हिंदी वालो से इतनी नफरत क्यों करते है साउथ इंडियन 

Why do South Indians hate Hindi speaking people so much?
 
आज हम एक ऐसे मुद्दे पर बात करने वाले हैं जो है तो बेहद संवेदनशील लेकिन उस पर कोई ज़्यादा बात नहीं करना चाहता और वो मुद्दा है भाषा को लेकर लोगों में बढ़ती नफरत का. जब हमारे यहां अंग्रेज़ों की हुकूमत थी और उसके बाद जब देश को आज़ादी मिली, तब सरकारी कामकाज से लेकर हर तरफ सिर्फ दो भाषाओं का ही बोलबाला था- पहली अंग्रेजी और दूसरी उर्दू. हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने को लेकर हमेशा से विवाद उठता आया है, जिसे हम 'बॉलीवुड' बनाम 'टॉलीवुड के अहंकार का नाम तो दे सकते हैं लेकिन दरअसल, ये बरसों से चली आ रही उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत की पुरानी महाभारत का ही एक नया रुप है. जो अपने शहर अपने प्रांत में होते हैं मैं तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जो कमाने के लिए या किसी और वजह से पलायन करते हैं, उन्हें बहुत फर्क पड़ता है

.  कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक कहलाता है, हां.. अगर कोई राष्ट्रभाषा पूछे तो आदमी हकलाता है.

हम बचपन से सुनते आए हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है. बिल्कुल सही बात है. लेकिन अगर हम असमानताएं यानी differences निकालने पर आ जाएं तो गिनते-गिनते थक जाएंगे क्योंकि उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक अलग-अलग धर्म और संस्कृति के लोग निवास करते हैं.और लोगों में अगर कोई सबसे बड़ा फर्क है तो वो है भाषा का यानी Language का. तभी तो किसी कवि ने कहा है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक कहलाता है, हां.. अगर कोई राष्ट्रभाषा पूछे तो आदमी हकलाता है.

अगर हम उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों के बीच सबसे बड़ा फर्क निकालें तो वो है भाषा संबंधी बाधाओं का यानी Language Barriers. और यहीं से पनपता है नफरत का बीज. अभी हाल की ही घटना बताती हूं मैं आपको... सिलिकॉन वैली ऑफ इंडिया यानी बेंगलुरु में एक ओला ऑटो ड्राइवर राइड कैंसल करने पर लड़की पर भड़क गया.लड़की दूसरे ऑटो में जाकर बैठी तो वो ड्राइवर सामने आकर खड़ा हो गया और सीट के पास आकर लड़कियों को धमकाने लगा... ऑटो ड्राइवर ने जब लड़की के साथ बदतमीजी की तो लड़की ने कहा कि वो पुलिस में कंप्लेंट कर देगी, लेकिन इस बात का भी उस ड्राइवर पर कोई असर नहीं पड़ा. उल्टा वो लड़की को ही पुलिस स्टेशन ले जाने की जिद करने लगा. ओला ऑटो ड्राइवर लड़की पर इस कर भड़का कि उसने उन्हें थप्पड़ तक मार दिया... जब लड़की ने ऑटो ड्राइवर से ये कहा कि “आप चिल्ला क्यों रहे हो” तो ड्राइवर ने कहा कि “गैस तेरा बाप देता है क्या”.

2024 की वीडियो लगाएं एंबिएंस के साथ

इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, जिसके बाद सवाल ये खड़ा होता है कि बेंगलुरु जैसी मेट्रो सिटीज़ में इस किस्म के वाकिये क्यों सामने आ रहे हैं जहां सिर्फ एक राइड कैंसिल करने को लेकर ओला ड्राइवर इस कदर भड़क गया कि उसने लड़की पर हाथ उठा दिया. कोई समझे या न समझे, लेकिन इस सवाल का एक ही जवाब है, और वो हैं हिंदी से नफ़रत 

जी हां, लोगों को लग रहा है कि राइड कैंसिल करने पर ऑटो ड्राइवर लड़की पर भड़क गया. नहीं, हरगिज़ नहीं. उसकी भड़ास की वजह थी लड़की का हिंदी में बात करना.आपने वीडियो देखा होगा तो सुना होगा कि लड़की बहुत शालीनता से ऑटो ड्राइवर से आप-आप करके बात कर रही थी, बावजूद इसके ऑटो ड्राइवर भड़क गया, उसके अंदर विद्यमान हिंदी भाषी लोगों से नफ़रत का कीड़ा जाग गया और फिर जिसने पूरे विवाद की शक्ल ले ली.

हम अपनी इस बात को इतने यकीन के साथ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ये कोई पहला मामला नहीं है जब दक्षिण भारत में हिंदी बोलने को लेकर कोई विवाद हुआ हो, अभी पिछले साल यानी 2023 की घटना है वो भी बेंगलुरु की ही, जहां भाषा को लेकर ऑटो रिक्शा चालक और यात्री के बीच बहस हो गई, जिसका वीडियो हम आपको दिखा रहे हैं.

2023 की वीडियो लगाएं एंबिएंस के साथ

वीडियो में आप देख सकते हैं कि किस तरह से दोनों के बीच भाषा को लेकर गहमागहमी हो रही है. दरअसल, दोनों के बीच विवाद की स्थिति तब बन गई, जब महिला यात्री ने ऑटो ड्राइवर से कहा कि 'मैं कन्नड़ क्यों बोलूं?' इसके बाद दोनों के बीच बहस छिड़ गई... ड्राइवर ने फिर गुस्से में कहा कि ये कर्नाटक है और तुम लोगों को कन्नड़ में बात करनी चाहिए. तुम लोग उत्तर भारतीय भिखारी हो. ये हमारी ज़मीन है तुम्हारी नहीं.

