Arvind Kejriwal Resignation Unlock : किस मज़बूरी में केजरवाल दे रहे है इस्तीफा
और सबसे हैरानी की बात पता है क्या है. इस्तीफा देने के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जमानत और उस पर जश्न के चार दिन बाद का समय चुना है. उन्होंने घोषणा की है कि वो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे और जब तक दिल्ली के वोटर्स चुनावी जनादेश के ज़रिये उन्हें ईमानदार नहीं मान लेते, तब तक वो दोबारा पद नहीं संभालेंगे. वो चाहते हैं कि महाराष्ट्र और झारखंड के साथ दिल्ली में भी नवंबर में ही चुनाव कराए जाएं. और तब तक आम आदमी पार्टी का ही कोई नेता मुख्यमंत्री का पद संभालेगा. ज़ाहिर है, केजरीवाल के इस कदम से कई सारे सवाल सियासी गलियारों में गूंजने लगे हैं. और उनमें सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि इससे आम आदमी पार्टी, दिल्ली, दिल्ली के लोग, विपक्ष, और देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? चलिए आपके इसी सवाल का जवाब अपनी इस रिपोर्ट में हम जानने की कोशिश करते हैं. और ये जानने के लिए हमें पहले ये समझना पड़ेगा कि केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का ख़्याल 177 दिन जेल में गुजारने के बाद ही क्यों आया? क्योंकि उनके विरोधी तो इस्तीफे की मांग गिरफ्तारी के समय से ही करते आ रहे हैं. कुछ लोग तो इसके लिए अदालत तक गए, वो बात अलग है कि वहां उनकी दाल गली नहीं और मुंह की खाने के बाद उन्हें वापस वहां से लौटना पड़ा.
खैर, अरविंद केजरीवाल एक पढ़े-लिखे नेता हैं, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का फैसला उन्होंने परिस्थितियों, चुनौतियों और संभावनाओं को सोच विचार कर ही लिया होगा. वो ये भी जानते हैं कि उन्हें ज़मानत तो मिल गई है, लेकिन मुकदमा अभी लंबा चलेगा... दूसरी बात ये है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के बावजूद भी दिल्ली में लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी का सभी 7 सीटें बताता है कि केजरीवाल को दिल्ली के लोगों की तरफ से कोई खास सिंपैथी नहीं मिली है... जिसका सीधा मतलब ये है कि अभी उनको और उनकी पार्टी के सभी लोगों को और ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत है. और जब वो मुख्यमंत्री का पद छोड़कर संगठन को मजबूत करने के लिए काम करेंगे तो वो पार्टी के लिए ज़्यादा बेहतर होगा. लोकसभा चुनाव के नतीजे आम आदमी पार्टी की सीमाएं उजागर तो कर रहे हैं, लेकिन हमें ये बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए कि पंजाब में प्रचंड बहुमत और गुजरात और गोवा जैसे स्टेट्स में एक अच्छा खासा जनाधार पाने के बाद वो गठन के 10 साल के अंदर ही अपनी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा दिला चुके हैं.
बहरहाल, पिछले चुनावी नतीजे से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी, दोनों ने सबक सीखा है. कभी कांग्रेस और तमाम दलों को करप्ट बताने वाली आम आदमी पार्टी को समझ आ गया है कि भाजपा की विरोधी दलों को साथ लिए बना राष्ट्रीय राजनीति करना नामुमकिन है, तो समूचे विपक्ष को भी समझ आ चुका है कि दिल्ली और पंजाब में प्रचंड बहुमत पाने वाले दल को इग्नोर करना बिल्कुल भी समझदारी नहीं है. पिछले साल इंडिया एलाइंस के बैनर तले एकजुट होने का ही नतीजा रहा कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी को अब बहुमत के लिए तेलुगू देशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी जैसे दलों का सहारा लेना पड़ रहा है.
इसी बीच विपक्षी नेताओं, खासकर गैर भाजपा सरकार वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ ईडी और सीबीआई की कार्रवाई से विपक्ष की मुश्किलें भी बढ़ीं. कथित शराब नीति घोटालें में पहले डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, तो फिर सांसद संजय सिंह और फिर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हुए. बेशक तीनों अब ज़मानत पर बाहर आ चुके हैं, पर केजरीवाल की छवि पर भाजपा को सवालिया निशान लगाने का मौका मिल गया है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी चुनावी वायदों को पूरा किया है, पर उसकी सबसे बड़ी ताकत भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई है. ऐसे में, शराब घोटाले के आरोपों के दाग के साथ विधानसभा चुनाव में जाने का जोखिम केजरीवाल जैसे सरीखे सियासतदान भला क्यों उठाएंगे.
