story in hindi : सुहाग
यहां की गलियों, बाजारों की अपनी अलग ही रौनक है। लजीज व्यंजन का स्वाद ही निराला है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की भव्यता देखने लायक होती है। यहां पर कोई न कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम चलते ही रहते हैं। हर भारतीय की तमन्ना होती है, एक बार दिल्ली जरूर देखे।
वो ही दिल्ली जिसे लाखों लोगों की तरह मैं भी दिलोजान से प्यार करता था। अब लोगों के रहने लायक नहीं रही थी।यह बात कोई ओर नहीं अब तो हमारे देश की सर्वोच्च अदालत भी कह चुकी थी।सच में दिल्ली में प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया था कि आये दिन मेरी तबियत खराब रहने लगी। डाक्टरों के चक्कर लगाते-लगाते और बार-बार अस्पताल में भर्ती होते-होते मैं भी परेशान हो चुका था। एक जानकार डाक्टर ने मुझे सलाह दी थी, अगर सही रहना है तो दिल्ली छोड़कर कहीं ओर चले जाओ। मुझे भी डाक्टर की बात सही लगी थी। जिस दिल्ली से मैं बहुत प्यार करता था। जिसे मैं छोडऩा नहीं चाहता था। उस दिल्ली के साथ व जिंदा रहने के लिए मुझे छोड़कर जाना पड़ा था।
और मैं दिल्ली से दूर नया नगर में आ गया था। यह एक नया शहर विकसित हो रहा था। यहां पर बंगले थे, फार्म हाऊस थे, फ्लैट थे। मकान थे। पार्क भी थे और खुली चौड़ी सड़कें। मुझे एक मकान खाली मिल गया था। इस मकान का मालिक अमेरिका में रहता था। मेरे आसपास के मकान खाली पड़े थे। नया नगर में ठीक ठाक बस्ती थी, लेकिन अनाम सी खामोशी छायी रहती। चारों तरफ सन्नाटा सा पसरा नजर आता। मैं सुबह-शाम घूमने निकलता। यहां पर घूमने में आनंद आता था। स्वच्छ ताजी हवा और खुली सड़कें। घरों के दरवाजे-खिड़कियां बंद रहते। अगर किसी घर की खिड़की खुली भी होती, तो खिड़की पर कोई नजर नहीं आता था। पार्क था लेकिन इसमें कोई नजर नहीं आता था। न बूढ़े, न जवान, न बच्चे। बच्चे भी मैंने कभी पार्क में खेलते हुए नहीं देखे थे।
सड़क पर भी कम ही लोग नजर आते थे। अगर कोई नजर आ भी जाता तो वह इतनी जल्दी में होता कि उसके पास बात करने की फुर्सत ही नहीं होती थी।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि नये नगर में सन्नाटे की वजह क्या है। क्यों यहां के लोग घरों में बंद रहते हैं। बच्चों को भी बाहर नहीं निकलने देते। जो लोग बाहर निकलते हैं, वो जल्दी में होते हैं, और किसी से बात करना पसंद नहीं करते।मैं यहां छाये सन्नाटे और खामोशी की वजह जानना चाहता था। पर कैसे? घर के बाहर कोई नजर ही नहीं आता था। जिससे बात की जा सके। और सड़क से गुजरता हुआ कोई नजर आ जाता तो वह मेरी बात सुनने के लिए रुकता ही नहीं था।और मैं सोचता रहता आखिर कैसे इस खामोशी का राज ढूंढा जाये? कहते हैं, जहां चाह है, वहां राह है।रोज मैं देखता हुआ जाता कि शायद कोई नजर आ जाये, जिससे मैं बात कर सकूं।