राम नाम की भक्ति का अनोखा उदाहरण है रामनामी समुदाय | Ramnami Community Of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ की इस ट्राइब के तन मन में बसते हैं श्रीराम | Kaun Hain Ramnami Samuday

 

Ramnami Tribe In Hindi

What Is The Meaning Of Ramnamis?

रामनामी समाज छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के चांदली गांव का एक समुदाय जिसे रामनामी समाज के रूप में जाना जाता है राम की भक्ति का अनूठा उदाहरण पेश करते हैं। इस समुदाय की पहचान इसके अनोखे टैटू के कारण है। इस समुदाय में रहने वाले लोग अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाते हैं। इस समुदाय के सदस्यों के शरीर पर सर से लेकर पैर तक राम का नाम गुदा हुआ रहता है। ये तो आपने सुना ही होगा कि राम से बड़ा उनका नाम होता है और राम कण-कण में हैं, पेड़-पौधे और जीव में। राम नाम की भक्ती का अनूठा उदाहरण ये रामनामी समुदाय है।

 

कब हुई रामनामी संप्रदाय शुरुआत

मध्य भारत में निर्गुण भक्ति के तीन बड़े आंदोलन माने जाते हैं जिसका केंद्र बना छत्तीसगढ़। निर्गुण भक्ति आंदोलन में समाज के ज्यादातर वो लोग जुड़े जिन्हे अछूत माना जाता है और समाज में इन लोगों के साथ बहुत ही ज्यादा भेदभाव होता था। ये वो समय था जब समाज के एक बड़े हिस्से को अलग-थलग रहना पड़ता था। इन्हे सार्वजनिक कुओं के पानी के इस्तेमाल, साथ बैठने, खाने आदि पर प्रतिबंध था, यहां तक इनका मंदिर में प्रवेश तक मना था। 

छत्तीसगढ़ के दामाखेड़ा में कबीरपंथियों का विशाल आश्रम स्थित है। छत्तीसगढ़ में कबीरपंथ को मानने वालों की संख्या लाखों में है। इनमे ज्यादातर निचले तबके से आते हैं। रामनामी संप्रदाय की यह शुरुआत 1870 के आसपास हुई। इस समुदाय के लोग अपने पूरे शरीर को राम के नाम को समर्पित करते हैं। ये लोग राम के नाम को अपने शरीर पर गुदवाते हैं और राम नाम लिखे वस्त्र पहनते हैं। ये लोग रामचरितमानस और रामायण की ही पूजा करते हैं। इस समाज के लोग न ही किसी मंदिर जाते हैं और न ही किसी मूर्ति  करते हैं। जिस कारण इन्हे रामनामी समाज कहा जाता है। अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर ये लोग ऐसा करते क्यों हैं। 

अपने शरीर को ही बना लिया मंदिर 

ऐसा कहा जाता है कि कबीरपंथ और सतनामी समाज की स्थपना के आसपास ही रामनामी समाज का भी जन्म हुआ जब परशुराम नाम के एक युवक को अछूत कहकर मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। जिसके बाद उस युवा ने भक्ति का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने माथे पर ही राम नाम गुदवा लिया और रामनामी समुदाय की शुरुआत की। हालांकि इस समाज के उदय को लेकर कई तरह की अलग विचारधाएं भी हैं। कुछ का कहना है कि परशुराम ने अपने पिता के प्रभाव में मानस का पाठ शुरू किया। लेकिन 30 की उम्र में उसे किसी तरह का चर्म रोग हुआ जोकि रामानंदी साधु रामदेव के संपर्क में आने  से ठीक हो गया। कहा जाता है कि उसकी छाती पर स्वतः राम-राम उभर आया जिसके बाद से उन्होंने राम-राम के नाम के जाप को प्रचारित-प्रसारित करना शुरू किया और इसका प्रचार-प्रसार करना शुरू किया। 

क्या है रामनामी समुदाय 

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार रामनामी समुदाय के गुलाराम बताते हैं कि भारत में ऊंच-नीच, छूत-अछूत का पुराना इतिहास रहा है। रामनामी समुदाय की शुरुआत के बाद उन्हें राम का नाम भजने का अधिकार मिला। रामायण के कारण हमारे पूर्वजों ने पढ़ना सीखा क्योंकि उस समय जातिप्रथा के अत्यधिक प्रभाव के कारण स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता था। उन्होंने बताया कि रामनामी किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है।  समुदाय का मानना है कि शरीर सबसे बड़ा मंदिर है जिसमें राम नाम का वास है। इस समुदाय के लोगों का मानना है कि राम का नाम निर्गुण होता है और सभी का सार राम नाम ही है। इसलिए इस समुदाय के लोग राम नाम का भजन और गान करते हैं। 

बताया जाता है कि इस समुदाय में शव को जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया जाता है ताकि राम का नाम जले नहीं। हालांकि इस समुदाय में भी समय के साथ काफी परिवर्तन आया है। अब लोग पलायन करने लगे हैं, खाने-कमाने के लिए बाहर जाने लगे। ऐसे में अब वो पूरे शरीर में राम नाम गुदवाना पसंद नहीं करते। हालांकि वो भजन आदि में शामिल होते हैं। इस समुदाय में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता, यहां सभी को एक समान माना जाता है।