चलिए अब आपको दक्षिण भारत में हिंदी भाषियों से नफरत की इंतेहा की एक और वीडियो दिखाते हैं... NCIB Headquarters ने 16 फरवरी, 2023 को अपने एक्स प्लेटफ़ॉर्म पर एक वीडियो शेयर किया था, जिसमें देखा जा सकता है कि तकरीबन 35-40 साल का एक शख्स ट्रेन के जनरल डिब्बे में हिंदी बोलने वालों को ढूंढते हुए आता है. वो हिंदी-हिंदी चिल्लाता है और फिर एक 25-28 साल के लड़के के कपड़े खींचकर उसे पीटना शुरू कर देता है... उस लड़के से मारपीट करने के बाद वो सफेद शर्ट पहने करीब 18-20 साल के दूसरे लड़के से मारपीट शुरू कर देता है. 

ट्रेन में मारपीट का वीडियो लगाएं एंबिएंस के साथ

दक्षिण भारत में हिंदी भाषा को लेकर लोगों में कितनी ज़्यादा नफरत भरी हुई है चलिए आपको इसका एक और उदाहरण देते हैं. क्या आप सोच सकते हैं कि 'दही' के नाम को लेकर भी कोई विवाद हो सकता है? आपको जानकर हैरानी होगी कि विवाद हुआ है और कब हुआ है चलिए ये भी आपको बता देते हैं. दरअसल, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी FSSAI ने एक आदेश जारी किया. ये आदेश था दही के पैकेट पर 'दही' शब्द का ही इस्तेमाल करने का... इसी पर बवाल हो गया...

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कहा कि हिंदी थोंपने की जिद अब इस हद तक पहुंच गई है कि अब वो हमें दही के पैकेट पर हिंदी का लेबल लगाने का निर्देश दे रहे हैं हमारे अपने राज्यों में तमिल और कन्नड़ हटाने को कह रहे हैं... खैर, विवाद बढ़ा तो FSSAI ने अपना आदेश वापस ले लिया. कहा गया कि पैकेट पर 'कर्ड' के साथ तमिल और कन्नड़ भाषा के स्थानीय शब्द जैसे 'मोसरू' और 'तायिर' को ब्रैकेट में इस्तेमाल किया जा सकता है.तो देखा आपने, जिस राज्य के मुख्यमंत्री की एक भाषा को लेकर ये सोच है, तो राज्य के आम लोगों की क्या मानसिकता होगी.

दक्षिण के राज्यों में 'हिंदी' को लेकर विवाद नया नहीं है... ये काफी पुराना है... वहां के नेता अक्सर जबरन हिंदी थोंपने का इल्जाम लगाते रहे हैं. इसे ऐसे समझिए कि आजादी के बाद जब हिंदी को राजभाषा बनाने पर बहस चल रही थी, तब तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद सीएन अन्नादुरई ने संसद में कहा था कि ऐसा दावा किया जाता है कि हिंदी आम भाषा होनी चाहिए, क्योंकि इसे बहुत बड़ी आबादी बोलती है. तो फिर हम बाघ को राष्ट्रीय पशु क्यों मानते हैं, जबकि चूहों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. और मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी क्यों है जबकि कौवे हर जगह हैं..

हिंदी के इस्तेमाल को लेकर दोनों पक्षों के अलग-अलग दावे रहते हैं. इसके पक्ष में रहने वालों का तर्क है कि चूंकि भारत की एक बड़ी आबादी हिंदी का इस्तेमाल करती है, इसलिए इसे ही राजभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए. जबकि, इसके विरोध में तर्क दिया जाता है कि जिस तरह से भारतीय दूसरी भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं, हिंदी भी उन्हीं में से एक भाषा है.चलिए, अगर हिंदी का विरोध करने वालों का ये तर्क मान भी लें तो भी क्या ऐसा करना उचित है क्या कि हिंदी के इस्तेमाल पर हिंसा की जाने लगे.

हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं. लेकिन हिंदी भाषा के बारे में हम कहना चाहेंगे कि हिंदी आज सिर्फ सरकारी कामकाज की नहीं, बल्कि देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा बन चुकी है. बॉलीवुड की तमाम चर्चित फिल्मों को दक्षिण की भाषाओं में डब करके वहां के प्रोड्यूसर्स रातोंरात करोड़पति बने हैं. इसके उलट पिछले तीन दशकों से मुंबई के फिल्म प्रोड्यूसर्स भी साउथ की बेहतरीन फिल्मों को हिंदी में डब करके उत्तर भारतीय दर्शकों को मनोरंजन का चटखारे वाला स्वाद दे ही रहे हैं. मजे की बात तो ये है कि बॉलीवुड हो या टॉलीवुड, दोनों के ही दिग्गज फिल्मी सितारों ने एक-दूसरे की फिल्मों में काम करके खूब पैसा भी कमाया है और शोहरत भी बटोरी है... तो फिर ऐसा क्यों हैं कि दक्षिण भारत में रहने वालों को हिंदीं से इतनी नफ़रत है?

अक्सर हम देखते हैं कि सोशल मीडिया पर उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों को आपस में कंपेयर किया जाता है ऐसा कहा जाता है कि दक्षिण भारत के लोग ज़्यादा सभ्य होते हैं..हालांकि आप उत्तर भारत में ऐसा कोई केस नहीं पाओगे जहां पर दक्षिण भारतीय भाषा का इस्तेमाल करने पर किसी को मारा पीटा गया हो. इक्का-दुक्का केस हुए भी हों तो वो अलग बात है लेकिन जितनी नफरत दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर है, वैसी नफरत उत्तर भारत के लोगों में तमिल या कन्नड़ भाषा को लेकर ना के बराबर है. तो अब इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ज्यादा सभ्य कौन है