अपने फेफड़ों की क्षमता को पहचानेः डा0 सूर्यकान्त

विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस के उपलक्ष्य में केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में रोगी जागरूकता शिविर का हुआ आयोजन
 
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय).आज पूरा विश्व प्रदूषण की मार झेल रहा है। बढ़ते हुये वायुप्रदूषण के साथ-साथ सांस से संबन्धित बीमारियों के मरीजों की सख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे में लोगों को सांस से संबन्धित बीमारियों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष नवम्बर माह के तीसरे बुद्धवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है।

इस वर्ष विश्व सीओपीडी दिवस को ’’अपने फेफड़ों की क्षमता को पहचाने’’ के विषय के साथ मनाया जा रहा है। के.जी.एम.यू. के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा0 सूर्यकान्त ने बताया कि प्रथम विश्व सीओपीडी दिवस सन् 2002 में मनाया गया था। इस वर्ष 23वाँ विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जा रहा है, जिसमें दुनिया के 50 से अधिक देश मिलकर सीओपीडी के जोखिम कारक, बीमारी, निदान एवं रोकधाम के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। सीओपीडी की अंतर्राष्ट्रीय गाईडलाइन-ग्लोबल इनिसिएटिव फार क्रोनिक आब्सट्रक्टिव लंग डिजीज ;गोल्डद्ध-2025 के अनुसार भारत में सीओपीडी के लगभग दुनिया के 14 प्रतिशत मरीज रहते है, सीओपीडी से मरने वाले मरीजों में भारत के 25 प्रतिशत मरीज होते है। मौत के कारण का यह बढ़ा हुआ प्रतिशत लोगों में इस बीमारी के प्रति जानकारी का आभाव, उचित इलाज न मिल पाना है। 

इस उपलक्ष्य पर केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग में सी.ओ.पी.डी. जागरूकता शिविर का भी आयोजन किया गया। डा0 सूर्यकान्त ने रोगियों एवं उनके परिजनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सी.ओ.पी.डी. (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) सांस की एक प्रमुख बीमारी है। डा0 सूर्यकान्त ने बताया कि साल दर साल सीओपीडी को लेकर हमारी समझ में आमूलचूल परिवर्तन आया है। जहां तकरीबन दो दशक पहले सीओपीडी को केवल धूम्रपान करने वालों में होने वाली बीमारी के रूप में देखा जाता था वहीं आज विश्वस्तर पर हो रहे विभिन्न शोधकार्यों से यह सिद्ध हुआ है कि धूम्रपान के अलावा चूल्हे से निकलने वाले धुऐं, वायु प्रदूषण एवं लंबे समय तक बने रहने वाले फेफड़े के संक्रमण भी सीओपीडी के लिए उतने ही प्रमुख जोखिम कारक (रिस्क फैक्टर) हैं। 


भारत जैसे देश में जहां धूम्रपान न करने वाले सीओपीडी मरीजों की संख्या अधिक है, यहां अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। इस जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से भारत के आम जनमानस में सीओपीडी जैसी बीमारी को लेकर जल्द जांच, इलाज व इलाज में इस्तमाल होने वाले इन्हेलर्स से संबन्धित भ्रान्तियों एवं मिथको को दूर करने का प्रयास किया गया। इस बीमारी के लक्षण 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रारम्भ होते हैं। सबसे पहला लक्षण सुबह-सुबह खांसी आना होता है। इसके बाद धीरे-धीरे सर्दी के मौसम में एवं फिर बाद में साल भर खांसी आती रहती है, तत्पश्चात बलगम भी आने लगता है। बीमारी बढ़ने पर रोगी की सांस भी फूलने लगती है। डा0 सूर्यकान्त ने बताया कि सी.ओ.पी.डी. सिर्फ फेफडे़ की ही बीमारी नही है, बल्कि बीमारी की तीव्रता बढ़ने पर हृदय, गुर्दा व अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते है। शरीर कमजोर हो जाता है, भूख कम लगती है तथा हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं।

डा0 सूर्यकान्त ने जोर देते हुए कहा कि जिस तरह से हृदय रोगियों के लिए हार्ट अटैक एक प्राणघातक घटना है उसी तरह से जब सीओपीडी की गम्भीरता बढ़ जाती है तो उसे लंग अटैक कहा जाता है। जब लंग अटैक के परिणाम स्वरूप  जब अस्पताल में मरीज को भर्ती होना पड़ता है तो उनकी मृत्यु की सम्भावना दिल के दौरे के समान ही बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगायें एवं मास्क न होने पर रूमाल से ही नाक व मुँह ढ़के लें, महिलायें नाक व मुँह ढ़कने के लिए दुप्ट्टे या साड़ी के पल्लू का भी इस्तमाल कर सकती हैं वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए रोज भाप और सर्दियों के दौरान कृपया मोर्निंग वॉक न करें।

इस अवसर पर विभाग के डा0 संतोष कुमार, डा0 अजय कुमार वर्मा, डा0 ज्योति बाजपेयी, डा0 अंकित कुमार, डा0 शिवम श्रीवास्तव  एवं जूनियर डॉक्टर्स, रोगी और उनके परिजन भी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में सी.ओ.पी.डी. के रोगियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये।