भारत को 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा निवेश की जरूरत होगी: सीईईडब्ल्यू-सीईएफ

नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)। भारत को 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को पाने के लिए कुल 10.1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। इससे भारत के बिजली, औद्योगिक और परिवहन क्षेत्रों से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलेगी। यह जानकारी बुधवार को जारी किए गए सीईईडब्ल्यू-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के एक स्वतंत्र अध्ययन में दी गई है। अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में यह भी अनुमान लगाया गया है कि नेट-जीरो लक्ष्य को पाने के लिए भारत के सामने 3.5 ट्रिलियन डॉलर के महत्वपूर्ण निवेश की कमी आ सकती है, इसलिए इस अंतर को भरने के लिए जरूरी विदेशी पूंजी को जुटाने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं से रियायती वित्त के रूप में 1.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश सहायता की आवश्यकता होगी।
भारत को 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा निवेश की जरूरत होगी: सीईईडब्ल्यू-सीईएफ
भारत को 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा निवेश की जरूरत होगी: सीईईडब्ल्यू-सीईएफ नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)। भारत को 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को पाने के लिए कुल 10.1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। इससे भारत के बिजली, औद्योगिक और परिवहन क्षेत्रों से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलेगी। यह जानकारी बुधवार को जारी किए गए सीईईडब्ल्यू-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के एक स्वतंत्र अध्ययन में दी गई है। अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में यह भी अनुमान लगाया गया है कि नेट-जीरो लक्ष्य को पाने के लिए भारत के सामने 3.5 ट्रिलियन डॉलर के महत्वपूर्ण निवेश की कमी आ सकती है, इसलिए इस अंतर को भरने के लिए जरूरी विदेशी पूंजी को जुटाने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं से रियायती वित्त के रूप में 1.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश सहायता की आवश्यकता होगी।

सीईईडब्ल्यू-सीईएफ की ओर से आज जारी अध्ययन ह्यइन्वेस्टमेंट साइजिंग इंडियाज 2070 नेट-जीरो टारगेट ने यह भी बताया है कि ज्यादातर निवेश की भारत के बिजली क्षेत्र में बदलाव के लिए जरूरत पड़ेगी। अक्षय ऊर्जा से बिजली उत्पादन बढ़ाने और इससे जुड़े एकीकरण, डिस्ट्रीब्यूशन व ट्रांसमिशन के बुनियादी ढांचे को विस्तार देने के लिए ऐसे कुल 8.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्रों से कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए जरूरी ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिए 1.5 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी।

सीईईडब्ल्यू की सीईओ डॉ. अरुणभा घोष ने कहा, कॉप 26 में, भारत ने लघु और दीर्घकालिक अवधि के लिए जलवायु संबंधी साहसिक लक्ष्यों की घोषणा की है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि नेट-जीरो उत्सर्जन के बदलाव को पाने के लिए विकसित देशों से बड़े पैमाने पर निवेश के रूप में सहायता की जरूरत होगी। विकसित देशों को आगामी वर्षों में जलवायु वित्त उपलब्ध कराने के लिए सख्त लक्ष्य तय करने होंगे। इसके साथ ही घरेलू मोर्चे पर आरबीआई और सेबी जैसे वित्तीय नियामकों की ओर से भारत को हरित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी वित्तपोषण के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत है।

सीईईडब्ल्यू-सीईएफ का अध्ययन यह भी बताता गया है कि भारत को जिस 1.4 ट्रिलियन डॉलर के सस्ती दर वाले वित्त या पूंजी की आवश्यकता है, वह 2070 तक अगले पांच दशकों में एक समान नहीं होगी। रियायती वितत की औसत वार्षिक आवश्यकता पहले दशक में 8 बिलियन डॉलर से लेकर पांचवें दशक में 42 बिलियन डॉलर तक फैली होगी।

वैभव प्रताप सिंह, प्रोग्राम लीड और अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा, भारत का 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन पाने का लक्ष्य एक साहसिक प्रतिबद्धता है, जो न केवल वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को घटाने के प्रयासों में मदद करेगी, बल्कि यह भविष्य के कारोबार और नौकरियों की रूपरेखा भी निर्धारित करेगी। घरेलू बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय ऋण पूंजी बाजार जैसे घरेलू और विदेशी स्रोत अपने लिए बड़े पैमाने पर निवेश जुटाने में सक्षम नहीं होंगे। इसलिए, रियायती शर्तों के साथ विदेशी पूंजी की सुलभता को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

हाल ही में संपन्न हुए कॉप 26 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लिए 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य पाने की घोषणा की थी।

--आईएएनएस

आरजेएस

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