2017 में पार्टी को 19 सीटें मिली थी। 2017 के मुकाबले वोट शेयर में 9 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी। हालांकि उपचुनाव में बीएसपी के सीट जीतने की उम्मीद तो नहीं है, लेकिन देखना होगा कि पार्टी का वोट शेयर कितना रहता है। अगर कुछ सीटों पर बीएसपी अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह पार्टी के मुकाबले में बने रहने का संकेत होगा। 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। उपचुनाव में बीएसपी ने दो मुस्लिम, दो ब्राह्मण, एक दलित और चार ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के दम पर वोटर्स को साधने की कोशिश में है। अब देखना होगा कि बीएसपी इसमें कितना सफल रहती है।योगी ने पूरे चुनाव अभियान की कमान अपने कंधे पर संभाली है और इस उपचुनाव में हर कीमत पर जीत हासिल करने की तैयारी की है। विपक्ष अभी से हार के डर से प्रदेश सरकार और मशीनरी पर गंभीर आरोप लगा रहा है हालांकि चुनाव आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। सभी पार्टियां पूरे दमखम से चुनावी मैदान में हैं अब देखना यही है कि कौन बाजी मारने में कामयाब रहता है।