विकास मतलब, लोगो के सुकून का भी विकास होना चाहिए
इस अवसर पर पैनल विशेषज्ञ, प्रो आनंद कुमार, जेएनयू, नई दिल्ली ने कहा कि वर्तमान युवा पीढ़ी पहले की तुलना में कहीं ज्यादा समझदार है और संसाधनों से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि 80 और 90 के दशक में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या थी। बाद मे जनसंख्या को संसाधन की तरह देखा जाने लगा। उन्होंने कहा कि एक ऐसा समय भी आया जब देश में लगभग 1 करोड़ लोगों की इमरजेंसी के दौरान नसबंदी करके जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय किए गए। उन्होंने कहा कि अगर संसाधनों के एक समान वितरण की बात की जाए तो जनसंख्या, पापुलेशन डिविडेंड नहीं है बल्कि वह पापुलेशन डिजास्टर है। उन्होंने पापुलेशन डायनॉमिक्स की बात की और बताया कि किस तरह से ह्यूमन ट्रैफिकिंग विकास को प्रभावित कर रही है। उन्होंने जिक्र किया कि हैदराबाद में खुलेआम ब्राइडल सेलिंग होती पाई गई। उन्होंने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए बांग्लादेश और नेपाल के स्रोतों का भी जिक्र किया
उन्होंने केरल में गिरती हुई बेरोजगारी का जिक्र करते हुए कहा केरल में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मानव संसाधन पाए जाते हैं। लेकिन वह केरल के उतना काम नहीं आते जितना पूरे विश्व में जाकर लोगों की सेवा करते हैं। उन्होंने जनसंख्या के उचित विकास के लिए लोकतंत्र में 4Ms का जिक्र किया। इसमें मेरिट, मोबिलिटी, मार्केट और मोरालिटी का समाज में होना बहुत जरूरी है। मेरिट का अर्थ उन्होंने क्षमता विकास से किया। मोबिलिटी का तात्पर्य लोगों को एक जगह से दूसरे जगह आने जाने में सुगमता और सरलता है। एक अच्छे एक्सचेंज सिस्टम को उन्होंने मार्केट बताया, जहां पर प्राइस कंट्रोल फेयर तरीके से होता हो। उन्होंने मोरालिटी अर्थात नैतिक मूल्यों को लोकतंत्र में जनसंख्या और विकास के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि जो लोग बड़े कहे जाते हैं, अमीर कहे जाते हैं या साधन संपन्न कहे जाते हैं,उनका आचरण नैतिकता पूर्ण होना चाहिए। उन्होंने हाल ही में संपन्न हुई एक अमीर, औद्योगिक घराने में हुई शादी का जिक्र किया। कहा कि इससे लोगों में धन के पीछे भागने की प्रतियोगिता बढ़ेगी और समाज में असमानता भी।
उन्होंने समावेशी विकास को ही लोकतंत्र में जनसंख्या के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक बताया।इस अवसर पर विशेषज्ञ प्रो देवनाथ पाठक, साउथ एशियन विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने विकासवाद पर अपने विचार रखें। उन्होंने कहा कि छोटी-छोटी जगहो और शहरो मे जहां पर संस्कृति और समाज दोनों ही परंपरागत तरीके से सहज रूप में रह रहे थे। विकासवाद ने उनको भी अपनी जद में ले लिया है और संस्कृति और समाज में आ रही मिलावट से अब वह खूबसूरती नहीं रह गई जो कभी लोगों को सुकून देती थी। उन्होंने कहा कि विकास मतलब, लोगो के सुकून का भी विकास होना चाहिए।
प्रो सूर्य प्रकाश उपाध्याय, आईआईटी मंडी,ने रोड साइड शहरीकरण पर अपने वक्तव्य दिये। उन्होंने कहा कि जब आप कहीं ट्रैवल करते थे तब गांव और खेत के प्राकृतिक दृश्य मे एक खूबसूरती होती थी आपको किन्तु इन की जगह अब केवल कंक्रीट से बने मकान और आज तक के घर ही ज्यादातर मिलते हैं।इसी सत्र में प्रो नरेश कुमार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात ने बताया कि भारत से बाहर जाकर विदेशो में बसने वालों में भारतीयों की संख्या काफी बड़ी है। विदेशों से आने वाले उनके पैसे पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि अध्ययन में एक अचरज में डालने वाली बात पता चली कि ग्रामीण क्षेत्र से भी बहुत ज्यादा लोग विदेश में जाकर बस जा रहे हैं।