ये एक नॉर्मल सी बात है कि लोकतंत्र के नाम पर सियासत करने वाले नेता अदालतों की आड़ लेते रहे हैं. लिहाज़ा अब कोई हैरानी नहीं है कि केजरीवाल ने दिल्ली के वोटरों से ईमानदारी का प्रमाण पत्र मांगने का दाम चलकर अपने विरोधियों को, खासकर भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है. जेल जाने के बावजूद भी उनकी पापुलैरिटी का ग्राफ बढ़ा ही है. इनफैक्ट सिर्फ दिल्ली ही क्या, पूरे देश में अभी वो सबसे पॉपुलर लीडर बन चुके हैं. इस बात से शायद ही कोई इनकार करेगा.
केजरीवाल की सीटें घटने की आशंका ज़रूर है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की जीत की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता.
ध्यान रहे कि भारतीय राजनीतिक इतिहास में ये देखा गया है कि जो कोई अपना राजनीतिक पद त्यागता है, पब्लिक सेंटीमेंट्स उसके साथ जुड़ जाते हैं. देश के लगभग हर राज्य में ऐसे नेता ज़रूर रहे हैं, जिन्होंने पद छोड़कर अपने राजनीतिक कद को बढ़ाया है... जेपी, बाल ठाकरे से लेकर सोनिया गांधी तक.अब केजरीवाल भी रोज़मर्रा के सरकारी कामकाज से दूर रहकर अपने राजनीतिक कद को बढ़ाने पर ज़ोर देंगे. किसी भी राज्य में अपनी या विपक्ष की जीत को नैतिक विजय बताते हुए अटैकिंग केजरीवाल तेरी हुई आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में गति देना चाहेंगे. हालांकि ये उनके लिए आसान नहीं रहने वाला है.
आपको बता दें कि बातचीत के बावजूद भी कांग्रेस ने हरियाणा में आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं किया है. और अब केजरीवाल के नए तेवर के बाद क्या कांग्रेस पुनर्विचार करेगी, क्योंकि उसे वैसा ही “रिटर्न गिफ्ट' दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिलेगा?
महाराष्ट्र और झारखंड में भी आम आदमी पार्टी मोलभाव करेगी, क्योंकि केजरीवाल विपक्ष के लिए स्टार प्रचारक हो सकते हैं, पर उससे पहले केजरीवाल को कुछ असहज कसौटियों से गुज़रना होगा... मसलन, नया मुख्यमंत्री कौन होगा? उनके सबसे भरोसेमंद नेता मनीष सिसोदिया भी कह रहे हैं कि जनादेश के बाद वो भी कोई पद लेंगे. तो अब ऐसे में, केजरीवाल के सामने दो उदाहरण हैं और उनके जोखिम भी. चारा घोटाले में जेल जाने पर बिहार में लालू यादव ने पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवाया था, पर उसके बाद से उनकी पार्टी खुद जनादेश नहीं पा सकी है... इसके अलावा मनी लॉन्ड्रिंग में जेल जाने पर हेमंत सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ आदिवासी नेता चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनवाया, पर जमानत मिलने पर पद वापस ले लिया, तो चंपाई बगावत कर भाजपाई हो गए... इधर, केजरीवाल के जेल जाने पर उनकी पत्नी सुनीता सक्रिय नजर आईं, पर राजनीतिक समझ कहती है कि चंद महीने के लिए पत्नी को मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम केजरीवाल शायद ही उठाएंगे... वो रणनीति के तहत किसी महिला या दलित पर दांव लगा सकते हैं... यहां वो ये भी याद रखेंगे कि नए जनादेश के बावजूद उन पर सर्वोच्च न्यायालय की जमानत संबंधी शर्ते भी लागू रहेंगी. सशर्त पद संभालने के बजाय उन्होंने अगर खुली राजनीति का रास्ता चुन लिया है, तो तय मानिए, आगामी चुनावी लड़ाइयां रोचक हो जाएंगी... और आम आदमी पार्टी शायद कांग्रेस से भी ज्यादा भाजपा को टक्कर दे पाएगी. और इस बीच भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया जाएगा