जीवन के दो आयाम... वेग और योग!

Nadiyan
 नदियाँ

मनोवेग हैं

और पर्वत

समाधिस्थ योगी!

पर्वतों और नदियों ने मुझे हमेशा से विचलित किया है, इनका बन्धन भी अलौकिक है। स्वभाव में एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत... नदियों के लिए जीवन का अर्थ वेग है और पर्वतों के लिए योग। चिरकाल से विपरीतियों ने ही इनको जोड़े रखा है। उन तपस्यारत पर्वतों ने नदियों को ऐसे त्याग दिया है जैसे योगियों ने भाव को। निश्चय ही नदियाँ मन का तरल रूप हैं। एक ओर जहाँ सरिता प्राणदायिनी है वहीं दूसरी ओर वह संहारिका भी है। नदियों के शोर, ऊर्जा और वेग को धारण करने का साहस इस संसार में केवल सागर के पास है।

और पर्वत... सदा से कठोरता की परिभाषा बने हुए। उनपर ना तो मधुमास का प्रभाव पड़ता है ना पतझड़ का। ऋतुओं ने हर संभव प्रयास किया लेकिन उनको कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। ना तो पुरवाई का स्पर्श महसूस होता है ना कोयल की आवाज़ सुनाई देती है। नदियों को लगता है  पर्वत बिल्कुल नीरस हैं.. लेकिन उनके आसपास की अथाह शांति कुछ और ही बताती है। परब्रह्म में लीन वह मौन... मानो वे पर्वत नहीं, स्वयं सच्चिदानंद के अंश हों।

शायद इसलिए नदियों ने उनका परित्याग कर दिया। मायास्वरूपिणी नदियाँ विलास चाहती थीं, भोग चाहती थीं। भोगी और योगी साथ नहीं रह सकते थे। सम्भव है कुछ प्रेम पर्वतों के भीतर भी रहा हो तभी तो अपने मौनलोक में उन्होंने नदियों को हँसने की अनुमति दी, आश्रय दिया। उनके अस्तित्व को स्वीकार किया। लेकिन नदियों ने सदा से उस उफ़नते सागर को ही अपना स्वामी माना। पर्वतों ने रोका भी नहीं, उनको जाने दिया। निश्चय ही निर्मोही पर्वतों का एकमात्र मोह नदियाँ ही रही होंगी।

- जया मिश्रा ‘अनजानी’

Share this story