डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने सेठ एम.आर. जयपुरिया स्कूल, गोमती नगर में 32वें संस्थापक दिवस का उद्घाटन किया

Dr. Sudhanshu Trivedi inaugurated the 32nd Founder's Day at Seth M.R. Jaipuria School, Gomti Nagar
 
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय).सेठ एम.आर. जयपुरिया स्कूल, गोमती नगर, लखनऊ में 32वें संस्थापक दिवस का उत्सव विद्यालय की गौरवशाली विरासत में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ। भव्यता और उत्साह के साथ शुरू हुए इस आयोजन ने छात्रों की अद्वितीय प्रतिभा को प्रदर्शित किया और भारतीय संस्कृति की समृद्ध धरोहर व ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की शाश्वत भावना को सम्मानित किया।

21 नवंबर 2024 को आयोजित सीनियर संस्थापक दिवस में वरिष्ठ छात्रों द्वारा रचनात्मक कला, विज्ञान, साहित्य और सांस्कृतिक उत्कृष्टता के क्षेत्रों में शानदार प्रदर्शन किया गया। स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमती प्रमिनी चोपड़ा ने सम्मानित अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।

इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद, माननीय डॉ. सुधांशु त्रिवेदी की गरिमामयी उपस्थिति रही।

छात्रों को संबोधित करते हुए और भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, ‘‘संस्कृत में ‘गुरु’ का अर्थ है ‘जो अज्ञान का नाश करता है,’ जबकि ‘शिष्य’ उस व्यक्ति को कहते हैं जो इस ज्ञान को प्राप्त करता है। दिलचस्प बात यह है कि, भले ही यह सर्वविदित है कि गुग्लिल्मो मार्कोनी ने 12 दिसंबर 1901 को पहला ट्रांसअटलांटिक रेडियो सिग्नल भेजा था, लेकिन भारत के जगदीश चंद्र बोस ने सबसे पहले रेडियो तरंगों को पकड़ने का विज्ञान प्रदर्शित किया था। दुर्भाग्यवश, बोस ने अपने कार्य का पेटेंट नहीं कराया। 2012 में, इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (IEEE) ने जगदीश चंद्र बोस को रेडियो और वायरलेस कम्युनिकेशन के क्षेत्र में अग्रदूत के रूप में मान्यता दी।’’

सीनियर संस्थापक दिवस पर श्री शरद जयपुरिया, चेयरपर्सन, सेठ एम.आर. जयपुरिया स्कूल्स, और श्रीमती अंजलि जयपुरिया, वाइस चेयरपर्सन, द इंटेग्रल एजुकेशन सोसाइटी की भी गरिमामयी उपस्थिति रही। संस्थापकों ने शिक्षा के भविष्य के प्रति अपना प्रेरणादायक दृष्टिकोण साझा किया और समग्र विकास के महत्व पर बल दिया।

श्री शरद जयपुरिया ने कहा, ‘‘आपकी यात्रा उस जीवन को देखने की है जिसे आप जीना चाहते हैं, उन कौशलों को विकसित करने की है जो आपके लक्ष्यों को पाने के लिए आवश्यक हैं, और एक-एक कदम आगे बढ़ाने की है। आगे का रास्ता हमेशा आसान नहीं होगा। आपको रास्ते में असफलताओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन मुझे खुशी है कि जयपुरिया में हम ऐसे व्यक्तियों को तैयार करते हैं जो इन चुनौतियों का डटकर सामना कर सकें। अपनी अनुभवों को अपनी सफलता का माध्यम बनाएं और आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ें।’’

छात्रों को मौन के महत्व को समझाते हुए, श्रीमती अंजलि जयपुरिया ने कहा, ‘‘इस ब्रह्मांड में दो महान शक्तियाँ हैं: मौन और क्रिया। मौन जितना गहरा होता है, क्रिया की शक्ति उतनी ही अधिक होती है। उसी तरह, एक इमारत की नींव जितनी गहरी होती है, उसकी ऊंचाई उतनी ही अधिक होती है। मौन या स्थिरता की आवाज सुनने में सक्षम होना न तो निष्क्रिय होना है और न ही अक्रिय। यह स्थिरता ही रचनात्मकता को जन्म देती है, और वह रचनात्मकता भव्य होती है।’’

उत्सव की शुरुआत एक मंत्रमुग्ध कर देने वाले ऑर्केस्ट्रा प्रदर्शन से हुई, जिसके बाद दीप प्रज्वलन की परंपरा निभाई गई। दर्शकों को “वंदे मातरम” और “गणेश वंदना” की भावपूर्ण प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध कर दिया गया, जिसने समारोह का शुभारंभ किया।

हमारे छात्रों ने तीन महीने की कड़ी मेहनत से अद्भुत प्रस्तुतियों को जीवंत किया। संस्कृत नाटक महर्षि वाल्मीकि ने वाल्मीकि ऋषि की प्रेरणादायक यात्रा को दर्शाया, जिसमें एक डाकू से एक प्रबुद्ध साधु बनने और महाकाव्य रामायण की रचना करने की कथा ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

माइम और टटिंग प्रदर्शन वार विदिन समाज पर युद्ध के प्रभाव को दर्शाने वाली एक प्रभावशाली प्रस्तुति थी। जयपुरियनों ने अपने अभिनय के माध्यम से संघर्ष के विनाशकारी परिणामों को उजागर किया और शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए विचारशील समाधान प्रस्तुत किए।

शाम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ, जिसने दर्शकों के दिलों में गर्व और एकता की भावना पैदा की। दिनभर के जीवंत प्रदर्शन और भाषणों ने विद्यालय के उद्देश्य और दृष्टिकोण के प्रति दर्शकों की सराहना को और गहरा कर दिया।