जातीय जनगणना का मायाजाल,राष्ट्र को कमजोर का सियासी षड्यंत्र
कि इससे उनको ज्यादा अधिकार मिलेंगे वह आरक्षण की सीमा बढ़ाएंगे और जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी। लेकिन वह यह कैसे करेंगे यह नहीं बताते। हम पहले यह विचार करें कि आरक्षण प्रतिशत बढ़ने से आरक्षित वर्ग के लोगों को कितना फायदा होगा वर्तमान में प्रति 100 सीटों पर 27 बैकवर्ड 15 शेड्यूल कास्ट 7:30 शेड्यूल ट्राइब लिए जाते हैं बाकी 50 सीटों पर जो की ओपन टू ऑल होती हैं (हालांकि यह लोग इन सीटों के बारे में यह दुष्प्रचार करते हैं कि यह सिर्फ सामान्य वर्ग के लोगों के लिए हैं जबकि इन सीटों पर सामान्य के अलावा मुस्लिम क्रिश्चियन सिख बैकवर्ड शेड्यूल कास्ट शेड्यूल्ड ट्राइब कोई भी आ सकता है यदि वह मेरिट में है) अब जातीय जनगणना के बाद आरक्षण में बदलाव होगा तो क्या मुस्लिम व क्रिश्चियन अपनी संख्या के आधार पर आरक्षण नहीं मांगेंगे और वह अखिलेश यादव जो मुस्लिम के दबाव में बांग्लादेश में हिंदू नरसंहार पर कुछ नहीं बोले फैजाबाद में एक रेपिस्ट की आलोचना न कर पाए वह उनकी मांग कैसे ठुकरा पाएंगे अब यदि उनको भी आरक्षण मिलता है तो मुस्लिम को 28% मतलब 28 सीटें क्रिश्चियन को तीन सीट अब बाकी बची 69 सीट्स इन 69 सीट्स पर 28% जनरल मतलब 19 सीट अब यह 19 सीट इन जनरल के लिए रिजर्व हो गए
इसमें और कोई और नहीं आ सकता ओबीसी 48% मतलब 33% है मतलब 33 सीट यह सीटें भले बढ़ गई हों लेकिन इसमें अब क्रीमी लेयर भी शामिल हो जाएगी अब आप समझ सकते हैं कि जब क्रीमी लेयर शामिल हो गई तो गरीब बैकवर्ड क्या क्रीमी लेयर से प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे। शेड्यूल कास्ट को 16 परसेंट मतलब 11 सीटें चार सीटों का नुकसान शेड्यूल ट्राइब को 6% मतलब चार सीटें मतलब दो सीटों का नुकसान यह प्रतिशत 69 सीटों पर है क्योंकि 31 सीटें तो मुस्लिम व क्रिश्चियन के पास चली जाएंगी तो बताइए ओवरऑल कितना फायदा हुआ लेकिन सामाजिक विघटन व जातीय वैमनस्य काफी बढ़ जाएगी। अभी सभी आरक्षित वर्ग को पास सामान्य सीटों पर जाने का भी विकल्प है पिछड़े वर्ग व एससी की क्रिमी लेयर इसी विकल्प में आती है यह विकल्प जातीय जनगणना के बाद खत्म हो जाएगा
तो मेरे गरीब बैकवर्ड भाई बताएं उनको जातीय जनगणना से कैसे फायदा हो जाएगा कुछ लोग यह कह सकते हैं की की धर्म के आधार पर संविधान में आरक्षण लिखा ही नहीं यदि ऐसा है तो विभिन्न राज्यों में मुस्लिम आरक्षण का लाभ क्यों ले रहे हैं उनको क्यों आरक्षण दिया जा रहा है। (जबकि मुस्लिम या क्रिश्चियन कहते हैं कि उनके धर्म में सब बराबर हैं कोई भेदभाव नहीं होता है और आरक्षण हिंदुओं को इसीलिए दिया जाता है कि उनमें जातीय भेदभाव बहुत होता है जिससे एक समुदाय काफी पीछे रह गया) अब जब मुस्लिम व क्रिश्चियन भी जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के नारे के आधार पर आरक्षण मांगेंगे तो राहुल गांधी अखिलेश यादव संविधान बदलेंगे या नहीं आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के लिए भी संविधान को बदलना पड़ेगा तो जो आप यह आरोप भाजपा पर लगा रहे हैं
कि वह संविधान बादल देगी वही काम ये लोग कैसे करेंगे। अभी तक यह दोनों नेता अपने जातीय समूहों को सवर्ण लोगों के खिलाफ भड़काते थे जातीय जनगणना के बाद क्या इन समूहों में भी आपस में वैमनस्यता व जातीय विभाजन नहीं पैदा होगा और फिर अलग-अलग जातियों का आरक्षण प्रतिशत कैसे तय करेंगे क्योंकि अभी तो सब सवर्णों के खिलाफ एक हो जाते हैं लेकिन नई व्यवस्था में जातीय समूह को बताएं अलग-अलग जातियां अपने लिए आप अलग-अलग आरक्षण मगेंगी तब क्या होगा.
अभी तक हमारा संविधान सभी को बराबर अधिकार व बराबर के अवसर (तरक्की के) प्रदान करता था लेकिन जब यह नारा क्रियान्वित किया जाएगा की जिसकी जितने संख्या भारी उसकी उतने ही अधिकार तो क्या उन बेचारे जातियों को जो संख्या के आधार पर बहुत कम है तो क्या उनके अधिकार कम कर दिए जाएंगे और इन सबसे क्या समाज या राष्ट्र मजबूत होगा यह भी सोचने की बात है आप जब एक नारा गणा जा रहा है कि जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी तो क्या दूसरा नारा नहीं सामने आएगा की जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी जिम्मेदारी।
तो क्या हमारे आरक्षित वर्ग के सभी भाई यह जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मेरा विचार है की जातीय जनगणना से किसी का भला नहीं होगा केवल जातीय वैमनस्यता व जातीय संघर्ष बढ़ेगा और शायद राहुल गांधी के विदेशी आका यही चाहते हैं। इन दोनों नौजवानों का अगला शिगुफा यह होगा कि हम प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण लागू करेंगे तो आज की दुनिया ग्लोबल है जिस दिन यह लागू होगा उसी दिन से अधिकांश कंपनियां भारत छोड़कर बाहर चली जाएंगी और बाहर के बहुत से मुल्क उनको हाथों हाथ लेंगे केवल कंपनियां ही नहीं जाएगी
उसके साथ देश का अर्थ भी चला जाएगा कैपिटल भी चली जाएगी व नौकरी के अवसर भी चले जाएंगे और भारत आर्थिक रूप से काफी पीछे चला जाएगा। शायद राहुल गांधी के विदेशी आका यही तो चाहते हैं कि भारत में जातीय संघर्ष बढ़े वह विखंडित व आर्थिक रूप से विपन्न भारत देखना चाहते हैं। अतः समाज खास तौर से आरक्षित वर्ग के लोगों को इन सभी बिंदुओं पर गंभीरता से विचार कर कर इन दोनों नौजवानों को खारिज करना चाहिए। जय भारत