सात दशक बाद फिर से टाटा की हुई एयर इंडिया एयरलाइन (लीड-2)

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। सरकार द्वारा कॉर्पोरेट समूह को राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया का अधिग्रहण करने के लिए विजेता बोलीदाता घोषित करने के साथ ही एयर इंडिया की घर वापसी हो गई है और कंपनी सात दशक बाद एक बार फिर से टाटा समूह की हो गई है।
सात दशक बाद फिर से टाटा की हुई एयर इंडिया एयरलाइन (लीड-2)
सात दशक बाद फिर से टाटा की हुई एयर इंडिया एयरलाइन (लीड-2) नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। सरकार द्वारा कॉर्पोरेट समूह को राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया का अधिग्रहण करने के लिए विजेता बोलीदाता घोषित करने के साथ ही एयर इंडिया की घर वापसी हो गई है और कंपनी सात दशक बाद एक बार फिर से टाटा समूह की हो गई है।

टाटा ने ही इस एयरलाइन को शुरू किया था, जो कि लंबे समय तक विश्व स्तर पर भारत का चेहरा बनी रही, वहीं कपनी अब 68 वर्षों के बाद अब अपने मूल मालिक के पास वापस आ गई है।

एयर इंडिया की नींव 1932 में ही पड़ गई थी, जब जे. आर. डी. टाटा ने कराची और मुंबई के बीच एक छोटी उड़ान भरने में सफलता हासिल की थी। उड़ान की सफलता से प्रभावित होकर, रॉयल एयर फोर्स के एक पूर्व अधिकारी ने उन्हें एक वाणिज्यिक एयरलाइन सेवा शुरू करने में मदद करने की पेशकश की।

यह टाटा एयरलाइंस नामक देश की पहली भारत की हवाई सेवा बन गई। एयरलाइन की शुरुआत बेहद छोटे स्तर पर की गई थी, क्योंकि कंपनी की स्थापना महज 2 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी से की गई थी।

लेकिन 1937 में मुंबई और दिल्ली के बीच अपनी पहली उड़ान के बाद से, एयरलाइन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने परिचालन का लगातार विस्तार किया।

टाटा एयरलाइन 1946 में एयर इंडिया में बदल गई, उसी वर्ष यह सार्वजनिक हो गई और एक संयुक्त स्टॉक कंपनी बन गई। इसके तुरंत बाद, टाटा ने सार्वजनिक-निजी-साझेदारी मॉडल के साथ देश का पहला प्रयोग शुरू किया, जिसमें सरकार को एयरलाइन की पूंजी के 49 प्रतिशत की सदस्यता लेने की पेशकश की गई, जबकि समूह के पास 25 प्रतिशत हिस्सेदारी थी और बाकी शेयर जनता को दिए जा रहे थे।

टाटा तब प्रबंधन का अधिकार सरकार को हस्तांतरित करना चाहता था और इसलिए एयरलाइन का पूर्ण नियंत्रण प्रदान करने के लिए अपनी दो प्रतिशत हिस्सेदारी केंद्र को देने की पेशकश की। नियंत्रण लेने के बाद, सरकार ने 1953 में राष्ट्र के 100 प्रतिशत नियंत्रण के साथ एयरलाइन का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

इसके राष्ट्रीयकरण से पहले, एयर इंडिया इंटरनेशनल का भी जन्म हुआ, जिसने 1948 में मुंबई और लंदन के बीच पहली उड़ान के साथ वाहक को विदेश ले जाया गया। जल्द ही, इस ऑपरेशन का विस्तार कुछ अन्य शहरों में भी किया गया।

वाहक के राष्ट्रीयकरण का मतलब था कि एयर इंडिया और एयर इंडिया इंटरनेशनल को एक ही राष्ट्र उद्यम में मिला दिया गया था। लेकिन राष्ट्र के नियंत्रण में भी, जे. आर. डी. टाटा इसके अध्यक्ष के रूप में बने रहे और इस पद उन्होंने 1977 तक जिम्मेदारी निभाई। वास्तव में, वे 1986 तक एयर इंडिया के बोर्ड में बने रहे, जब रतन टाटा ने एयरलाइन को अपने नए प्रमुख के रूप में चलाने के लिए पदभार संभाला।

सरकार के तहत, एयर इंडिया और घरेलू एयरलाइन इंडियन एयरलाइन ने 2007 तक काम किया, जब एयरलाइन को एक इकाई में विलय करने का निर्णय लिया गया। इस विलय के तुरंत बाद, एयरलाइन ने कहा कि हर गुजरते साल में बढ़ते नुकसान के साथ तनाव के संकेत दिखाई दे रहे हैं।

जून 2017 में, सरकार ने अंतत: अपनी संपूर्ण 100 प्रतिशत इक्विटी को विनिवेश करने के निर्णय के साथ एयरलाइन के निजीकरण को मंजूरी दे दी।

31 अगस्त तक एयरलाइन का कुल कर्ज 61,562 करोड़ रुपये दर्ज किया है, जबकि टाटा की एक सहायक कंपनी ने इसके लिए 18,000 करोड़ रुपये का उद्यम मूल्य उद्धृत किया है।

--आईएएनएस

एकेके/एएनएम

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