राखीगढ़ी में 5000 वर्ष पूर्व बसे शहर का एसएसआई को मिला साक्ष्य

नई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)। हरियाणा का राखीगढ़ी हड़प्पाकालीन सभ्यता को लेकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इन दिनों खुदाई कर रहा है जो इस महीने के अंत तक पूरी हो जाएगी। अब तक खुदाई व अध्ययन के बाद पता चल सका है कि यहां एक आधुनिक शहर रहा, क्योंकि मकानों के अवशेष मिले हैं साथ ही शहर को काफी प्लानिंग और तकनीक से भी बसाया गया था।
 
नई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)। हरियाणा का राखीगढ़ी हड़प्पाकालीन सभ्यता को लेकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इन दिनों खुदाई कर रहा है जो इस महीने के अंत तक पूरी हो जाएगी। अब तक खुदाई व अध्ययन के बाद पता चल सका है कि यहां एक आधुनिक शहर रहा, क्योंकि मकानों के अवशेष मिले हैं साथ ही शहर को काफी प्लानिंग और तकनीक से भी बसाया गया था।

अधिकारियों ने खुदाई के दौरान हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेषों को बारीकी से देखा और उनपर अध्ययन किया, इतने वर्ष पूर्व भी हड़प्पन टाउन प्लानिंग के बड़े साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। जिनमें गलियां, पक्की दीवारें, बहुमंजिला मकान आदि शामिल हैं। वहीं 5000 साल पुरानी आभूषण बनाने की फैक्ट्री भी मिली है, इससे यह पता चलता है कि यहां से व्यापार भी किया जाता रहा है।

अधिकारियों के मुताबिक, उस वक्त एक बेहतर तकनीक इस्तेमाल कर शहर बसाए गए थे। जिन तकनीको का इस्तेमाल कर आज हम बड़े शहरों को बसाने के लिए कर रहे हैं -- सीधी गालियां मिलना, पानी निकासी के लिए नाली होना, गलियों के किनारों पर पॉट रखे होना जिनका इस्तेमाल कूड़ा कचरा डालने के लिए किया जाता रहा, आदि शामिल हैं। वहीं खुदाई के दौरान दो महिलाओं के कंकाल भी मिले हैं, कंकालों के साथ उनके द्वारा इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को भी दफनाया गया है, हाथों में कंगन, गहने आदि वस्तु भी मिली है।

राखीगढ़ी, हड़प्पा संस्कृति या सिंधु सभ्यता के सबसे बड़ा पुरातात्विक स्थल है जो दो आधुनिक गांव राखी शाहपुर और राखी गढ़ी खास के अंतर्गत स्थित है. इसे हड़प्पा संस्कृति के प्रमुख महानगरीय केंद्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

साल 1969 में प्रोफेसर सूरजभान द्वारा किए गए अन्वेषण से यह पता चला कि राखीगढ़ी के पुरातात्विक अवशेष और बस्तियां हड़प्पा संस्कृति की प्रकृति की है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं डेक्कन कॉलेज पुणे द्वारा किए गए बाद के अन्वेषण और खुदाई में पता चला यहां एक संकुल बस्ती थी और 500 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र में फैली हुई थी।

इनमें 11 अलग-अलग टीले शामिल है जिन्हें आरजीआर-1 से लेकर आरजीआर-11 नाम दिया गया है। वर्ष 1997 में 98 से 1999 के दौरान डॉ अमरेंद्र नाथ के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए कार्यों से विभिन्न पदों से प्राप्त रेडियो कार्बन तिथियों के आधार पर यहां ई पूर्व पांचवी सहस्राब्दी से ई पूर्व तीसरी सहस्राब्दी तक के समकालिक प्रारंभिक पूर्व चरण से परिपक्व हड़प्पा काल तक के सतत सन्निवेश के विभिन्न बसावटों का पता चल सका है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, दिल्ली के संयुक्त महानिदेशक डॉ. संजय मंजुल ने बताया कि, आरजीआर 1 की खुदाई में ढाई मीटर चौंड़ी गली और दीवार मिली है। यह सब हड़प्पन टाउन प्लानिंग और इंजीनियरिंग को दशार्ता है। दीवार की तरफ हाउस कॉम्प्लेक्स भी मिले हैं। इनमें हड़प्पन लोग कैसे रहते थे इसके साक्ष्य मिले हैं। घरों में इस्तेमाल होने वाला चूल्हा भी मिला है और साथ ही एंटीक्यूटि भी मिली है।

