फेसबुक हिंदी, बांग्ला क्लासिफायर के अभाव में भारत संबंधी नफरत वाली सामग्री हटा न पाया

नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)। अमेरिका में अपने विषाक्त और विभाजनकारी कलन विधि (एल्गोरिदम) के खिलाफ एक व्हिसलब्लोअर के गंभीर आरोपों से त्रस्त फेसबुक ने कथित तौर पर हिंदी और बांग्ला क्लासिफायर की कमी के कारण भारत से संबंधित भय-भड़काऊ और घृणास्पद सामग्री पर कार्रवाई नहीं की।
फेसबुक हिंदी, बांग्ला क्लासिफायर के अभाव में भारत संबंधी नफरत वाली सामग्री हटा न पाया
फेसबुक हिंदी, बांग्ला क्लासिफायर के अभाव में भारत संबंधी नफरत वाली सामग्री हटा न पाया नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)। अमेरिका में अपने विषाक्त और विभाजनकारी कलन विधि (एल्गोरिदम) के खिलाफ एक व्हिसलब्लोअर के गंभीर आरोपों से त्रस्त फेसबुक ने कथित तौर पर हिंदी और बांग्ला क्लासिफायर की कमी के कारण भारत से संबंधित भय-भड़काऊ और घृणास्पद सामग्री पर कार्रवाई नहीं की।

यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) के पास दायर फेसबुक व्हिसलब्लोअर फ्रांसेस हौगेन की शिकायत के अनुसार, आरएसएस उपयोगकर्ता, समूह और पेज वी एंड आई (हिंसा और उकसाने) के इरादे से हिंदू-समर्थक आबादी को लक्षित, मुस्लिम विरोधी कथन को बढ़ावा देते हैं।

दस्तावेजों में से एक एडवर्सेरियल हार्मफुल नेटवर्क्‍स - इंडिया केस स्टडी में उद्धृत रिपोर्ट के लेखक के हवाले से कहा गया है, .. और हमने अभी तक राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए इस समूह के पदनाम के लिए नामांकन नहीं किया है।

हौगेन की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि फेसबुक के आंतरिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि ऐसी हानिकारक सामग्री को हटाने के लिए हिंदी और बांग्ला क्लासिफायर की कमी की समस्या थी।

क्लासिफायर स्वचालित सिस्टम और एल्गोरिदम हैं, जिन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामग्री में अभद्र भाषा का पता लगाने के लिए डिजाइन किया गया है।

शिकायत में कहा गया है, मुसलमानों पर कई अमानवीय पोस्ट थे, लेकिन हिंदी और बांग्ला क्लासिफायर की कमी के कारण ऐसी सामग्री में से अधिकांश को कभी भी फ्लैग या एक्शन नहीं किया गया है और हमने राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए अभी तक इस समूह (आरएसएस) के पदनाम के लिए नामांकन नहीं किया है।

अपने पूर्व नियोक्ता पर किचन सिंक फेंकने के बाद हौगेन ने सरल घर्षण पर एक अंदरूनी दृश्य प्रस्तुत किया है जो दुनिया के सबसे बड़े सोशल नेटवर्किं ग प्लेटफॉर्म फेसबुक के विषाक्त और विभाजनकारी एल्गोरिदम को शांत कर देगा जो किशोर और कमजोर आबादी को चला रहे हैं।

तीसरे पक्ष के आंकड़ों के अनुसार, भारत सोशल नेटवर्क के लिए सबसे बड़े बाजारों में से एक है, जिसमें फेसबुक और व्हाट्सएप के लिए 40 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता हैं।

भाजपा और आरएसएस दोनों ने अभी तक शिकायत पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

अतीत में, फेसबुक को भारत में घृणा सामग्री के खिलाफ निष्क्रियता के कई आरोपों का सामना करना पड़ा है।

इस साल जनवरी में सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति ने फेसबुक और ट्विटर के अधिकारियों को सोशल मीडिया या ऑनलाइन समाचार प्लेटफार्मो के दुरुपयोग पर सवाल करने के लिए समन जारी किया था। समिति ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक पूर्वाग्रह के मुद्दे पर फेसबुक के भारत प्रमुख अजीत मोहन से भी पूछताछ की है।

अगस्त 2020 में द वॉल स्ट्रीट जर्नल में भाजपा के प्रति फेसबुक पूर्वाग्रह के आरोपों की सूचना दी गई थी और दावा किया गया था कि मंच की तत्कालीन भारत नीति प्रमुख अंखी दास ने यह चेतावनी देते हुए कि इससे व्यावसायिक हित में बाधा उत्पन्न हो सकती है, भाजपा नेताओं के घृणास्पद पोस्ट को हटाने के विचार का विरोध किया था।

इस बीच, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कर्मचारियों को लिखे एक नोट में अपनी कंपनी का एक कट्टर बचाव पोस्ट किया है, जिसमें कहा गया है कि समाज पर सोशल नेटवर्क के नकारात्मक प्रभावों के बारे में एक पूर्व कर्मचारी के हालिया दावों का कोई मतलब नहीं है।

फेसबुक से जुड़े खुलासे पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया एक्सपर्ट और डिजिटल इंडिया फाउंडेशन के हेड अरविंद गुप्ता ने कहा कि भले ही फेसबुक इसे स्वीकार करे या न करे लेकिन यह एक सच्चाई है कि फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी के पास भी स्थानीय भाषाओं के आम बोलचाल वाले शब्दों को सही तरीके से समझने का कोई मैकेनिज्म नहीं है और इसी वजह से इस तरह की समस्या आती रहती है।

इस पूरे विवाद को किसी राजनीतिक दल के साथ जोड़ने की कोशिश को खारिज करते हुए अरविंद गुप्ता ने कहा कि इसका राजनीतिक दलों से कोई लेना देना नहीं है। उन्होने कहा कि इस तरह के शब्दों और भाषा का इस्तेमाल करने वाले पेज आधिकारिक नहीं होते हैं। यह कोई भी हो सकते हैं लेकिन यह सच्चाई है कि फेसबुक ने इसे रोकने का अभी तक कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया है।

हिन्दी और बंगाली को विशेष तौर पर टार्गेट करने के सवाल पर उन्होने कहा कि इस तरह की समस्या देश के कई अन्य भाषाओं के साथ भी जुड़ी हो सकती है क्योंकि फेसबुक के पास लोकल लैंगवेज और शब्दावली को समझने वाले लोग ही नहीं है।

--आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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