और एक दिन एक मकान के गेट पर एक औरत, मुझे नजर आयी। मैं तेजी से चलकर उसके पास पहुंच जाना चाहता था। मैं जैसे ही उसके नजदीक पहुंचा। वह मुझे देखते ही चल पड़ी। 'रुकिये जरा'लेकिन मेरी बात को अनसुना करके वह आगे बढ़ गयी। 'प्लीज रुक जाइये' मेरे कई बार अनुनय करने पर आखिर उसके कदम ठहर गये थे। और मेरे अनुरोध पर वह पल्टी और कुछ कदम आगे चली आयी थी।'मेरा नाम......अपना परिचय देने के बाद में बोला, 'क्या मैं एक प्रश्न आपसे पूछ सकता हूं' वह मुंह से नहीं बोली लेकिन आंखों के इशारे से उसने प्रश्न पूछने की इजाजत दे दी। '
उसकी मौन स्वीकृति मिलने पर मैं बोला, 'यहां पर इतना सन्नाटा क्यों है?''कैसा सन्नाटा?'वह बोली थी।'यहां अच्छी खासी बस्ती है। लेकिन घर के बाहर कोई नजर नहीं आता। कभी कोई सड़क पर नजर आ भी जाये तो वह कन्नी काटकर निकल जाता है। पार्क हर समय सूना पड़ा रहता है। बच्चे भी घर के बाहर नहीं आते। हर समय अनाम सी खामोशी छायी रहती है।''यहां पर पहले ऐसा नहीं था।' 'तो कैसा था?'
'पहले नया नगर हर समय गुलजार रहता था। लोग एक दूसरे के घर आते-जाते थे। सुबह शाम लोग पार्क में टहलते थे। बच्चे दिन भर पार्क में खेलते रहते थे। कोई न कोई धार्मिक सामाजिक आयोजन चलता रहता था। सड़क पर रात दिन आवाजाही चलती रहती थी।'
'फिर अब ऐसा क्या हो गया?' उस औरत की बात सुनकर मैं बोला था।
'कोरोना सिर्फ नया नगर में नहीं हुआ था। पूरे देश में ही नहीं पूरे विश्व में इस बीमारी ने अपने पैर फैलाये थे।''आप सही कह रहे हैं। कोरोना महामारी विश्वव्यापी थी। कोई देश इससे अछूता नहीं रहा।' मेरी बात सुनकर वह बोली, 'लेकिन नया नगर में कोरोना महामारी कहर बनकर टूटी थी।'कैसे?' मैं उस औरत की तरफ देखने लगा था।कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में नया नगर ऐसा आया कि कोई घर ऐसा नहीं नहीं बचा जहां मौत न हुयी हो। कोरोना ने बूढ़े-जवान-बच्चे-औरत-आदमी में कोई भेद नहीं किया। ऐसा भयानक मंजर मैंने नहीं देखा। जिस घर से भी खबर आती थी सिर्फ मौत की ही आती थी। कोरोना के डर से लोग एक दूसरे से इतने दूर हो गये कि अर्थी उठाने के लिए भी चार आदमी नहीं मिलते थे। सब कुछ घरवालों को ही करना पड़ता था।' वह औरत कोरोना की भयावहता बताते हुए बोली, 'जो लोग हर समय एक दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते थे, वे अजनबी बन गये। ऐसे मानो एक दूसरे को जानते ही नहीं।'
'अब तो कोरोना नहीं है' 'सच है अब भले ही कोरोना नहीं है लेकिन लोग जो एक दूसरे से दूर हुए हैं, आज भी दूरी बनाये हुए हैं।' 'आपने कहा नया नगर में कोरोना के प्रकोप से कोई नहीं बचा। हर घर में यहां मौतें हुयी हैं।' 'हां, वह बोली,' मौत ने किसी घर को नहीं छोड़ा'आपका कौन आपको छोड़कर चला गया?' मेरी बात सुनते ही उसकी आंखें भर आयी और चेहरा मुरझा गया। मैंने देखा।उसकी मांग सूनी थी और चेहरा सपाट। कलाई खाली। मैं समझ गया। कोरोना ने उसका सुहाग उजाड़ दिया था।