आरजीआर 1 और आरजीआर 3 में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण पुरावशेषों मे हाथी की उभरी हुयी नक्काशी हड़प्पा लिपि की स्टेटाइट सील, काछी मिट्टी की सील की छाप शामिल हैं। टेराकोटा और स्टेटाइट से बने कुत्ते, बैल आदि पशु की मूर्तियां, बड़ी संख्या में स्टेटाइट के मनके, अर्ध-कीमती पत्थरों के मनके, तांबे की वस्तुएं आदि उत्खनन से प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण पुरावशेष हैं।

दरअसल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और हरियाणा सरकार के बीच एक समझौता ज्ञापन की प्रक्रिया चल रही है, जिसके अनुसार राखीगढ़ी की प्राचीन वस्तुओं को संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा जो कि हरियाणा सरकार के अधीन है। इस उत्खनन को एएसआई फिर सितंबर 2022 तक शुरू कर देगा। वहीं इसके बाद एसएसआई जल्द इन टीलों को पर्यटकों के लिए खोल देगा ताकि वह स्थल पर पहुंच उस वक्त की चीजों को सामने से महसूस और पूरी जानकारी प्राप्त कर सकें।

राखीगढ़ी में जल्द ही पर्यटकों की लंबी कतारें लगना शुरू हो जाएंगी, क्योंकि अधिकारी चाहते हैं कि जो भी वस्तु म्यूजियम में रखी जाए और उन्हें पर्यटक जब देखने पहुंचे तो वह उन वस्तुओं को तुरन्त उस स्थल पर जाकर देख सके जहां से वह बरामद हुई है।

भारत सरकार द्वारा 2020-21 के केंद्रीय बजट घोषणा के तहत एक परियोजना में इस स्थल को पांच आइकॉनिक स्थलों में से एक के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से 24 फरवरी 2022 को उत्खनन शुरू हुआ। इसका उद्देश्य राखीगढ़ी के पुरातात्विक स्थल पर भ्रमण करने वाले आगंतुकों को सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ संरचनात्मक अवशेषों को उजागर कर और भविष्य में देखने के लिए संरक्षित कर लोगों के लिए सुलभ बनाया जाना है।

इसके अलावा इसका उद्देश्य हड़प्पीय राखीगढ़ी की बसावट को समझना और सात टीले के व्यक्तित्व और आपसी-संबंध की पहचान करना भी है। राखीगढ़ी में सात टीले हैं - आरजीआर 1, आरजीआर 2, आरजीआर 3, आरजीआर 4, आरजीआर 5, आरजीआर 6 और आरजीआर 7, जो हड़प्पा सभ्यता के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

इस स्थल की खुदाई सबसे पहले 1998-2001 में पुरातत्व संस्थान, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई थी। बाद में, डेक्कन कॉलेज, पुणे ने 2013 से 2016 में यहां कार्य किया गया। अधिकारियों के मुताबिक, आरजीआर 1 में अन्य संरचनान्त्मक गतिविधियों के अलावा पुरावशेषों में, अगेट और कारेलियन जैसे अर्ध-कीमती पत्थरों की बड़ी मात्रा में अपशिष्ट मिले हैं जो पत्थरों को तराशकर मनकों के निर्माण के कारण बचे होंगे।

वहीं आरजीआर 1 से दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित आरजीआर 3 की खुदाई में पकी हुई ईंटों की 11 मीटर लंबाई, 58 सेमी चौड़ाई और 18 ईंटों की परतों की दीवार मिली है, जो पूर्व से पश्चिम दिशा में बनी है। इस दीवार से सटी पकी ईंटों से बनी एक नाली भी मिली है।

साथ ही आरजीआर 7, जो कि आरजीआर 1 के 500 मीटर उत्तर में स्थित है, वहां से पिछली खुदाई में लगभग 60 कंकाल मिले थे। इस उत्खनन में दो कंकाल की खुदाई की गई है। दोनों कंकाल महिलाओं की हैं, जिन्हें मिट्टी के बर्तनों और गहनों जैसे जैस्पर और एगेट के मनके और शेल चूड़ियों के साथ दफनाया गया है। एक कंकाल के साथ एक छोटा तांबे का प्रतीकात्मक दर्पण भी मिला है। वर्तमान में इस टीले पर पहले की आवासीय संरचनाओं के अवशेष भी उजागर हो रहे हैं।

--आईएएनएस

एमएसके/एसकेपी