Vrat teej tyohar in September 2021हरितालिका तीज ,गणेश चतुर्थी सहित कई त्योहार सितंबर में ,खरीददारी के लिए है शुभ 

 

 हरितालिका तीज क्या है 

गणेश चतुर्थी पर कैसे करें गणेश जी की पूजा 

  •  Vrat teej tyohar in September 2021 हरितालिक तीज ,गणेश चतुर्थी
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सितंबर में पड़ने वाले तीज और त्योहार सितंबर का महीना त्यौहार और तीज से भरा हुआ है जिसमें 9 सितंबर को हरितालिका तीज मनाई जाएगी जबकि 10 सितंबर को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी जहां गणपति की पूजा की जाएगी जबकि 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी है इस तरीके से अगर देखा जाए तो सितंबर में 9 तारीख से 19 सितंबर तक लगातार सात पर्व मनाए जाने हैं त्योहारों के साथ ही सितंबर का महीना खरीदारी के लिए भी बहुत ही शुभ बताया गया है जिसमें त्योहारों के 10 दिन और 7 एवं 8 सितंबर को खरीदारी के बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं इस बार हरितालिका तीज पर बहुत ही शुभ योग है इसमें हस्त नक्षत्र के साथ रवि योगी है हैप्पी गणेश चतुर्थी पर चित्रा नक्षत्र और शुक्रवार के सहयोग से ब्रह्म योग बनेगा इस दिन ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि 10 सितंबर को गणेश चतुर्थी के दिन अबूझ मुहूर्त भी होगा ज्योतिष के जानकारों का यह भी कहना है कि गणेश चतुर्थी के बाद कुछ ऐसे सहयोग बन रहे हैं जो व्यापारियों के लिए बहुत ही अच्छे हैं और गणेश चतुर्थी के बाद से कारोबार में तेजी आने के भी संकेत ग्रह नक्षत्रों के अनुसार मिल रहे हैं.

ब्रम्ह योग क्या है ?

ज्योतिषियों ने ब्रह्म योग को बताया है कि ब्रह्म योग में कोई भी कार्य किया जाता है जिसमें सम्मान की प्राप्ति होती है बहुत ही शांति दायक समय होता है ब्रह्म योग और उस समय जो भी पूजा पाठ किए जाते हैं उसका लाभ जल्द से जल्द मिलता है कई बार ऐसा भी समय आता है कि कुछ अपने ही लोग नाराज हो जाते हैं और धर्म युग का समय ऐसा समय है कि अगर उनके लिए कोई पूजा पाठ करनी है और ऐसी मनौती करनी है कि लोगों को लाभ मिले और जो अपने परिजन रूठे हुए और फिर से प्रेम में व्यवहार में आपस में मिलने के लिए लगे इसलिए जब नवयुग की बहुत महत्ता ज्योतिष के जानकारों ने बताया है।

अबूझ मुहूर्त क्या है ?

ज्योतिषियों द्वारा अबूझ मुहूर्त को ऐसा समय बताया गया है कि इस समय पूजा पाठ के लिए कोई भी अनुष्ठान करने के लिए किसी भी मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नहीं होती है और पूरा समय जी शुभ होता है और ऐसे ही समय काल को अबूझ मुहूर्त  बताया गया है।
इसलिए गणेश चतुर्थी जो 10 सितंबर 2021 में पढ़ रहा है उस दिन अबूझ मुहूर्त और ब्रह्म मुहूर्त ली है इस दिन पूजा पाठ करने का विशेष फल जो भी कहते हैं वह कटेंगे और आपको लाभ मिलेगा।


 किसी भी पूजा से पहले गणेश जी की पूजा क्यों कि जाती है 

गणेश जी की पूजा कैसे करें जानिए पूजा विधि 

1किसी भी देव की आराधना के आरम्भ में किसी भी सत्कर्म व अनुष्ठान में, उत्तम-से-उत्तम और साधारण-से-साधारण कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरु नहीं किया जाता है। यहाँ तक की किसी भी कार्यारम्भ के लिए ‘श्री गणेश’ एक मुहावरा बन गया है। शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है।

2  गणेश जी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है। गणेश जी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति जी के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

3 शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम हिन्दू धर्म के पाँच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल है। जिससे गणपति जी की महत्ता साफ़ पता चलती है।

4 ‘गण’ का अर्थ है - वर्ग, समूह, समुदाय और ‘ईश’ का अर्थ है - स्वामी। शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें ‘गणेश’ कहते हैं।

5शिवजी को गणेश जी का पिता, पार्वती जी को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएँ) को पत्नियाँ, क्षेम व लाभ को गणेश जी का पुत्र माना गया है।

6श्री गणेश जी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं; जो इस प्रकार हैं: 1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।

7  गणेश जी ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था। भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर चुके तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई। ब्रह्माजी ने उनसे कहा था कि यह कार्य गणेश जी से करवाया जाए।

8  पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेश जी का स्वरुप माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

गणेश दूर्वा चतुर्थी व्रत विधि

सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. उसके उपरान्त एक स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. पूजा के दौरान भगवान गणेश की धूप-दीप आदि से आराधना करनी चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. फल,फूल, अक्षत, रौली,मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के पश्चात भगवान गणेश को घी से बनी वस्तुओं या लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए।

इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए. पूजा करते समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करने के बाद उसी समय गणेश जी के मंत्र 

 गणेश चतुर्थी पर कैसे करें गणेश जी की पूजा ,पूजा विधि 
"उँ गणेशाय नमः 

का 1008 बार जाप करना चाहिए. इसी के साथ गणेश गायत्री मंत्र -

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

का जाप करते हुए पूजन करना चाहिए। संध्या समय में कथा सुनने के पश्चात गणेश जी की आरती करनी चाहिए. इससे आपको मानसिक शान्ति मिलने के साथ आपके घर-परिवार के सुख व समृद्धि में वृद्धि होगी.

गणेश तिल चतुर्थी व्रत दान
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इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का तिल चतुर्थी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को तिल तथा गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लड्डुओं के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है।

गणेश जी की आरती

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।


संकटनाशन गणेश स्तोत्र मंत्र से करें गणपति की आराधना 

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।

भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।

तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥

लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।

संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