Ayodhya 22 January/अयोध्या 22 जनवरी
पुण्यभूमि अयोध्या का इतिहास क्या
प्रभु श्रीराम सिर्फ आराध्य नहीं है,वे ईश्वर मात्र नहीं हैं,वे इस देश के प्राण हैं,विचारधारा हैं,आदर्श हैं,अनुकरणीय भी हैं।ये और बात है कि उनका अनुकरण करने का सामर्थ्य किसी भी इंसान में नहीं है।इस किताब में संजीव सर ने वर्तमान में हो रही घटनाओं के चित्रण,उनकी पृष्ठभूमि और तथ्यों को तो पठनीय तरीके से प्रस्तुत किया ही है,साथ ही साथ पौराणिक कथाएं क्या हैं,उस पुण्यभूमि अयोध्या का इतिहास क्या है?उसके साथ कितनी कथाएं सम्बद्ध हैं इसे भी बहुत प्रवाह के साथ एक सूत्र में बांधा है।यदि सिर्फ इतिहास होता तो शायद बोझिल हो जाता या सिर्फ वर्तमान की घटनाएं होती |
तो वो शायद आँखों देखी जैसा रिपोर्टर टाइप वर्णन हो जाता। चूँकि वे बेहतरीन पत्रकार होने के साथ साथ अच्छे लेखक भी हैं,उन्हें क़िस्सागोई भी आती है और यथार्थ का चित्रण भी,ज़ाहिर है कि ऐसे में वो संदर्भ भी प्रस्तुत करते हैं तो प्रवाह के साथ।यदि आपने अब तक इस किताब को नहीं पढ़ा है तो पढ़िए...इसलिए भी पढ़िए कि आपका तादाम्य ये प्रभु से भी स्थापित करेगी और आपको इस सदी के सबसे बड़े धार्मिक घटनाक्रम का साक्षी भी बनाएगी।एक जगह उन्होंने हनुमान गढ़ी में सांप्रदायिक विवाद जो नवाब वाज़िद अली शाह के वक्त हुआ था उसका जिक्र करते हुए इस शेर को लिखा है...
हम इश्क़ के बंदे हैं,मज़हब से नहीं वाकिफ़
गर काबा हुआ तो क्या बुतखाना हुआ तो क्या
प्रभु के वन गमन के क़िस्से,उनका इलाकाई महत्व,उस दौर की घटनाओं को पढ़कर आपको बहुत रस आएगा।किताब के हर चैप्टर की शुरुआत किसी न किसी चौपाई या छंद से हुई है, जो उस प्रसंग के साथ आपको जोड़ती है।संजीव सर मेरे सीनियर रहे हैं,मेरे गुरू भी हैं,पत्रकारिता विश्वविद्यालय में उन्होंने हमें पढ़ाया है।तब जैसे थे आज भी वैसे ही हैं योग्य,कर्मठ और मिलनसार। मुझे उनसे बेहद आत्मीयता है लेकिन मैं किसी भी किताब को पढ़ते वक्त लेखक से अपने व्यक्तिगत परिचय या रिश्ते को किनारे ही रखता हूँ।पढ़ते वक्त मैं केवल पाठक होता हूँ और बिना शक़ ये कहूँगा कि सर, बतौर पाठक मुझे आपका लिखा बहुत पसंद आया।बहुत बधाई आपको।