Basaveshwar Jayanti 2024 : कौन हैं भगवान बसवेश्वर, जानें कब है इनकी जयंती
बसवेश्वर जयंती कब है
Basaveshwar Jayanti 2024 Date: बसवेश्वर जयंती एक हिंदू त्योहार है जो कर्नाटक और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में लिंगायत समाज द्वारा भगवान बसवेश्वर की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान बसवेश्वर की जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष यह 10 मई 2024 को मनाई जाएगी।
कौन हैं संत बसवेश्वर
Basaveshwar Bhagwan Kaun Hain : संत बसवेश्वर जी लिंगायतवाद के संस्थापक थे. इनका का जन्म12वीं शताब्दी में बागेवाड़ी (कर्नाटक) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम मदारस और माता का नाम मदालम्बे था. उन्होंने अपना बचपन कुदालसंगामा में बिताया और गंगाम्बिके से शादी की. उनकी पत्नी गंगाम्बिके बिज्जला के प्रधानमंत्री की बेटी थीं. बिज्जल एक कलचुरी राजा थे. संत बसवेश्वर को बासवन्ना और बसव नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने उपनयन संस्कार होने के बाद 8 वर्ष की आयु में जनेऊ के धागे को तोड़ दिया। वे जाति से ब्राह्मण होने के बाद भी ब्राह्मणों की वर्चस्ववादी व्यवस्था के विरोधी थे.
वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था पर विश्वास करते थे. उन्होंने कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए संप्रदाय की स्थापना की, जिसका नाम लिंगायत था. बसवेश्वर भगवान को हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था और अन्य कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए जाना जाता है. उन्हें विश्वगुरु, भक्ति भण्डारी और बसव के नाम से भी जाना जाता है. बसव जी ने लिंग, जाति, सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी लोगों को बराबर अवसर देने की बात कही थी. वह निराकार भगवान की अवधारणा के समर्थक थे. बता दें कि लिंगायत पहले हिंदू वैदिक धर्म का ही पालन करते थे.
कौन हैं लिंगायत
Who are Lingayats: लिंगायत समाज कर्नाटक की उच्च जाति है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. इसके अलावा भी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में भी इनकी आबादी है. ये संप्रदाय न तो वेदों में विश्वास रखते और न ही मूर्ति पूजा में. ये पुनर्जन्म को नहीं मानते हैं. इनका मानना है कि एक ही जीवन है और कोई भी अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नरक बना सकता है.
लिंगायत समाज किसके उपासक हैं
Lingayats Kiski Pooja Karte Hain: लिंगायत समाज के लोग मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते। ये सिर्फ भगवान शिव की उपासना करते हैं. भगवान शिव की इष्टलिंग के आकार को पूजते हैं. इष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति है. लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं. निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में इष्टलिंग को पूजते हैं.
बसवेश्वर जयंती समारोह
इस दिन लिंगायत समाज भगवान बसवेश्वर के मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को याद करने के लिए व्याख्यान आयोजित करते हैं. कर्नाटक में इस राजकीय अवकाश घोषित रहता है. बहुत से लोग कुडलसंगामा जाते हैं. यहां एक हफ्ते तक कई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.