आज चले दूसरे सत्र में महिला सशक्तिकरण, लैंगिक असमानता और जनसंख्या विकास पर विशेषग्यों ने अपने विचार रखें। इस सत्र की अध्यक्षता, प्रो संजय सिंह, निदेशक गिरी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट लखनऊ ने की।
इस सत्र में प्रो अरविंदर अंसारी, जामिया मिलिया इस्लामिया, विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने महिलाओं में आ रही एजिंग की समस्या और उनके सामाजिक जीवन पर पढ़ रहे प्रभावों को उल्लेखित किया। उन्होंने कहा कि मीनोपाज के बाद ऐसा मान लिया जाता है कि महिला की अपने घर परिवार और समाज में उतनी महत्ता नहीं रह जाती। यानी की समाज में महिलाओं को प्रजनन साधन के तौर पर ही महत्व दिया जाता है। सत्र को प्रो श्वेता प्रसाद, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, ने संबोधित करते हुए कहा कि एक अध्ययन में पाया गया कि गरीब परिवारों में बच्चे ज्यादा होते हैं, शिक्षा की कमी कहीं ना कहीं आर्थिक संपन्नता से दूर ले जाती है। उन्होंने कहा कि डेवलपमेंट ही सबसे अच्छा कांट्रेसेप्टिव अर्थात गर्भनिरोधक माना जा सकता है। क्योंकि ऐसा देखा गया है कि विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों की आबादी आनुपातिक रूप से कम पाई जाती है।
इसी संबंध में प्रो बृजेश कुमार, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने अपनी एक रिसर्च का हवाला देते हुए बताया कि उनकी शक्ति को बहुत ही संकुचित करके समाज में रखा गया है। उन्होंने अध्ययन के माध्यम से बताया कि मोबाइल फोन तथा ऐसी ही कई टेक्नोलॉजी का प्रयोग सबसे कम महिलाएं ही कर पाती है।तीसरे सत्र में जनसंख्या, आर्थिक विकास और सतत विकास विषय पर विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। इस सत्र की अध्यक्षता,प्रो डी आर साहू, अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग,लखनऊ विश्वविद्यालय ने की। इस सत्र का आयोजन, माइग्रेशन पापुलेशन और विकास को आधार में रखकर किया गया।
जिसमें प्रो उलरीक शुरकेन्स, रेनेसविश्वविद्यालय, फ्रांस ने ऑनलाइन संबोधित करते हुए रिटर्न माइग्रेशन के बारे में बताया। उन्होंने जिनेवा पर किए गए अपने अध्ययन से लोगों को अवगत कराया। प्रो बी बी मलिक, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, विश्वविद्यालय, लखनऊ ने कैपेबिलिटी और डेमोक्रेसी विषय पर अपने विचार रखें। प्रो वॉल्टर बाल, मार्टिन लूथर विश्वविद्यालय, जर्मनी ने अपने विचार जनसंख्या संकेतको पर पर ऑनलाइन रखें। वहीं प्रो डोरीना, रोसका यूनिवर्सिटी आफ माल्दोवा ने अपने विचार हार्नेंसिंग द पावर का ट्रांस्नैशनल एक्सपिरिएंसेस फार लोकल डेवलपमेंट पर रखें।
प्रो सिरी हेटीग, यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलंबो से ऑनलाइन अपने विचार, श्रीलंका में लेबर माइग्रेशन और आर्थिक संकटों पर रखे। प्रो सुमन कुमार, राजधानी कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय ने जनसंख्या उसके माइग्रेशन पर अपने विचार रखें।महाविद्यालय प्राचार्य, प्रो विनोद चंद्रा ने सभी अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ एवं स्मृति चिन्ह देकर कियाअंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन के समापन पर अनेक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुई। इस अवसर पर देश विदेश से आए हुए अनेक शिक्षक, शोधछात्र एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।