नियम-कायदों का दुष्चक्र और प्रदूषित नदियां बनीं गुजरात के मछुआरों का सिरदर्द

नियम-कायदों का दुष्चक्र और प्रदूषित नदियां बनीं गुजरात के मछुआरों का सिरदर्द
नियम-कायदों का दुष्चक्र और प्रदूषित नदियां बनीं गुजरात के मछुआरों का सिरदर्द

नयी दिल्ली , 20 जून (आईएएनएस)। मछली के उत्पादन में भले ही देश में गुजरात का स्थान तीसरा है लेकिन प्रदूषित नदियां और नियम-कायदों का दुष्चक्र उनके लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य समस्य प्रदूषित नदियां हैं। औद्योगिक कचरा बिना किसी उपचार के नदियों में गिरता है, जिससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और मछलियों का खाना भी प्रभावित होता है। इसके कारण मछलियों की संख्या घटती है और जलगुणवत्ता भी कम हो जाती है।

मछुआरों की दूसरी समस्या मछली पकड़ने के जाल के आकार पर लगाई गई सीमा है। इससे छोटे मछुआरों को बहुत नुकसान होता है। गुजरात फिशरी एक्ट, 2003 के मुताबिक स्क्वायर मेश कॉड का आकार 40 एमएम होना चाहिए।

साल 2019-20 में समुद्री मछली का उत्पादन 37.27 लाख टन था, जिसमें गुजरात का योगदान 7.01 लाख टन था। हालांकि, अन्त: स्थलीय मछली का उत्पादन इस अवधि में 104.37 लाख टन रहा था, जिसमें गुजरात का योगदान महज 1.58 लाख टन था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि हार्बर पर बर्थ की कमी के कारण कोई भी नया लाइसेंस जारी नहीं किया गया है और इस समस्या के निदान के लिए कुछ किया भी नहीं जा रहा है।

रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड औद्योगिक कचरे के निस्तारण के मानक को सख्ती से लागू करे, मछली पकड़ने के जाल के आकार पर विचार किया जाए और लाइसेंस की प्रक्रिया दुरुस्त की जाए।

--आईएएनएस

एकेएस/एएनएम

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