Karva Chauth Special : करवा चौथ का महत्व, कथा और पूजन, जानें सबकुछ
Karva Chauth Special : कुछ ही दिनों में करवा चौथ आने वाला है, जिसको लेकर महिलाएं बहुत जोरो शोरों से तैयारी करने में लगी हुई हैं. क्यूंकि करवा चौथ उत्तर भारत के खास त्यौहारों में से एक माना जाता है। जो खासतौर से विवाहित महिलाओं के लिए है। आपको बता दें की ये हिन्दू कैलेण्डर के कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। और महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को देखकर ही व्रत खोला जाता है। वैसे ये व्रत खासतौर से उत्तर भारत जैसे-पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार में मनाया जाता है। और आप सभी के घर में भी जरूर कोई न कोई करवा चौथ का व्रत जरूर रखता होगा, लेकिन इस व्रत की सही विधि, इसका इतिहास और इसका महत्त्व शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं.
करवा चौथ की असली कहानी क्या है?
करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी'। आपको बता दें की इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। और सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। कहते हैं की करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक माना गया है।
वहीँ अगर बात करें इसकी कथा या इसके इतिहास की, तो करवा चौथ की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन ऐसी मान्यता है कि ये परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि देवताओं और दानवों के युद्ध के दौरान देवों को विजयी बनाने के लिए ब्रह्मा जी ने देवों की पत्नियों को व्रत रहने का सुझााव दिया था। जिसे स्वीकार करते हुए सभी देवताओं की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार, निर्जल व्रत किया था। और नतीजा ये रहा कि युद्ध में सभी देव विजयी हुए. उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी और आकाश में चंद्रमा निकल आया था। मान्यता है कि तभी से करवा चौथ का व्रत शुरू हुआ।
माँ पारवती ने भी किया था व्रत
साथ ही ये भी कहा जाता है कि शिव जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था। और महाभारत काल में भी इस व्रत का जिक्र है, जिसमे गांधारी ने धृतराष्ट्र और कुंती ने पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था। इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान बताया जाता है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है।
क्या है करवा चौथ पूजन की विधि
वहीँ अगर इसके पूजन और पूजन विधि की बात करें। तो करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। अगर किसी धातु का उपलब्ध नहीं है तो मिट्टी के करवे से भी पूजन करने का विधान है। वहीँ व्रत रखने वाली स्त्रियां स्नान और संध्या आदि करके, आचमन के बाद अपने पति और बच्चों के लिए व्रत का संकल्प लेती हैं. आपको बता दें की यह व्रत निराहार ही नहीं, बल्कि निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है।
वहीँ पूजा के समय चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की विधिवत पूजा करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रूपये रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए।इसके अलावा करवा चौथ के दिन सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य दें, इसके बाद आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। उसके बाद पानी पीकर अपना व्रत तोड़ें।