लोहडी का त्यौहार मनाया गया

 
 

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। लोहडी के त्यौहार का विशेष आयोजन श्री गुरू सिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु नानक देव जी नाका हिण्डोला, लखनऊ में किया गया।

  इस अवसर पर लखनऊ गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा जी ने उपस्थित संगतो एवं समस्त नगरवासियों को लोहडी के त्यौहार की बधाई देते हुए कहा कि लोहडी एक समाजिक पर्व है यह पंजाबी समाज के लोग बेटे की शादी की पहली लोहड़ी या बच्चे के जन्म की पहली लोहडी बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ मनाते है। लोहड़ी पंजाब की लोक संस्कृति का महत्तवपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार को पूरे भारत में मनाया जाता है पर पंजाब में इस त्यौहार को बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। पूरे वर्ष भर इस त्यौहार का इन्तजार रहता है, पर विशेष रूप से घर में नवविवाहिता एवं नवजात शिशु के आते ही लोहड़ी के त्यौहार की प्रतिक्षा की जाती है। ये दोनों लोहड़ी के शगुन का केन्द्र होते है।

गुरूद्वारा भवन के समक्ष अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा जी द्वारा लकड़ीयों  में अग्नि देकर इस कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। यह त्यौहार मकर संक्रान्ति की पूर्व सन्धया पर मनाया जाता है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) के शब्दो से बना है जो समय के साथ बदलकर लोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस पर्व पर लकड़ीयों को इकट्ठा कर आग जलाई जाती है और अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख शान्ति से व्यतीत होने की कामना करते हैं और उसमें रेवड़ी, मूँगफली, खील, मक्की आदि के दानों की आहूति देते हैं और नाचते गाते हैं जिस घर में नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है वह त्यौहार को विशेष तौर पर मनाते हैं।

स्टेज सेक्रेट्ररी सतपाल सिंह मीत ने कहा कि लोहड़ी की रात बहुत ठंड़ी और लम्बी होती है। लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा हो जाता है। गाथा है कि बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का डाकू था पर वह दिल का बड़ा नेक था वह अमीरों को लूटकर गरीबोें मे बाँट देता था। वह अमीरों द्वारा जबरदस्ती से गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वा कर उन लड़कियों की शादी करवा देता था और दहेज भी अपने पास से देता था, वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से प्रसिद्ध हो गया। तभी से लोहड़ी की रात आग जला कर और रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर नाचते गाते है और उसका गुणगान करते है पंजाब के प्रसिद्ध लोक गीत- सुंदर मुंदरिए-हो,   तेरा कौन विचारा-हो,  दुल्ला भट्ठी वाला-हो,  दुल्ले ने धी ब्याही-हो इस तरह के लोकगीतो को गाकर इस पर्व को मनाते है। 

कार्यक्रम के उपरान्त मक्के के दाने, रेवड़ी, चिड़वड़े, तिल के लडडू का प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया गया।