हिंदू पंचांग के अनुसार  तिथियों का वर्णन:- डॉ वैभव अवस्थी ज्योतिष परामर्शदाता

 
 

हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष का एक संवत्सर होता है और एक संवत्सर में 12 माह से होते हैं। जिनके नाम क्रमशा: चैत्र वैशाख ज्येष्ठ आषाढ़ श्रावण भाद्रपद अश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष पौष माघ और फाल्गुन है। एक मास को दो पक्षों में विभाजित किया गया है जिन्हें  क्रमशः शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहते हैं। एक पक्ष में 15 तिथियां होती हैं।
15 तिथियों के नाम क्रमश: प्रतिपदा द्वितीय तृतीय चतुर्थी पंचमी षष्टि सप्तमी अष्टमी नवमी दशमी एकादशी द्वादशी त्रयोदशी चतुर्दशी शुक्ल पक्ष में पूर्णमासी तथा कृष्ण पक्ष में अमावस्या होते है।
इन 15 तिथियों के स्वामी अलग-अलग होते हैं। प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि द्वितीय तिथि के स्वामी ब्रह्मा तृतीया तिथि के स्वामी गौरी चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश पंचमी तिथि के स्वामी शेषनाग षष्ठी तिथि के स्वामी कार्तिकेय सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य अष्टमी तिथि के स्वामी शिव नवमी तिथि के स्वामी दुर्गा दशमी तिथि के स्वामी काल एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा द्वादशी तिथि के स्वामी विष्णु त्रयोदशी तिथि के स्वामी काम चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव पूर्णमासी तिथि के स्वामी चंद्रमा और अमावस्या तिथि के स्वामी पितर होते हैं। जिस तिथि के जो स्वामी होते हैं उस दिन उनकी पूजा करने पर विशेष फल प्राप्त होता है।
इन तिथियों के फल अलग-अलग होते हैं। प्रतिपदा तिथि सिद्धि देने वाली होती है। द्वितीय तिथि कार्य साधन करने वाली है। तृतीय सिद्धि तिथि आरोग्य देने वाली है। चतुर्थी तिथि हानिकारक है। पंचमी तिथि शुभ देने वाली है। षष्ठी तिथि अशुभ है। सप्तमी तिथि शुभ है। अष्टमी तिथि व्याधि नाश करती है। नवमी तिथि नाश करती है। दशमी तिथि द्रव्य देने वाली है। एकादशी तिथि शुभ है। द्वादशी त्रयोदशी तिथि सब प्रकार की सिद्धि देने वाली हैं। चतुर्दशी तिथि उग्र होती है। पूर्णमासी तिथि पुष्टि देने वाली है तथा अमावस्या तिथि अशुभ होती है।
कुछ तिथियों को पक्षरंध्र तिथियां कहते हैं। इन तिथियों में जो कुछ कर्म किया जाता है उसका नाश होता है। यह तिथियां चतुर्दशी चतुर्थी अष्टमी नवमी षष्ठी तथा द्वादशी तिथियां हैं। इन तिथियों में विवाह करने से स्त्री विधवा हो जाती है। उपनयन करने से प्राणी संस्कार हीन हो जाता है। अन्नप्राशन करने से मरण होता है। गृह आरंभ करने से घर में आग लग जाती है।
कुछ तिथियां मासशूनय तिथियां होती हैं इनमें मंगल कार्य करने से वर्ष तथा धन का नाश होता है। भाद्रपद में प्रतिपदा द्वितीया श्रावण मास में तृतीय द्वितीया वैशाख मास में द्वादशी पौष मास में चतुर्थी पंचमी एकादशी मार्गशीर्ष मास में सप्तमी अष्टमी चैत्र मास में नवमी अष्टमी तिथियां इसके अंतर्गत आती हैं। मास के दोनों पक्षों की तिथियां इसके अंतर्गत आती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि माघ मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि भी इसके अंतर्गत आती हैं।
अतः किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले तिथियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेना अच्छा माना जाता है।
डॉ वैभव अवस्थी 
ज्योतिष परामर्शदाता 
वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर एवं उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान से सम्मानित।