बहन ने भाई को दिया लिवर दान, जटिल ट्रांसप्लांट सर्जरी कर मेदांता हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने दिया 48 वर्षीय को नया जीवन

Sister donated liver to brother, doctors of Medanta Hospital gave new life to 48-year-old by performing complex transplant surgery
 

उत्तर प्रदेश डेस्क लखनऊ(आर  एल पाण्डेय).कुशीनगर के रहने वाले 48 वर्षीय श्री पवन तिवारी लीवर सिरोसिस की गंभीर अवस्था से पीड़ित थे। उन्हें पीलिया हो गया था। इसके चलते उनके पेट में काफी तरल पदार्थ जमा हो गया था, साथ ही पेट में खून रिसने के चलते उनका मल काला हो गया था और बिलीरुबिन का स्तर लगातार बढ़ रहा था। इसके साथ ही उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी। इस स्थिति को देखते हुए, उन्हें इलाज के लिए गोरखपुर के एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन उनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उनकी भूख भी बहुत कम हो गई थी, जिसके चलते वह इतने कमजोर हो गए कि वह चल भी नहीं पा रहे थे। ऐसी स्थिति में उनका शरीर एक के बाद कई संक्रमण का शिकार हो गया और कमजोर पड़ता रहा।

सितंबर 2023 में उनकी तबीयत लगातार खराब होने के कारण, श्री तिवारी को लखनऊ के मेदांता अस्पताल में रेफर किया गया, जहां उन्हें डॉ. विवेक गुप्ता (सीनियर कंसल्टेंट - लिवर ट्रांसप्लांट और हेपेटोबिलरी साइंसेज) की देखरेख में भर्ती कराया गया। डॉ. विवेक गुप्ता ने उन्हें जल्द से जल्द लिवर ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी।

लेकिन जीवन रक्षक प्रक्रिया से पहले तिवारी को काफी मुश्किलों का सामना करना बाकी था। संक्रमणों ने उनके शरीर को काफी हद तक कमजोर कर दिया था। भर्ती होने के अगले सात दिनों में, मेदांता की एक मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम ने उनके स्वास्थ्य को स्थिर करने, उनके संक्रमण का इलाज करने और उन्हें ट्रांसप्लांट के लिए तैयार करने के लिए समर्पित रूप से काम किया। इस बीच उनके परिवार के सदस्यों का परीक्षण कर उपयुक्त डोनर की पहचान करने की प्रक्रिया की जा रही थी। तभी श्री तिवारी की बहन - सुश्री आराधना पाण्डेय - अपने भाई की जान बचाने के लिए आगे आईं। लिवर डोनेशन के लिए वह एकदम सही मेल थीं, उनकी उम्र 18 साल से अधिक की है और लिवर डोनेशन के लिए उनके लिवर के स्वास्थ्य की स्थिति भी उपयुक्त थी।

डॉ. विवेक गुप्ता ने बताया, “श्री तिवारी भर्ती होने के वक्त गंभीर रूप से बीमार थे। शरीर में पहले से ही सिरोसिस होने के कारण, उन्हें संक्रमण होने का बहुत खतरा था, जो उनके लिए जानलेवा भी हो सकता था। उन्हें पीलिया था और बिलीरुबिन का स्तर 14 था, खून जमने में दिक्कत और निमोनिया हो चुका था, जिससे उनकी हालत और भी गंभीर हो गई थी। उनके शरीर में अमोनिया का स्तर सामान्य से 3 गुना ज्यादा था, जिसके कारण वह बहकी बहकी बातें कर रहे थे। ट्रांसप्लांट के लिए जाने से पहले, हमने उनके सीने के संक्रमण को नियंत्रित किया और एंडोस्कोपी से उनके पेट से खून का रिसाव बंद किया गया।”

