इतिहास लेखन की शान थे शरद पगारे

Sharad Pagare was the pride of history writing
 
(राकेश अचल -विभूति फीचर्स)  इतिहास लेखन में शरद पगारे एक मानक नाम था। शरद जी 28  जून 2024को एक महायात्रा पर निकल गए ।  वे यदि एक सप्ताह और रुक जाते तो हम सब उनका 94  वां जन्मदिन मानते ,लेकिन उन्होंने अपनी पारी समाप्ति का मन शायद बना लिया था। मुझे अपने जीवन में इतिहास लेखन में पगारे जैसा कोई दूसरा लेखक नहीं मिला। वे इतिहास कथाओं को न जाने किस रस में पागते थे की वे और भी मधुर और पठनीय हो जातीं थीं।
 

पहली मुलाकात इंदौर में नहीं दुबई में हुई थी

श्री पगारे जी से मेरा परिचय बाहर पुराना नहीं है ,कोई एक दशक पुराना समझ लीजिये। मेरी उनकी पहली मुलाकात इंदौर में नहीं दुबई में हुई थी। वहां एक अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मेलन था। वे उस आयोजन के शायद सबसे वरिष्ठ   सदस्य थे और मै अधपका लेखक। शरद जी से मिलकर  ये लगता ही नहीं था की वे वरिष्ठ लेखक हैं।  उनके चेहरे से हर समय  एक वात्सल्य  झलकता था। वे बोलते तो मीठा थे ही। किसी भी उम्र के व्यक्ति से घुलने-मिलने में उन्हें बस कुछ पल लगते थे। यही विशेषता श्रीमती शरद पगारे की है।

पगारे जी भी मुस्कराते हुए प्रकट हो गए।  कहने लगे -'ये ठीक है

दुबई में मै अपने रूम पार्टनर के साथ बैठकर जौ -रस पी रहा था। पगारे जी भी मुस्कराते हुए प्रकट हो गए।  कहने लगे -'ये ठीक है कि मै रसरंजन नहीं करता लेकिन आपके साथ नमकीन तो खा ही सकता हूँ ! । वे बना किसी लाग-लपेट के हमारे साथ आ विराजे और हमारी खाली जौ-रस की बोतल को लेकर निहारने लगे। मैंने उनकी एक तस्वीर ली और उन्हें चिढ़ाया-अभी माता जी को दिखता हूँ आपकी ये तस्वीर। वे मुस्कराये। बोले जरूर ,मुझे भी देना। '
दुबई के बाद शरद जी के साथ अनेक यात्राएं करने का सौभाग्य मिला ।  वे बिना थके ,बिना रुके अपना धूप का चश्मा लगाए सपत्नीक हम सबके बीच ठहाके लगते उपस्थित रहते थे। उनकी विद्वत्ता किसी को भी आतंकित नहीं करती थी। उनके पास मालवी भाषा की अनेक लोक कथाएं और कहावतें थीं। वे खामोश होकर बैठने वाले व्यक्ति नहीं थे।  जहाँ होते चहकते ही रहते। किस्मत से उनकी जीवन संगिनी और बच्चे भी उनके ही जैसे हैं। वे हर विषय में रूचि लेते थे। अरुचि शायद उनके हिस्से में थी ही नहीं।

मैंने अपना पहला उपन्यास ' गद्दार ' उन्हें पढ़ने को संकोच दिया ,तो वे बहुत खुश हुये

पिछले साल की बात है मैंने अपना पहला उपन्यास ' गद्दार ' उन्हें पढ़ने को संकोच दिया ,तो वे बहुत खुश हुये ।  मैं सपत्नीक उनके इंदौर आवास पर मिलने गया था। उन्होंने  मेरे बोलने से पहले ही कहा -इसे पढ़कर मै कुछ जरूर लिखूंगा। मेरे लिए तो ये बिना मांगी मन की मुराद का पूरा होने जैसा था। उनके साथ दो घण्टे कब बीत  गए ,पता ही नहीं चला।  नब्बे पार के बाद भी उनमें  गजब की शक्ति थी।  पिछले कुछ दिनों तक वे फेसबुक पर सक्रिय थे । मेरी लगभग हर पोस्ट पर उनकी प्रतिक्रिया आती थी। कभी तारीफ़ करते तो कभी मशविरा देते। लेकिन डांटते कभी न थे।

