अंध विश्वास की चरण रज 

Foot dust of blind faith
 

(पंकज शर्मा तरुण - विभूति फीचर्स) धर्म को धारण करना प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक दायित्व है। धर्म हमें विरासत में मिलता है, जिसका हम बड़ी श्रद्धा से पालन करते हैं। पुराण कहते हैं कि जो मनुष्य भगवान को पाना चाहता है, उसे अपना गुरु बनाना आवश्यक है और यह सत्य भी है।

गुरु के बिना ज्ञान नहीं हो सकता जैसे बिन माता के शिशु सांसारिक रीति नीति से अनभिज्ञ रहता है, चाहे रिश्ते नाते हों,चाहे भाषा, सब का ज्ञान माता ही देती है और इसीलिए माता को शिशु की प्रथम गुरु माना जाता है। वैज्ञानिक तो यह भी कहते हैं कि छह वर्ष तक बालक जो सीखता है वह उसके पूरे जीवन में काम आता है और यह ज्ञान- अज्ञान उसके मृत्यु पर्यन्त साथ रहता है।यही धर्म के साथ भी होता है।

कुछ राजनैतिक और कुछ साधु संतों की मन मर्जी से। जब से टी. वी चैनलों की बाढ़ आई है

आजकल सनातन धर्म की शीतल बयार पूरे आर्यावर्त में तेज गति से बह रही है।कुछ राजनैतिक और कुछ साधु संतों की मन मर्जी से। जब से टी. वी चैनलों की बाढ़ आई है, तब से ही अचानक तथाकथित कथावाचकों का भी इस बाढ़ के साथ आगमन हुआ है।चैनलों की संख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। जहां भागवत कथा- शिव पुराण आदि अन्य पुराणों के नाम पर भ्रम अंध विश्वास का विष वमन किया जा रहा है।सभी संत यह कर रहे हैं! यह कहना सर्वथा अनुचित और न्याय संगत नहीं होगा। अनेकों संत अपनी वाणी से अमृत वर्षा करते हैं, जो मर्यादित हो कर कथा वाचन के साथ नैतिक शिक्षा भी देते हैं।

भोली-भाली  जनता को भ्रमित करते हुए इन टी वी चैनल्स पर प्रतिदिन मिल जाएंगे।

समाज को नई दिशा देने का पुनीत कार्य करते हैं। लेकिन कुछ संत जो अपनी कुत्सित मानसिकता के चलते कहें या रातों रात प्रसिद्धि पाने के जुगत में, अपनी कथाओं में अंधविश्वास फैलाते हैं! टोने- टोटके बता कर भोली-भाली  जनता को भ्रमित करते हुए इन टी वी चैनल्स पर प्रतिदिन मिल जाएंगे।

चूंकि इनकी संख्या लाखों  में है, तो यह चैनल भी प्रतिद्वंद्वी से अधिक अपनी ख्याति बढ़ाने के लिए ऐसे संतों के सनसनीखेज। साक्षात्कार प्रसारित करते हैं , जिससे उनको तो लाभ होता ही है तो कथित टोटके बाज संत भी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। जो गौ सेवा और वृद्ध माताओं की सेवा या आश्रम बनाने, जमीन खरीदने के नाम पर अरबों की संपत्ति इन अंध भक्तों से ले लेते हैं, जिनमें अपनी काली कमाई को सफेद करने का गोरख धंधा भी सम्मिलित है।राजनेता हो या तस्कर या प्रशासनिक अधिकारी सभी इन आश्रमों में अपनी काली कमाई छुपाते पाए गए हैं।

अंधविश्वास फैलाने का सबसे बड़ा उदाहरण पिछले दिनों हाथरस में देखा गया

अंधविश्वास फैलाने का सबसे बड़ा उदाहरण पिछले दिनों हाथरस में देखा गया जहां प्रशासन भी अपनी लापरवाही से असफल सिद्ध हुआ। परिणाम पूरी दुनिया ने देखा कि एक सौ इक्कीस लोग भगदड़ में असमय ही काल के गाल में समा गए और सैंकड़ों भक्त घायल हो गए। आश्चर्य की बात है कि इस कथित बाबा ने अपने मुख से यह कहा कि मेरी चरण रज ले कर जाना जिसको लगा देने से सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाएंगी। जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं, वे संतान पा जाएंगे जो दरिद्र हैं, वे धनवान हो जाएंगे!और इसी चरण रज को पाने के प्रयास में भगदड़ मची।

हाथरस के हादसे से देश के कितने प्रशासनिक अधिकारी सबक लेते हैं

ऐसा नहीं कि यह पहली बार हुआ है! ऐसी घटनाएं अनेक बार धर्म स्थलों पर पूर्व में भी घटित हो चुकी हैं। जिनमें बड़ी संख्या में निर्दोष भक्तों ने जान गंवा दी थी। मगर शासन- प्रशासन इन कथित ड्रामे बाजों पर अंकुश लगाने में असफल ही रहा है। इन सत्संगों की, समागमों की अनुमति देने से पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों को अपने व्यस्त शेड्यूल को थोड़ा शिथिल कर अपने अहंकार का त्याग कर आयोजन स्थल का स्वयं निरीक्षण करना चाहिए।मातहतों के भरोसे नहीं रहना चाहिए! तभी ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है।

हाथरस के हादसे से देश के कितने प्रशासनिक अधिकारी सबक लेते हैं? यह तो समय ही बताएगा। ऐसे आयोजनों का सबसे ज्यादा लाभ राजनैतिक नेता उठाते हैं! जिनको धार्मिक आस्था से कोई सरोकार नहीं होता! बल्कि बाबा के अंध भक्तों के वोट पाने का मुख्य उद्देश्य होता है!अगर ऐसा नहीं होता तो उत्तरप्रदेश के किसी भी दलीय नेता ने इस विभत्स घटना के बारे में किसी भी प्रकार की भत्र्सना नहीं की।कथित बाबा आज भी अपनी वैभव शाली जिंदगी जी रहा है भगवान बनकर।