अप्लाज़ अदब ने 1990 के दशक के दुबई मुशायरे की शाश्वत परंपरा को पुनर्जीवित किया
 

सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था अप्लाज़ अदब ने शरफ़ एक्सचेंज और एचबीएल के सहयोग से दुबई में मुशायरे की रोशन परंपरा को पुनर्जीवित किया और एक  आलमी मुशायरा का आयोजन करके इसे ऐतिहासिक बना दिया
 
सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था अप्लाज़ अदब ने शरफ़ एक्सचेंज और एचबीएल के सहयोग से दुबई में मुशायरे की रोशन परंपरा को पुनर्जीवित किया और एक  आलमी मुशायरा का आयोजन करके इसे ऐतिहासिक बना दिया
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। दुबई के पीएडी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मुशायरा कई मायनों में मानक और गरिमामय साबित हुआ। अप्लाज़ अदब द्वारा आयोजित इस महफ़िल ए मुशायरा में दुबई के अलावा देश-विदेश के प्रमुख शायरों ने हिस्सा लिया। इस अंतरराष्ट्रीय मुशायरे की अध्यक्षता का दायित्व महान शायर अनवर शऊर ने निभाया, जबकि निजामत का दायित्व मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने अपने खास अंदाज में निभाया, इसमें  फ़रहत अब्बास शाह, मंज़र भोपली तारिक कमर, इक़बाल अशहर, राजेश रेड्डी, नदीम भाभा, मोहशर अफरीदी, पॉपुलर मेरठी, फौजिया रबाब और जहीर मुश्ताक राणा शामिल थे. जिन्होंने अपनी शायरी  से दर्शकों का मन मोह लिया.


मुशायरे में शायरों की हौसला अफजाई के लिए एचबीएल के रणनीति प्रमुख श्री खाकान मुहम्मद खान अपनी टीम के साथ उपस्थित थे। शराफ़  एक्सचेंज के सीईओ श्री इमादुल मलिक ने दर्शकों को संबोधित करते हुए इस मुशायरे और अन्य साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से सांस्कृतिक और साहित्यिक संबंधों को मजबूत करने के लिए अप्पालज़ादाब के प्रयासों पर प्रकाश डाला, उन्होंने "गंगा-जिमनी सभ्यता" के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये मुशायरा उपमहाद्वीप की विभिन्न संस्कृतियों के सुंदर संयोजन का प्रतिनिधि है।

इस बावकार अदबी शाम  पर हमें इसलिए गर्व है कि ये तमाम दुनिया के इंसानों को मोहब्बत के धागे में प्रोती है , मुशायरे से पहले देवनागरी लिपि में फरहत अब्बास शाह की पुस्तक “ शाम के बाद “ का विमोचन भी किया गया, इस पुस्तक को हिंदी में प्रकाशित करने का उद्देश्य उर्दू  हिन्दी के बीच की दूरी को कम करना है , वे लोग जो उर्दू और उर्दू शायरी से प्यार करते हैं लेकिन उर्दू लिपि से परिचित नहीं हैं, उनके बहुमूल्य एहसास  के सम्मान  में ये किताब हिन्दी में छापी गयी है ।  इस अवसर पर प्रसिद्ध शायर और लेखक एजाज़ शाहीन को उनकी  ग़ैर मामूली साहित्यिक सेवाओं के। लिए "मोहसिन-ए-उर्दू" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इस कार्यक्रम में युवा और वृद्ध सभी उम्र के 1,000 से अधिक लोग उपस्थित थे। इसमें बड़ी संख्या में काव्य को  पसंद करने वाली महिलाएं भी शामिल थीं, यह मुशायरा  रात 9 बजे शुरू हुआ और पांच घंटे तक चला। श्रोताओं का उत्साह एक पल के लिए भी कम नहीं हुआ और वे पूरी रात सुंदर और सार्थक कविताओं पर दाद देते और तालियाँ बजाते रहे।प्रोग्राम के आरंभ में सुश्री तरन्नुम अहमद ने समारोह के संचालन का दायित्व बहुत ही सुन्दर ढंग से निभाया तथा उनकी शैलीगत प्रस्तुति ने लोगों को बहुत प्रभावित किया कहा जा सकता है कि  तरन्नुम अहमद ने अपने  अदबी अंदाज से मुशायरे में चार चांद लगा दिए।

फरहत अब्बास शाह, मंसूर उस्मानी , अनवर शऊर और  डॉ. तारिक क़मर के अनुसार, इस अद्भुत और साहित्यिक कार्यक्रम ने न केवल इतिहास रचा बल्कि यह भी साबित कर दिया कि जब तक इमाद उल मलिक जैसे लोग कार्यक्रम आयोजित करते रहेंगे, उर्दू शायरी का मैयार  बरकरार रहेगा  और उर्दू ज़बान  ओ तहज़ीब का भविष्य  भी सुरक्षित रहेगा.

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