Kundli Analysis कुंडली अनुसार किस ज्योतिर्लिंग की करे पूजा

 

 हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम और द्वारका जी, इन चार धाम की तीर्थ यात्रा के बाद भगवान शिव के धाम द्वादश ज्योतिर्लिंग को ही महत्व देते हैं। आप सभी जानते है हर साल महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को आता है, कुछ लोग चतुर्दशी के दिन भी इस व्रत को करते हैं।

देवों के देव और कालों के काल महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, नर-नारी, बालक–वृद्ध हर वर्ग के लोग कर सकते है।  ज्योतिषी अनुसार जानते है आपको कौन से ज्योतिर्लिंग पर अपने जीवन काल में कम से कम एक बार अवश्य जाना चाहिए। 

 

ज्योतिषी रजत सिंगल (Rajat Singal) अनुसार किस ज्योतिर्लिंग की पूजा आपके लिए श्रेष्ठ  है?

द्वादश ज्योतिर्लिंग में से कौन से ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना की जाये और यथासंभव हो सके तो अपने जीवन काल में एक बार उस ज्योतिर्लिंग के दर्शन जरूर करने चाहिए। यदि यह संभव न हो तो किसी भी शिवालय में पूजा अर्चना करते समय उस ज्योतिर्लिंग की मन में कल्पना करके पूजा पाठ करें। किस जातक/जातिका को कौन से ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने चाहिए इसके लिये भारतीय वैदिक ज्योतिष हमारी सहायता करता है। इसके लिए बहुत आसान तरीका है -

 

 

1. सबसे पहले देखें की लग्न से लग्नेश कितने भाव आगे स्थित है। लग्नेश से उतने ही भाव आगे गिनें यही पद लग्न अथवा आरूढ़ लग्न है। उदाहरण के तौर पर अगर जातक का मकर लग्न है और लग्नेश शनि एकादश भाव में स्तिथ है, तो आरूढ़ लग्न जानने के लिए शनि से एकादश भाव आगे चलेंगे अर्थात कथित उदाहरण में कन्या लग्न आरूढ़ लग्न होगा।

2. अब इस आरूढ़ लग्न से त्रिकोण की तीनों राशियों को लिख लें। कथित उदाहरण में कन्या से त्रिकोण की तीनो राशि लिख ले. 

3. अपनी जन्मकुंडली को देखे कि इसमें चन्द्रमा से केन्द्र में कौन सी राशियां है, चंद्र राशि सहित इन चारो राशियों को लिख लें।

4. आरुढ़ लग्न से त्रिकोण की तीनों राशियां, चंद्र राशि और चंद्र राशि से त्रिकोण की तीनो राशियां इन सात राशियों में जो राशि दो बार आये अर्थात् समान होगी उसी राशि का ज्योतिर्लिंग आपकी जन्म तिथि अनुसार आपके लिए सर्वोच्च हैं ।

  

 

 

 

ज्योतिषि रजत सिंगल (Rajat Singal) अनुसार शिव-पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें

1. भगवान् शंकर के पूजन के समय करताल नहीं बजायें। 

2. शिवलिंग पर नारियल पानी चढ़ाएं। 

3. दो शिवलिंग, दो शंख, दो चक्रशिला (गोमती चक्र), दो गणेश मूर्ति, दो सूर्य प्रतिमा और तीन दुर्गा जी की प्रतिमाओं का पूजन एक बार में नहीं करना चाहिए। इससे दुःख की प्राप्ति होती है ।

4. शिव की परिक्रमा में सम्पूर्ण परिक्रमा नहीं की जाती। जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है, उस भाग का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। यहाँ से प्रदक्षिणा उल्टी की जाती है।

5. शिवजी को  तुलसीपत्र, हल्दी, सिंदूर, कुटज, नागकेशर, बन्धूक (दुपहरिका), मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूहि, मौलीसेरी, रक्तजवा (लाल उठडल), मल्लिका का (मोतिका), केतकी (केवड़ा) और खंडित अक्षत न चढ़ाएं।

6. प्रसाधन की चीजों को प्रयोग नहीं किया जाता है।

इस बार शिवरात्रि पर 300 वर्ष बाद शुभ सयोंग बन रहें है, ज्योतषी रजत सिंगल अनुसार यह शिवरात्रि बहुत विशेष हैं क्योंकि इस बार महाशिवरात्रि पर 4 शुभ संयोग बनने वाले हैं। महाशिवरात्रि के दिन श्रवण नक्षत्र और शिव योग के साथ मकर राशि का चंद्रमा होगा। इसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग और शिव योग भी बनेगा। प्रातः काल स्नान ध्यान से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखना चाहिये। पत्र-पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ गौरी शंकर की और नंदी की स्वर्ण अथवा चांदी की मूर्ति रखनी चाहिये । यदि इस मूर्ति का नियोजन न हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिये। दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेलपत्र आदि का प्रसाद शिव जी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए।