Hamare Baarah Honest Film Review : हमारे बारह देखने से अच्छा बंदा पाकिस्तानी ड्रामा देख ले
मुस्लिम समाज पर बनाई गईं फिल्में लोगों के interesting cart में ज़्यादा होती हैं
सब्जेक्टिव फिल्में बनाने का सबसे बेहतरीन टॉपिक क्या है मालूम है आपको? मुस्लिम समाज. जी हां, पिछले कुछ समय से देखा गया है कि मुस्लिम समाज पर बनाई गईं फिल्में लोगों के interesting cart में ज़्यादा होती हैं देश की कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय का हिस्सा तकरीबन 14 फीसद है, लेकिन इस 14 फीसद समुदाय के बारे में गहराई से जानने में बाकी की आबादी बहुत दिलचस्पी लेती है. तो बस फिल्म मेकर्स को फिल्म बनाने के लिए मुस्लिम समाज ज़्यादा रास आता है.
हमारे बारह. इस फिल्म को लेकर पिछले काफी समय से बवाल चल रहा
एक ऐसी ही मूवी कल रिलीज हुई है, जिसका नाम है हमारे बारह. इस फिल्म को लेकर पिछले काफी समय से बवाल चल रहा था. मुस्लिम समाज को इस फिल्म से घोर आपत्ति थी और अभी भी है. इसलिए उनकी तरफ से दबाव था की फिल्म को रिलीज नहीं होने दिया जाए... सड़क से लेकर कोर्ट तक इस फिल्म के रिलीज को लेकर काफी बवाल मचा, लेकिन आखिरकार 21 जून को हमारे बारह बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई.
मुस्लिम सोशल ड्रामा फिल्म बनने का मौका खो दिया
जो ऑडियंस ये फिल्म देखने गई उनको लगा कि मज़हब की बेड़ियों में कैद, शोषित मुस्लिम महिलाओं की सच्ची कहानी इस फिल्म में देखने को मिलेगी.और no doubt फिल्म बनी भी इसी मेन मुद्दे पर थी, लेकिन एक अच्छी कहानी ने ओवरएक्टिंग और खराब डायरेक्शन के चलते इस दौर की एक बेहतरीन मुस्लिम सोशल ड्रामा फिल्म बनने का मौका खो दिया.
उम्रदराज कव्वाल अपनी बेटी की उम्र की लड़की से दूसरी शादी करते है
चलिए अब बात कर लेते हैं हमारे बारह की स्टोरी लाइन पर. एक उम्रदराज कव्वाल अपनी बेटी की उम्र की लड़की से दूसरी शादी करता है... उसके साथ हमबिस्तर होने के दौरान गर्भ निरोधक का प्रयोग नहीं करता है. उसकी पहली बीवी की बेटी अपनी सौतेली मां की जान बचाने के लिए Abortion की गुहार लगाती है. लगातार औलादें पैदा करते रहने की उसकी जिद का मामला अदालत में पहुंचता है. इस बेटी को ये दूसरी मां अपनी सहेली मानती हैं. दोनों में खूब बनती भी है. बेटी बागी है. सही गलत में फर्क जानती है. घर का एक बेटा भी अपने अब्बू की मुखालिफत में है. दूसरा बेटा कव्वाली में अपना भविष्य देख रहा है और अपनी बेटी व बीवी से दूर हो चुका है. वो भी अपने अब्बा के कहने पर.
ज्यादा बड़े और अहम मुद्दे पाकिस्तान ड्रामों में दिखाई देते हैं
इससे ज्यादा बड़े और अहम मुद्दे पाकिस्तान ड्रामों में दिखाई देते हैं. जी हां, देश की एक बड़ी आबादी इसी तरह की मुस्लिम सोशल ड्रामा फिल्मों पर जान छिड़कती है और जब ये कमी मुंबइया सिनेमा पूरा नहीं कर पाता है तो ये आबादी पाकिस्तानी धारावाहिकों पर अपने दिन रात निछावर कर देती है. बस यही वजह है कि पाकिस्तानी ड्रामा इंडिया में खूब ट्रेंड में हैं.