साढ़े चार साल से जामिया की छात्रा जेल की दीवारों में क़ैद

Jamia student imprisoned within prison walls for four and a half years
 
इस लड़की का नाम गुलफिशा फ़ातिमा है जो कि 9 अप्रैल 2020 से UAPA के तहत तिहाड़ जेल में बंदी है, यानी साढ़े चार साल से जामिया की छात्रा इसलिए जेल की दीवारों में क़ैद है क्योंकि वो मज़हब से मुसलमान है औऱ जमानत नियम उन पर लागू नहीं किया जा सकता, गुलफिशा की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की जाती है

तो हाई कोर्ट जाने के लिए कहा जाता है, याचिका हाई कोर्ट में दाख़िल की जाती है तो जमानत देने से इंकार करते हुए याचिका खारिज़ कर दी जाती है, HC से खारिज़ होने के बाद याचिका SC में डाली जाती है तो फिर सुनवाई टाल दी जाती है, SC में सुनवाई के लिए तारीख़ पर तारीख़ मिलती है फिर कुछ माह या वर्ष बाद याचिका खारिज कर HC जाने के लिए कह दिया जाता है,

पिछले साढ़े चार सालों से उनका परिवार उनका एडवोकेट हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट दौड़ रहे है ,परिवार टूट रहा है गुलफिशा के माता पिता अपनी बेटी के लिए तड़प रहे है बिलख रहे है और नींद ना आने पर नींद की दवाईयों को सहारा बना सो जाते है, हर रोज़ इसी उम्मीद में बूढ़ी आंखे खुलती है कि आगामी सुनवाई की तारीख़ पर जमानत मिल जायेगी और जल्द हमारी बेटी हमारे बीच होगी,

बस इसी उम्मीद में उनके साल माह की तरह गुज़र रहे है और बूढ़ा शरीर उम्मीद जी रहा है! आरोपियों को बिना ट्रायल जेल में रखना न्यायपालिका के वज़ूद के बारे में दर्शाता है कि किस तरह अदालतों के अंदर की रीढ़ की हड्डियां टूट चुकी है औऱ झुक कर किसी को तो सलामी दे रही है, अब गिरफ्तारी ही सज़ा बन गया है, ट्रायल से पहले ही जेल में रख आरोपी को नही बल्कि पूरे परिवार को सज़ा दी जा रही है, और सज़ा भी ऐसी कि ना सुनवाई चल रही ना दलीलें अगर कुछ चल रहा है तो वो आदेश जो सत्ताधीशों द्वारा लिखे जाते है!