जानिये क्यों मिला था चन्द्रमा को श्राप जिसके परिणाम से हुई कृष्ण और शुक्ल पक्ष की शुरुआत | Krishna Paksha And Shukla Paksh Kya Hota Hai | Sanatan Dharma Story In Hindi
Story Of Krishna And Shukla Paksha Calendar | चंद्रमा को किसने कलंक किया था
Hindu Calendar Krishna And Shukla Paksha And Moon Story In Hindi
Story Of Chandrama Shrap In Hindi | चंद्रमा को श्राप किसने दिया था
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का क्या अर्थ होता है।
Dharm: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार मासिक पंचांग यानी एक महीने को 30 दिनों में बांटा गया है और इन 30 दिनों को दो-दो पक्षों में बांटा जाता है। जिसमें 15 दिन के एक पक्ष को शुक्ल पक्ष और बाकी के 15 दिन को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। इन्हे चंद्रमा की कलाओं के बढ़ने और घटने के अनुसार ही शुक्ल और कृष्ण पक्ष कहते हैं। हिन्दू पंचांग में पर्व की तारीख, व्रत तिथि, शुभ मुहूर्त आदि इसी के आधार पर देखे जाते हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा के बाद यानी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के बाद नये महीने की शुरुआत होती है। पूर्णिमा से अमावश्या के बीच के दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जाता है, वहीं दूसरी तरफ अमावश्या से पूर्णिमा तक की अवधि को शुक्ल पक्ष के नाम से जाना जाता है। कृष्ण और शुक्ल पक्ष की शुरुआत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचिलित है। आज हम आपको चन्द्रमा और प्रजापति दक्ष के श्राप की यही पौराणिक कथा बताएंगे।
चंद्रमा और रोहिणी की पौराणिक कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियां थीं। उन्होंने अपनी सभी पुर्त्रियों का विवाह चंद्र देव के साथ किया। किन्तु चन्द्रमा सबसे अधिक प्रेम अपनी सभी पत्नियों में रोहिणी से करते थे। जिस कारण उनकी शेष पत्नियां दुखी रहती थीं और उन्हें काफी बुरा लगता था। उन्होंने अपने पिता से इसकी शिकायत कर दी। लेकिन दक्ष के कई बार समझाने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी को ही अपनी पत्नी माना और अपनी अन्य पत्नियों को अनदेखा करते रहे। जिस पर दक्ष ने गुस्से में आकर चंद्र को क्षय रोग का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होने लगा। जिससे शुरुआत हुई कृष्ण पक्ष की।
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का क्या अर्थ होता है?
जिसके बाद ब्रह्मा जी के कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना की। कहा जाता है कि उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। भगवान शिव ने कहा कि कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, लेकिन शुक्ल पक्ष में पुनः उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होगा। लेकिन श्राप के परिणाम स्वरुप चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है।
भगवान शिव ने चंद्र को अपने सिर पर क्यों रखा?
बताया जाता है कि चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया, तभी से भगवान शिव का एक नाम सोमेश्वर नाथ हुआ। चंद्रमा ने अपनी भक्ति से शिवजी को प्रसन्न किया। शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली। चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया। यह भी कहा जाता है कि चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है। यह शीतलता और शांति देने वाली ऊर्जा भगवान शिव के स्वभाव को भी नियंत्रित करती है। इस प्रकार भगवान शिव के माथे पर अर्धचंद्र उनके सृजन के लिए किए गए बलिदान का प्रतीक है।