इस फ़िज़ा की मुस्कराहट के पीछे कोई श्मशान नज़र आता है
Sep 19, 2018, 05:39 IST
जो देखूँ दूर तलक तो कहीं बियाबाँ , कहीं तूफाँ नज़र आता है
इस फ़िज़ा की मुस्कराहट के पीछे कोई श्मशान नज़र आता है
इंसानों ने अपनी हैवानियत में आके किसी को भी नहीं बख्शा है
कभी ये ज़मीं लहू-लुहान तो कभी घायल आसमाँ नज़र आता है
मशीनी सहूलियतों ने ज़िन्दगी की पेचीदगियाँ यूँ बढ़ा दी हैं कि
जिस इंसान से मिलो,वही इंसान थका व परेशान नज़र आता है
क़ानून की सारी ही तारीखें बदल गई हैं पैसों की झनझनाहट में
मुजरिमों के आगे सारा तंत्र ही न जाने क्यों हैरान नज़र आता है
किताबें,आयतें,धर्म,संस्कृति,सं
स्कार,रिवाज़ सब के सब बेकार
शराफत की आड़ में छिपा सारा महकमा शैतान नज़र आता है
बच्चों की मिल्कियत छीनके अपने उम्मीदों का बोझ डाल दिया
मेरी निगाहों में अब तो हर माँ-बाप ही बेईमान नज़र आता है
सलिल सरोज
परिचय
नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्
कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से।
जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार
(इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(
2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्
यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा
में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मे
रीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से
समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।
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