"हमारे अत्याधुनिक आईसीयू, ट्रांसप्लांट की सुविधाएं और अनेक प्रणालियों के डॉक्टरों की टीम, बीमार मरीजों की स्थिति स्थिर करने और उनको आगे की सर्जरी के लिए तैयार करने में बहुत मदद करती है। श्री तिवारी को इन सेवाओं से काफी लाभ हुआ और उनका ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, ऑपरेशन के बाद उनकी कमजोरी और भूख न लगने की समस्या कुछ ही हफ्तों में दूर हो गई। उनका जल्दी ठीक होना इस बात को प्रमाण है कि भले ही ऐसे गंभीर मरीजों के इलाज में खतरे होते हों पर सही समय पर अत्याधुनिक सुविधा वाले अस्पताल में इलाज कराना मरीज के जीवन को पहले से काफी बेहतर बनाने का सबसे अच्छा विकल्प है।"

सुश्री आराधना को ट्रांसप्लांट के 5 दिन बाद और श्री तिवारी को 12 दिन बाद छुट्टी दे दी गई। ठीक होने के बाद, श्री तिवारी ने कहा, “मैं अपनी बहन और लखनऊ के मेदांता अस्पताल की मल्टीडिसिप्लिनरी टीम का बहुत आभारी हूँ, जिन्होंने मेरा अच्छे से अच्छा इलाज किया और बहुत ख्याल रखा। ट्रांसप्लांट के बाद, मैंने 2 से 3 महीने के अंदर थोड़ी बहुत सावधानी के साथ अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी जीनी शुरू कर दी है। इन सावधानियों में शामिल है- बहुत भीड़भाड़ वाली और गंदी जगहों से बचना, बाहर का खाना न खाना और दवाइयां समय पर लेना।" 

भारत और यूपी में लीवर सिरोसिस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण मधुमेह और फैटी लीवर की बढ़ती हुई बीमारी है, इसके अलावा शराब का सेवन और हेपेटाइटिस भी मुख्य कारणों में शामिल हैं। यूपी में हेपेटाइटिस-ए और ई जैसी बीमारियों के कारण एक्यूट लिवर फेल्योर के मामले भी बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं।

डॉ. गुप्ता ने बताया कि, "मेदांता अस्पताल, लखनऊ, में लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर बहुत ज़्यादा है। यह इस बात का प्रमाण है कि हम मरीजों के इलाज के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं और इसके इलाज की विशेषज्ञता रखते हैं। हमारी देखभाल से मरीजों को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है, उनका नियमित फॉलो-अप किया जाता है और उन्हें लगातार देखभाल मिलती है, जिससे उनकी ज़िन्दगी और सेहत में दीर्घकालिक सुधार होता है। हमारा सम्मिलित प्रयास इस बात का प्रमाण है कि गंभीर लिवर रोग के लिए समय पर इलाज और पूरी देखभाल कितनी आवश्यक है।"

मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ में श्री तिवारी के इलाज करने वाली टीम में कई डॉक्टर, जैसे कि ट्रांसप्लांट सर्जन, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, हेपेटोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट, आईसीयू के विशेषज्ञ, एनेस्थीसिया देने वाले डॉक्टर और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट आदि शामिल थे। एक ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने श्री तिवारी और उनके परिवार को पूरे इलाज के दौरान सहयोग दिया ताकि सारी प्रक्रियाएँ आसानी से हो सकें। ऑपरेशन के बाद, सभी ट्रांसप्लांट रोगियों की तरह, उन्हें हेपा फ़िल्टर, पॉजिटिव-प्रेशर रूम, ड्रग मॉनिटरिंग, दैनिक डॉपलर टेस्ट, थ्रोम्बोलास्टोग्राफी आदि की आवश्यकता थी, जो हॉस्पिटल में उपलब्ध थी। इलाज में आधुनिक ऑपरेशन थिएटर और एमआरआई, पीईटी, एंजियोग्राफी जैसी जांचों का इस्तेमाल किया गया।