अरबों के काल 'तक्षक' की वीर गाथा

हमारा इतिहास उन वीर क्रांतिकारी योद्धाओं की शौर्यगाथा से पटा हुआ है जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण निछावर कर दिये. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे नायक की कहानी सुनाते हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए प्राण निछावर बाद में किये, लेकिन प्राण छीनना पहले सिखा दिया... हम आपको दास्तान सुनाने जा रहे हैं तक्षक की, जिन्होंने अरबों को उन्हीं की ज़ुबान में सबक सिखाया.
ये कहानी शुरू होती है 711 ईसवी में, मुल्तान विजय के बाद मोहम्मद बिन तुगलक पहला आक्रमणकारी अरब शासक था जो बार-बार कन्नौज पर आक्रमण करता था... कन्नौज के प्रतापी राजा नागभट्ट की सेना उसको बार-बार खदेड़ देती थी, भगा देती थी... मुल्तान पर हमले के बाद मोहम्मद बिन तुगलक की सेना तक्षक के गांव भी पहुंची और मुल्तान में भी और वहां भी भारी मार काट मचाई. औरतों की इज्ज़त लूटी जवान लड़कों का या तो बेरहमी से कत्ल कर दिया गया या तो गुलाम बना लिया गया... हजारों की संख्या में जवान लड़कियों ने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए तालाब में कूदकर जान दे दी... मोहम्मद बिन कासिम की सेना के पहुंचने के बाद जब वहां मारकाट शुरू हुई, हाहाकार हुआ, तो तक्षक की मां समझ गई कि अब क्या होने वाला है... उनकी दो बेटियां थीं... उन्होंने तलवार निकाली और अपनी दोनों बेटियों का सर काट दिया... फिर तक्षक की तरफ देखा और उसके बाद तलवार उठाई और अपने सीने में घोंप दी... तक्षक उस वक्त सिर्फ आठ साल के थे... आठ साल की उम्र में ही उनको इस दर्दनाक घटना ने बहुत बड़ा बना दिया... वो भाग गये जंगल में... और 25 साल बाद कन्नौज के राजा नागभट्ट-द्वीतीय के मुख्य अंग रक्षक बनकर लौटे... उनकी बहादुरी के किस्से उनकी सेना में सुनाए जाते थे.
अरब सेना बार-बार इस तरह से हमले करती थी और उनको खदेड़ दिया जाता था...ये सिलसिला 15 सालों तक चला... फिर खबर आई कि कि अरब के खलीफा से मदद लेकर मोहम्मद बिन तुगलक की सेना, जो सिंध में थी, वो कन्नौज पर फिर से बड़ा आक्रमण करने वाली है... महाराज नागभट्ट ने रणनीति बनाने के लिए अपने सेनापतियों की बैठक बुलाई कि किस तरह से इससे निपटा जाए, किस तरह से जवाब दिया जाएगा... तक्षक ने कहा कि महाराज इस बार दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देने की ज़रूरत है क्योंकि हर बार जब मोहम्मद बिन तुगलक की सेना आक्रमण करती थी तो उनको खदेड़ने के बाद कन्नौज की सेना उनके पीछे नहीं जाती थी... वो सनातन नियमों से युद्ध करती थी... जब तक्षक ने ये बात कही तो महाराज ने कहा कि ज़रा खुलकर बताओ, तुम कहना क्या चाहते हो... तक्षक ने कहा कि अरब सेना बर्बर है और उसकी बर्बरता को आपने मुल्तान में और दूसरी जगहों पर देखा है... अगर सनातन नियमों के मुताबिक उससे युद्ध करेंगे तो ये हमारे लिए अपनी प्रजा के साथ घात करने जैसा होगा.