फोन भी किया और बोले-' राकेश तुमने उपन्यास के साथ न्याय नहीं किया

मेरे उपन्यास पर उन्होंने लम्बी प्रतिक्रिया कहें या समीक्षा लिखी । फोन भी किया और बोले-' राकेश तुमने उपन्यास के साथ न्याय नहीं किया।, विषय वस्तु और भाषा शैली ऐसी है कि  इसे 300  पेज का उपन्यास बनाया जा सकता था।उनकी इच्छा थी कि मैं 'गद्दार ' का एक और संस्करण लाऊँ जिसमें रानी  लक्ष्मी बाई के चरित्र को और विस्तार दूँ। उन्होंने मुझे ऐतिहासिक पात्रों को विस्तार देने की तकनीक भी बताई। उनसे ऐतिहासिक पात्रों को प्रामाणिक बनाने के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता था।

पगारे जी ने मेरे सामने रहस्योद्घाटन किया कि जब वे ' पाटिलीपुत्र की साम्राज्ञी' लिख रहे थे ,तब उन्होंने उसका चरित्र उभारने के लिए कितने ठठ्क्रम किये। उन्हें इसी उपन्यास के लिए व्यास सम्मान दिया गया था। उन्होंने बताया कि उपन्यास की नायिका का कोई चित्र था ही नहीं।  उसके बारे में जो कुछ यत्र-तत्र बिखरा पड़ा था उससे कुछ तस्वीर नहीं बन रही थी। तभी उन्होंने एक जुगत बैठाई। अपने एक परिचित ज्योतिषी से पाटिलीपुत्र की सम्राज्ञी की एक काल्पनिक जन्मकुंडली बनवाई। उसकी राशि का अनुमान कर उसके लक्षणों का पता किया ,फिर अपने एक चित्रकार मित्र से उन्हीं लक्ष्णों के आधार पर पाटिलीपुत्र की नायिका की एक काल्पनिक  तस्वीर बनाकर उसके चरित्र को उभारा। पगारे जी जैसा इतना श्रम शायद ही कोई दूसरा लेख कर पाए।  

उपन्यास हिंदी के अलावा  दूसरी भारतीय भाषाओं में भी छपे और खूब बिके

उनके अनेक उपन्यास हिंदी के अलावा  दूसरी भारतीय भाषाओं में भी छपे और खूब बिके भी ,लेकिन शरद जी की मिठास जैसी पहले थी वैसी ही बाद में भी बनी रही । आपने यदि उनके उपन्यास- गुलारा बेगम, गंधर्व सेन, बेगम जैनाबादी,  और उजाले की तलाश ' पढ़ा हो तो आप मेरी बात का मर्म आसानी से समझ जायेंगे ।  उपन्यासों के साथ शरद जी ने अनेक कहानियां भी  लिखीं। उनके कहानी संग्रहों में ' एक मुट्ठी ममता, संध्या तारा, नारी के रूप, दूसरा देवदास, भारतीय इतिहास की प्रेम कहानियाँ, मेरी श्रेष्ठ कहानियाँ प्रमुख हैं। उन्होंने नाटक भी लिखे ,लेकिन उनकी संख्या शायद कम है।

नगर निगम शरद पगारे जी की प्रतिमा शहर में स्थापित कराये

शरद पगारे जी का जाना केवल इंदौर और मालवा का ही नहीं अपितु हिंदी के अलावा उन भाषाओं का भी नुकसान है जिसमें उनके पाठक मौजूद थे। शरद जी ने जीभर कर लिखा । वे अपने लेखन से पूरी तरह तृप्त थे। काश वे अभी हमारे साथ और रहते। हम उनकी शताब्दी मनाना चाहते थे ,लेकिन हरि इच्छा के आगे किसकी चलती है? शरद जी के लिए शोक करने का कोई कारण नहीं बनता । यश-कीर्ति की जितनी पताकाएं फहराई जा सकतीं  थी उन्होंने फहराईं। वे अपने समकालीन लेखकों में सबसे ज्यादा  ऊर्जावान और लोकप्रिय थे। हम सभी को उनके ऊपर कल भी गर्व था और आने वाले समय में भी उनका नाम ससम्मान लिया जायेगा । पगारे परिवार के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं।  इंदौर में अनेक नेताओं की स्मृतियों को सहेजकर रखा गया है । यदि स्थानीय   नगर निगम शरद पगारे जी की प्रतिमा शहर में स्थापित कराये तो यही उन्हें सर्वोत्तम श्रद्धांजलि होगी।