क्यों अमरीका में शरण मांग रहे हैं लाखों भारतीय 

Why are millions of Indians seeking asylum in America
 

(भूपेन्द्र गुप्ता-विभूति फीचर्स) एक समय था जब ब्रिगेडियर उस्मान को बंटवारे के समय पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया गया था लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया था कि भारत मेरा देश है इस धरती में मेरे बुजुर्ग दफन हैं। उन्होंने पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनने की बजाय भारत का ब्रिगेडियर बने रहना स्वीकार किया और अपना नौसेरा बचाने के लिये शहीद हो गये। वह तो अनिश्चितता का समय था,जान-माल का खतरा था किंतु आज तो निश्चिंतता का समय है। संवैधानिक और नियामक संस्थायें देश को आजादी के प्रति सजग कर रहीं हैं ऐसे दौर में कुछ खबरें हैरान भी करतीं हैं और चिंतित भी।



संसद में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया है कि पिछले 10 सालों में लगभग 15 लाख भारतीय नागरिकों ने देश की नागरिकता त्याग दी है । इससे भी जो ज्यादा चिंताजनक आंकड़ा है वह यह कि अमेरिका में शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या में 855 प्रतिशत  की वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में शरण मांगने वाले दो तरह से शरण के लिए आवेदन करते हैं एक तो वह जिन्हें एफर्मेटिव कहा जाता है और दूसरा वे जिन्हें डिफेंसिव कहा जाता है। डिफेंसिव यानि वे जो सुरक्षा की दृष्टि से  अमेरिका में शरण की गुहार लगाते हैं । अमेरिका की होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट की  इमीग्रेंट एनुअल फ्लो रिपोर्ट बताती है कि 2023 में अमेरिका में शरण चाहने वाले आवेदकों में 41हजार 330 भारतीय शामिल थे जो कि 2022 की तुलना में 855 फ़ीसदी ज़्यादा हैं और भी आश्चर्यजनक बात यह है

कि इसमें से आधे आवेदक गुजरात राज्य के हैं। जहां 2014 के बाद समृद्धि का विस्फोट हुआ है। समझना जरूरी है कि  उन भारतीयों ने क्यों कर सुरक्षा एसाईलम के लिये आवेदन किया है? वर्ष 2022 में शरणार्थी के रूप में आवेदन करने वाले 14 हजार 570 भारतीयों में से 9200 ने डिफेंसिव एसाईलम यानि सुरक्षा शरण का आवेदन किया है।भारत की अर्थव्यवस्था के उछालें भरने के दावे ,आम नागरिक के लिये सुरक्षा  की गारंटी और बेहतर अवसरों के प्रचार के बीच भी अगर 41हजार 330 नागरिक अमरीका में शरण मांग रहे हैं और उनमें भी 50% से अधिक सुरक्षा कारणों से तो यह पड़ताल का विषय होना ही चाहिए ? इन सुरक्षा शरण चाहने वाले भारतीयों को देश में क्या खतरा लग सकता है? उनमें से आधे उस राज्य से क्यों हैं जिसमें सर्वाधिक विकास के दावे किये जा रहे हैं?


एलपीआर रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में लगभग 28 लाख भारत में जन्मना नागरिक रहते हैं जो मेक्सिको में पैदा हुए अमरीकी नागरिकों के बाद सर्वाधिक संख्या है।अकेले 2022 में ही 1लाख 28 हजार 878 मेक्सीकन,65 हजार960 भारतीय,53 हजार 413 फिलिपाईन नागरिकों को  अमरीकी नागरिकता के लिये न्यूट्रिलाईज किया गया है।ऐसा माना जाता है कि सामान्यतःआर्थिक ,शैक्षणिक अवसरों और राजनैतिक स्थिरता को देखते हुए सुरक्षित भविष्य की तलाश में लोग अपनी नागरिकता त्याग करने का कठिन फैसला लेते हैं। अमरीका में रहने वाले 28 लाख 31 हजार 330 भारतीयों में 42 फीसदी भारतीय , अमरीकन नागरिकता के लिये अपात्र हैं। इसके बावजूद  भारतीय ब्रेन इतनी बड़ी तादाद में जोखिम क्यों उठा रहा है?


मोटा-मोटी सभी देशों से आर्थिक प्रवासी अवसरों की तलाश करते हैं जिसमें आऊटफ्लो और इनफ्लो की मात्रा देश की वास्तविक परिस्थितियों का बखान कर देती है।जिन 10 वर्षों में 15 लाख भारतीयों ने नागरिकता छोड़ने का आवेदन किया है उसी दौरान विगत पांच सालों में मात्र 5 हजार 220 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है उनमें 4 हजार 552 यानि 87 फीसदी  पाकिस्तानी, 8 फीसदी अफगानिस्तानी और 2 फीसदी बंगलादेशी हैं। इसका अर्थ है कि भारतीय नागरिकता त्यागने वालों के मुकाबले भारतीय नागरिकता चाहने वालों की संख्या 1 प्रतिशत भी नहीं है।लंदन की हेनली एंड पार्टनर की एक रिपोर्ट के अनुसार  लगभग 7 हजार सुपर रिच धनाढ्य भारत की नागरिकता छोड़ सकते हैं।सरकार ने राज्यसभा में बताया है कि वह इन लोगों की व्यावसायिक पृष्ठभूमि के बारे में अनभिज्ञ है।भारतीय टेक्स कानूनों,स्वास्थ्य सुविधाओं और इनवेस्टमेंट माईग्रेशन नागरिकता त्यागने की नयी वजह के रूप में सामने आ रही है। मेहुल चौकसी जैसे लोग इसी इवेस्टमेंट माईग्रेशन के नाम पर भाग खड़े हुए हैं।


नागरिकता छोड़ने का एक कारण यह भी है कि कई देश दोहरी नागरिकता स्वीकार नहीं करते,दूसरा बड़ा कारण अन्य देशों में निर्वाध आवाजाही के लिये भारतीय पासपोर्ट पर केवल 60 देशों में वीजा फ्री या आगमन पर वीजा सुविधा उपलब्ध है जबकि अमरीकन पासपोर्ट पर 186 देशों में यह सुविधा प्राप्त है। जन्म से भारतीय विदेशी नागरिकों को भारत में ओसीआई(ओवरसीज सिटीजन आफ इंडिया के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है) माना जाता है। गृह मंत्रालय ने सदन को जानकारी दी है कि आज ओसीआई की संख्या 1लाख 90 हजार है जो 2005 में मात्र 300 हुआ करती थी।इसका अर्थ है कि लगभग 8 फीसदी नागरिकता त्यागने वाले भारतीय ही ओसीआई के रूप में देश से जुड़े रहना चाहते हैं। अवसरों की तलाश और बेहतर जीवन की महत्वाकांक्षा मानव स्वभाव है किंतु जब अवसर देश से बड़ा बनने लगे तो मानिये चिंता का समय आ गया है।