तक्षक की इस बात पर महाराज का जवाब था कि हम धर्म और मर्यादा नहीं छोड़ सकते... तक्षक ने कहा मर्यादा का पालन उनके साथ किया जाता है जिन्हें मर्यादा का अर्थ पता हो... अरब सेना बर्बर है, धर्मांध है... वो राक्षस हैं... हत्या और बलात्कार ही उनका धर्म है... महाराज ने कहा कि हम उनके जैसे नहीं हो सकते... तब तक्षक ने जवाब दिया- महाराज राजा का एक ही धर्म होता है अपनी प्रजा की रक्षा करना... राजा नागभट्ट ने फिर कहा कि ये हमारा धर्म नहीं हो सकता... तक्षक ने कहा देवल और मुल्तान युद्ध को याद करें, वहां जीत के बाद मोहम्मद बिन तुगलक की सेना ने क्या किया, किस तरह की बर्बरता की... महाराज ने अपने दूसरे सेनापतियों की ओर देखा... सब तक्षक की बात से मौन सहमति जता रहे थे... फिर उसके बाद वो जो उनका कोर ग्रुप रहा होगा, उन प्रमुख सेनापतियों को लेकर मंत्रणा कक्ष में चले गए... और ये खबर आ गई कि अगले दो-तीन दिन में आक्रमण होने वाला है.
जिस रात ये बैठक हो रही थी उस रात दोनों सेनाएं कन्नौज की सीमा पर पड़ाव डाल चुकी थीं... जो आसपास के इलाके थे सब जगह मालूम था कि कल सुबह बड़ा भीषण युद्ध होने वाला है... महाराज नागभट्ट तक्षक की बात से सहमत हो चुके थे... आधी रात को कन्नौज की एक चौथाई सेना तक्षक के नेतृत्व में अरबों के शिविर पर टूट पड़ी... सब सो रहे थे, आराम कर रहे थे... मोहम्मद बिन तुगलक को ये उम्मीद नहीं थी कि कोई हिंदू राजा मर्यादा का उल्लंघन करके, सनातन नियमों को छोड़कर इस तरह से हमला करेगा... सुबह होते होते दो तिहाई अरब सेना मारी जा चुकी थी... जो बाकी सेना बची उसने पीछे भागना शुरू किया... पीछे भागे तो वहां महाराज नाग भट्ट अपनी बाकी सेना को लेकर खड़े थे... उन्होंने तुगलक की सेना का सफाया कर दिया.
इस घटना के बाद तीन शताब्दियों यानी 300 साल तक अरबों ने कन्नौज की तरफ या भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की भी हिम्मत नहीं की... उधर जब युद्ध खत्म हुआ तो महाराज ने अपने सारे सेनापतियों को देखा... उनमें तक्षक नहीं थे... उन्होंने पूछा- तक्षक कहां है... खोजा गया तो अरब सैनिकों की लाशों के बीच में तक्षक का पार्थिव शरीर दिखाई दिया... उनको लाया गया... महाराज नागभट्ट ने उनके चरणों में अपनी तलवार रख दी और प्रणाम किया... उन्होंने गरजते हुए स्वर में तक्षक के लिए कहा- तुम आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक... ये देश सदियों सदियों तक तुम्हारे योगदान को याद करेगा और युगों युगों तक तुम्हारा आभारी रहेगा... महाराज ने कहा कि तक्षक हम अभी तक ये जानते थे कि अपने देश की रक्षा के लिए, अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए जान कैसे दी जाती है... तुमने सिखाया कि देश और प्रजा की रक्षा के लिए जान कैसे ली जाती है.
तो तक्षक का संदेश क्या था, हमें उम्मीद है कि आपको समझ में आ चुका होगा कि दुष्ट को दुष्ट की ही भाषा में समझाया जा सकता है... तक्षक ने उस समय भी कहा था कि दुष्ट को जब तक आप उसी की भाषा में जवाब नहीं देंगे तब तक वो आपको कमजोर समझता रहेगा... ऐसे वीर तक्षक को हम अपनी तरफ से श्रद्धांजलि पेश करते हैं और उन्हें नमन करते हैं।